जनसंख्या बोझ:—दुनिया की आबादी अभी ६.९१ अरब है। वर्ष २०५० तक यह ९.१५ अरब हो जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग के अनुसार यही रफ्तार रही तो अगले ४० साल में १० में से सिर्पक एक को ही भरपेट भोजन मिल पाएगा।
तपती धरती :— ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान १८८० के बाद करीब एक डिग्री बढ़ चुका है। इसकी बड़ी वजह है, कार्बन उत्सर्जन । वातावरण में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा नवबंर १९५८ में ३१३.३४ पाट्र्स/मिलियन थी। यह २००९ में करीब २० फीसदी बढ़कर ३८७.४१ पाट्र्स/ मिलियन हो गई।
पिघलते ग्लेशियर:— धरती का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं ।आर्वटिक धु्रव पर अभी सिर्क २७ ग्लेशियर ही बचे हैं। जबकि १९९० में १५० थे। इस वजह से इस सदी के अंत तक समुद्र के पानी का स्तर ७ से २३ इंच बढ़ जाएगा। कई तटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।
बिन पानी:— यूएन स्टेटमेंट ऑन वाटर क्राइसिस के मुताबिक दुनिया में आज करीब एक अरब लोगों को साफ पीने लायक पानी नहीं मिलता । वर्ष २०५० तक दुनिया में करीब तीन अरब लोग बिन पानी या कम पानी में गुजारा कर रहे होंगे। वर्ष २०२५ तक भारत के करीब ६० फीसदी भूजल स्रोत पूरी तरह सूख चुके होंगे।
घटते जंगल— अर्थ आब्जरवेटररी नासा के मुताबिक वर्तमान में हर साल करीब ३.५ करोड़ एकड़ जंगलो की कटाई होती है। जंगल कटने से फल, फाइबर, कागज, तेल, मोम, रंग, औषधि आदि की कीमतें बढ़ रही हैं। इससे भारत को हर साल करीब ४ लाख करोड़ का नुकसान होता है।
जमीन बंजर:— ओंटारियो इंस्टीट्यूट ऑफ पेडोलॉजी के अनुसार मिट्टी की ऊपरी परत हर साल २५ अरब टन कम हो रही है। यही जमीन को ऊपजाऊ बनाती है। इसमें १३ महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं, जो पानी में मिलने के बाद पेड़—पौधों और फसल को विकसित करते हैं । इसके नष्ट होने पर जमीन बंजर हो रही है।
रेगिस्तान:— यूनाइटेड नेशन एन्वायरमेंट प्रोग्राम के अनुसार दुनिया में हर साल करीब ३२ हजार किलोमीटर जमीन रेगिस्तान में तब्दील हो जाती है। इस वक्त करीब २० फीसदी जमीन रेगिस्तान की शक्ल अख्तियार कर चुकी है।
खत्म संसाधन:— धरती के नीचे तेल, गैस, कोयला जैसे संसाधन लगातार खत्म हो रहे हैं। दुनिया में अभी हर साल करीब ८.१ करोड़ बैरल तेल का उत्पादन होता है। वर्ष २०३० तक इसके घटकर करीब ३.९ करोड़ बैरल सालाना रह जाने की आशंका है।
प्रदूषण :— वर्ष १९५० में दुनिया भर में प्लास्टिक का प्रयोग ५० लाख टन होता था जो आज करीब १० करोड़ टन है। चौपहिया वाहन प्रदूषण का बड़ा कारण है। वर्ष १९५० में दुनिया में ५० लोगों पर एक कार होती थी। यह आंकड़ा वर्तमान में १२ लोगों पर एक कार का हो चुका है।