जैनशासन की तीर्थंकर परम्परानुसार इस युग के चौबीस तीर्थंकरों में से अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त के ‘‘कुण्डलपुर’’ नगर में हुआ था। जैसा कि तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में कहा है-
अर्थात् भगवान महावीर कुण्डलपुर में महाराजा सिद्धार्थ एवं महारानी प्रियकारिणी (त्रिशला) से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए। षट्खण्डागम के चतुर्थ खण्ड एवं नवमी पुस्तक की धवला टीका में श्रीवीरसेनाचार्य ने भी कहा है- ‘‘आषाढ़ जोण्ण पक्ख छट्ठीए कुण्डलपुर णगराहिव णाहवंश सिद्धत्थ णरिंदस्स तिसिला देवीए गब्भमागंतणेसु तत्थ अट्ठदिवसाहिय णवमासे अच्छिय चइत्त सुक्क पक्ख तेरसीए उत्तराफग्गुणी गब्भादो णिक्खंतो।’’ अर्थात् कुण्डलपुर नगर के अधिप-राजा नाथवंशी सिद्धार्थ नरेन्द्र की रानी त्रिशला के गर्भ से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर तीर्थंकर का जन्म हुआ। इसी प्रकार सम्पूर्ण प्राचीन दिगम्बर जैनागम ग्रंथों (उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण, जयधवला, महावीर पुराण, वीरजिणिन्दचरिउ, वर्धमान चरित आदि) में भगवान महावीर के जन्मोत्सव का इन्द्रों द्वारा कुण्डलपुर में आकर मनाये जाने का सुन्दर वर्णन है। २६०० वर्षों में हुए कालपरिवर्तन के कारण वर्तमान में बिहार प्रान्त के नालंदा जिले में स्थित यह कुण्डलपुर नगरी भले ही अति अल्पक्षेत्र वाली होकर वैभवहीन बन गई, किन्तु यहां के कण-कण में महावीर के जन्म की पवित्रता आज भी विद्यमान है इसीलिए इसकी रज प्राप्त करने हेतु देश के कोने-कोने से दिगम्बर जैन समाज के हजारों श्रद्धालु कुण्डलपुर पहुँचते हैं तथा ‘‘कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानन्द विभो’’आदि पंक्तियों के द्वारा भगवान महावीर की भावभीनी आरती करते हैं। २६००वें जन्मकल्याणक के अवसर पर शुरू हो गया जन्मभूमि का विकास-यूँ तो प्रत्येक नगर एवं ग्राम में प्रतिदिन शासनपति भगवान महावीर के नाम की अनुगूंज रहती ही है और कुण्डलपुर के महावीर के अतिशय से विख्यात ‘‘चांदनपुर महावीर जी’’तीर्थ पर भक्तजन अपनी मनोकामना सिद्धि के लक्ष्य से हजारों दीपक जलाते हैं, सोने-चाँदी के छत्र लगाते हैं तथा खूब चढ़ावा चढ़ाते हैं किन्तु किसी का ध्यान महावीर की वास्तविक जन्मभूमि की ओर नहीं गया कि वहाँ एक दीपक भी रोज जलता है या नहीं? वहाँ तीर्थयात्रियों के ठहरने आदि की व्यवस्था भी है या नहीं? एवं कुण्डलपुर की पवित्र धूलि जगत के लिए कितनी कल्याणकारी है? इसीलिए महावीर का नाम पूजा,चालीसा, आरती आदि के द्वारा जिनमंदिरों तक सीमित होने लगा किन्तु आखिर तो कभी न कभी, कोई न कोई महापुरुष जिनशासन की रक्षा हेतु अग्रसर होता ही है। इसी क्रम में भगवान महावीर के २६००वें जन्मकल्याणक महोत्सव का प्रसंग आया और प्रेरणा मिल गई जैनसमाज की सर्वोच्च साध्वी राष्ट्रगौरव पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की, फिर तो मानो कुण्डलपुर के विकास की स्वर्णिम घड़ियाँ ही आ गर्इं और जनवरी सन् २००२ से यह विकास लक्ष्य शुरू करके सर्वप्रथम २४ मार्च २००२ को प्राचीन मंदिर परिसर में ३६ फुट उत्तुंग भगवान महावीर स्वामी कीर्तिस्तंभ का शिलान्यास किया गया पुनः ‘‘दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (मेरठ) उ.प्र.के अंतर्गत ‘‘भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर दिगम्बर जैन समिति’’ के नाम से एक कमेटी का गठन हुआ जिसके माध्यम से दिनाँक १५ अगस्त २००२ श्रावण शुक्ला सप्तमी को कुण्डलपुर में २ एकड़ जमीन (उत्तरमुखी) क्रय की गई, जहाँ २९ दिसम्बर २००२ को पूज्य गणिनी माताजी के ससंघ मंगल पर्दापण के अवसर पर ‘‘भगवान महावीर मंदिर’’ के शिलान्यासपूर्वक तीर्थ का विकासकार्य प्रारंभ हो गया। पूर्व घोषित महोत्सव के अनुसार दिनाँक ७ फरवरी से १२ फरवरी २००३ तक कुण्डलपुर के इस नवविकसित तीर्थ ‘‘नंद्यावर्त महल’’परिसर में धरती से २५ फुट की ऊँचाई पर निर्मित किये जा रहे जिनमंदिर में भगवान महावीर की अवगाहना प्रमाण ७ हाथ ऊँची (सवा दस फुट) खड्गासन श्वेत पाषाण में निर्मित अतिशयकारी प्रतिमा का ‘‘पंचकल्याणक एवं महाकुंभ मस्तकाभिषेक महोत्सव’’ संघ के सानिध्य में सम्पन्न हुआ। इसी पंचकल्याणक में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की १४ फुट उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा एवं त्रिकाल चौबीसी की ७२ जिनप्रतिमाएँ आदि प्रतिष्ठित हुई हैं अनन्तर ४ जुलाई से ९ जुलाई २००३ तक नवग्रहशांतिजिनमंदिर के ९ जिनबिंबों की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हो चुकी है। तब से तीर्थ पर निरन्तर श्रद्धालु भक्तों एवं पर्यटकों के आवागमन का तांता लगा रहता है।
