अर्थ – श्री जिनेन्द्र देव की पूजा बिना चन्दन के कभी नहीं करनी चाहिए। चतुर पुरुषों को प्रात: काल के समय चन्दन से पूजा अवश्य करनी चाहिए। भावार्थ-प्रात: काल में भगवान जिनेन्द्र देव की पूजा उनके चरणारविंद के अंगुष्ट पर चन्दन लगाकर करनी चाहिए। यद्यपि भगवान की पूजा अष्टद्रव्य से की जाती है और वह अभिषेक पूर्वक ही होती है तथापि अभिषेक के बाद चरणों पर चंदन लगाना आवश्यक माना जाता है। यदि अष्टद्रव्य का समागम न मिले तो केवल भगवान के चरण के अंगूठे पर चंदन लगाने से ही भगवान की पूजा समझी जाती है। यदि भगवान के चरणों पर चंदन न लगाया जाये और बिना चंदन लगाये ही पूजा की जाती है तो वह पूर्ण पूजा नहीं समझी जाती, प्रात:काल के समय चंदन पूजा ही मुख्य मानी गई है।
(उमास्वामी श्रावकाचार पृ. ४७)(२)
चंदणसुअन्धलेओ, जिणवर-चरणेसु जो कुणई भविओ।
लहइ तणू विक्किरियं, सहावसुयंधयं अमलं।।
चन्दनसुगंधलेपं, जिनवरचरणेषु य: करोति भव्य:।
लभते तनुं वैक्रियिकं, स्वभावसुगन्धकं अमलं।।४७१।।
(भावसंग्रह पृ. १०२)
अर्थ –जो भव्य पुरुष भगवान जिनेन्द्र देव के चरण कमलों पर (जिन प्रतिमा के चरण कमलों पर) सुगंधित चन्दन का लेप करता है उसको स्वर्ग में जाकर अत्यन्त निर्मल और स्वभाव से ही सुगंधित वैक्रियक शरीर प्राप्त होता है। भावार्थ-चन्दन से पूजा करने वाला भव्य जीव स्वर्ग में जाकर उत्तम देव होता है।