राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न माताओं और अपनी-अपनी स्त्रियों के मन को आह्लादित करते हुए धर्म चर्चा में तत्पर हैं। बलभद्र और नारायण के प्रभाव से जो वैभव प्रगट हुआ है उसका वर्णन कौन कर सकता है? अयोध्या नगरी में निवास करने वालों की संख्या कुछ अधिक सत्तर करोड़ है। राम की गोशाला में एक करोड़ से अधिक गायें कामधेनु के समान दूध देने वाली हैं। नंद्यावर्त नाम की उनकी सभा है और हल, मूसल, रत्न तथा सुदर्शन नाम का चक्ररत्न है। उस समय वहाँ पर जैसी सुवर्ण और रत्नों की राशि थी शायद वैसी तीन लोक में भी अन्यत्र उपलब्ध नहीं थी। रामचन्द्र ने हजारों चैत्यालय बनवाये और बड़े-बड़े महाविद्यालयों का निर्माण कराया जिनमें भव्यजीव नित्य ही पूजा-विधान महोत्सव किया करते हैं और विद्यालयों में बालक-बालिकाएं सर्वतोमुखी शिक्षा ग्रहण कर अपना बाल्य जीवन सफल बना रहे हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि अयोध्या नगरी के सभी नर-नारी महान् पुण्य का संचय करने ही यहाँ आये हैं। किमिच्छकदान में जब किसी से कहा जाता है कि ‘जो चाहो-सो ले जावो’ तब वह यही कहता है कि मेरे यहाँ कोई स्थान खाली ही नहीं है। सर्वत्र सुर्वण और रत्नों के ढेर रखे हुए हैं।