कुण्डलपुर तीर्थ के नंद्यावर्त महल परिसर में निर्माणाधीन वंदनीय एवं दर्शनीय स्थलों की जानकारी-
१.भगवान महावीर जिनमंदिर-तीर्थ का प्रमुख आकर्षण भगवान महावीर का मूलनायक मंदिर है। जो नीचे से ऊपर (शिखर) तक ७२ फुट ऊँचाई वाला है। इसमें जमीन से २५ फुट की ऊँचाई पर बने मंदिर के अंदर भगवान महावीर की चमत्कारिक खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। उत्तरमुखी इस मंदिर में जाने के लिए नीचे से ऊपर तक ४० सीढ़ियाँ बनी हैं और सामने सड़क से भी सभी जाति के लोग भगवान महावीर के दर्शन कर मनवाञ्छित फल की प्राप्ति करते हैं।
२.भगवान ऋषभदेव जिनमंदिर-महावीर स्वामी के इस जन्मभूमि तीर्थ पर महावीर मंदिर के दार्इं ओर प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की चौदह फुट पद्मासन प्रतिमा इस मंदिर में विराजमान हैं। इनके दर्शन-वंदन करने वालों को युग-युग तक जैनधर्म की प्राचीनता एवं भगवान महावीर से पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के इतिहास का परिचय प्राप्त करने में यह जिनमंदिर निश्चितरूप से सहायक होगा।
३.श्री नवग्रहशांति जिनमंदिर-भगवान महावीर मंदिर के बार्इं ओर दिगम्बर जैनधर्म के अनुसार भारत में प्रथम बार निर्मित किये जा रहे इस मंदिर में नव ग्रहों की शांति को करने वाले नव तीर्थंकर भगवन्तों की प्रतिमाएँ अलग-अलग कमलों पर विराजमान की गईं हैं। शनि, मंगल, गुरु आदि ग्रहों की शांति हेतु नर-नारी इन भगवन्तों की पूजा-अर्चना करते हैं।
४. त्रिकाल चौबीसी जिनमंदिर-भारत की धरती पर जन्मे अनंत तीर्थंकरों में से भूतकाल के चौबीस, वर्तमानकाल के चौबीस एवं भविष्यत्काल के चौबीस इस प्रकार त्रिकाल चौबीसी के ७२ भगवन्तों से समन्वित यह त्रिकाल चौबीसी जिनमंदिर तीन मंजिल ऊँचा बना है। जैनधर्म की शाश्वतसत्ता को दर्शाने वाला यह जिनमंदिर भगवान महावीर की जन्मभूमि से धर्मसूर्य को सदैव उदित करता रहे, यही मंगल कामना है।
५. नंद्यावर्त महल एवं शांतिनाथ जिनालय-इन्द्रों द्वारा सजाए गये जिस सात मंजिले नंद्यावर्त महल में भगवान महावीर का जन्म हुआ था, उस नंद्यावर्त महल का निर्माण भी तीर्थ परिसर में हुआ है। सात मंजिल के स्वरूप को दर्शाने वाले इस महल में भगवान महावीर का पालना एवं उनके जीवन से संबंधित प्राचीन कलाकृतियों का दिग्दर्शन कराया गया है। महल के सबसे ऊपर वाली मंजिल में एक जिनालय है जिसमें भगवान शांतिनाथ, चन्द्रप्रभ एवं पाश्र्वनाथ की भव्य प्रतिमाएँ विराजमान हैं। इसी महल के नाम पर इस नवविकसित तीर्थस्थल का नाम है-नंद्यावर्त महल। भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर का विशेष दर्शनीय यह नंद्यावर्त महल युग-युग तक जन-जन का कल्याण करता हुआ महावीर स्वामी का यश दिग्दिगन्तव्यापी फैलाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है
६. भगवान महावीर स्वामी कीर्तिस्तंभ- ३६ फुट ऊँचे इस कीर्तिस्तंभ का निर्माण पुराने मंदिर परिसर में कराया गया है। इसमें ऊपर दो मंजिलों के चैत्यालयों में भगवान महावीर की ८ प्रतिमाएँ विराजमान हैं तथा नीचे की मंजिल में महावीर स्वामी का जीवनचरित्र आदि उत्कीर्ण है। जिनधर्म की कीर्तिपताका को फहराने वाला यह कीर्तिस्तंभ सदैव कुण्डलपुर की यशवृद्धि करता रहेगा। उपर्युक्त धार्मिक एवं ऐतिहासिक निर्माण के साथ कुण्डलपुर के इस नवविकसित तीर्थ स्थल पर भगवान महावीर की दीक्षामुद्रावाली (पिच्छी-कमण्डलु सहित ) (६ फुट खड्गासन) प्रतिमा एवं उनके कौशाम्बी में हुए ऐतिहासिक आहार वाली प्रतिमा (महावीर स्वामी की आहार लेते हुए एवं आहार देते हुए सती चन्दना की) स्थापित हैं तथा अतिथि भवन (तीन मंजिली धर्मशाला), पानी की टंकी, तीर्थ परिसर का मुख्य द्वार आदि निर्माणाधीन हैं। शासनपति भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर को शत-शत नमन।