बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के जन्म से पवित्र ‘राजगृही’ नगरी बिहार प्रान्त के नालंदा जिले में स्थित है। जैन वाङ्मय व अन्य साहित्य में इस राजगृही नगरी के गिरिव्रज, बसुमती, ऋषभपुर व कुशाग्रपुर आदि अनेक नाम मिलते हैं। भगवान मुनिसुव्रतनाथ राजगृह में माता सोमा और पिता सुमित्र राजा से वैशाख कृ. द्वादशी के दिन उत्पन्न हुए। भगवान मुनिसुव्रत के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान इन चार कल्याणकों से पावन राजगृही तीर्थ प्रसिद्ध है। जीवन्धर कुमार, श्वेतसन्दीव, विद्युच्चर, गन्धमालन आदि अनेक महामुनियों ने इसी राजगृही नगरी में पंचपहाड़ी से विख्यात विपुलाचल, ऋषिगिरि आदि पर्वतों से घातिया-अघातिया कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया है जिसके कारण यह तीर्थक्षेत्र के साथ-साथ सिद्धक्षेत्र भी माना जाता है। राजगृही नगरी का विपुलाचल पर्वत इस दृष्टि से अत्यधिक श्रद्धा का केन्द्र बन गया कि भगवान महावीर की दिव्यध्वनि सर्वप्रथम यहीं खिरी थी, साथ ही उनके द्वारा धर्मचक्र प्रवर्तन इसी पावन भूमि पर होने से यह धर्मचक्र प्रवर्तन क्षेत्र के रूप में प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ और वह दिन (श्रावण कृ. एकम) वीर-शासन जयन्ती दिवस के रूप में पर्व बन गया। सुकौशल मुनि, नागदत्त सेठ, राजा श्रेणिक, पुष्पढाल व वारिषेण मुनि आदि के जीवन से संबंधित अनेकानेक पौराणिक घटनाओं को अपने भूगर्भ में छिपाए हुए यह नगरी जहाँ एक ओर धार्मिक दृष्टि से पूज्य रही, वहीं ऐतिहासिक व राजनैतिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है। वर्तमान में भी उसकी धार्मिक महत्ता अब भी अक्षुण्ण है। आधुनिक राजगृही नगरी में राजगिरि स्टेशन से पश्चिम में दो फर्लांग दूर दिगम्बर जैन धर्मशाला और दो विशाल जिनमंदिर हैं। वर्तमान में इस तीर्थ का अच्छा विकास हुआ है। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से राजगृही तीर्थ पर ‘‘दिगम्बर जैन लाल मंदिर’’ के बाहर उद्यान में भगवान मुनिसुव्रत की सवा बारह फुट ऊँची खड्गासन कृष्णवर्णी प्रतिमा विराजमान हुई हैं। राजगृही में विपुलाचल पर्वत के नीचे तलहटी में ४१ पुट ऊँचा मानस्तंभ निर्मित है तथा विपुलाचल पर्वत पर निर्मित हॉल में पूज्य माताजी ने १४ जुलाई २००३ को वीरशासन जयंती के दिन भक्तों की ध्यानसाधना हेतु ‘‘ह्री ॐ’’की प्रतिमा विराजमान की है एवं वहीं पर भगवान महावीर चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन भी १४ जुलाई २००३ को हुआ है जिसके द्वारा भक्तों को महावीर स्वामी का जीवन परिचय प्राप्त होगा। इस धार्मिक व ऐतिहासिक पावन भूमि राजगृही के दर्शन कर हम अपने जीवन को उन महापुरुषों के समान बना सकें, ऐसी भावना करते हुए राजगृही नगरी को शत-शत नमन।