शांतिनाथ भगवान की जय, गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि मेरी माँ आपके चरणों में शत शत वंदना, कोटिश: प्रणाम करती हूँ। आपकी कैसे प्रशंसा करूँ, मैं बहुत कुछ कहना चाहती हूँ पर हमेशा देखती हूँ कि नि:शब्द हो जाती हू। आपके गुण महान और हम छोटे-छोटे से शब्दों में भी कुछ नहीं कह पाते। माँ मैं सिर्पक इतना कहना चाहती हूँ कि मैं अपने को भाग्यशाली समझती हूँ कि आप जैसी माँ मुझे मिली।
आपने जब लिखना शुरू किया तो सरस्वती जी आ गई, हम जहाँ भी जाते हैं तो आपके विधान चलते रहते हैं तो कोई बड़े से बड़े आचार्य भी प्रशंसा किये बिना नहीं रहते। हमेशा कहते हैं कि क्या विधान लिखे हैं माताजी ने, क्या शास्त्र लिखे माताजी ने, जहाँ भी जायें अपकी प्रशंसा, आप हम महिलाओं का गौरव हैं, आप हमारा स्वाभिमान हैं, अभिमान हैं, आपने हमको क्या नहीं दिया, भारतवर्ष को क्या नहीं दिया, इतिहास में गोल्डन शब्द में लिखा हुआ आपका नाम है। आपको मैं शत शत नमन करती हूँ, प्रणाम करती हूँ।
रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी आपको शत शत नमन करती हूँ, क्योंकि आज तक हम भाई जी-भाईजी कहते थे, आज से हम आपको स्वामी जी कहेंगे, हम वन्दन करते हैं आपको, आपने तो पद और बिना पद के ही सारा भार संभाला है।
और अब तो आपके कंधों पर और भी भार आ गया है। एक तो एक साथ समाज और धर्म के बीच आप धार्माधिकारी हैं। हमेशा ही आप लोगों ने श्रावक समाज को बताया है, इस समय क्या जरूरत है, धर्म का जागरण धर्म के प्रति जागृति लाना, नहीं तो शायद आज जैन धर्म का उतना पता न चलता जितना कि आप भट्टारक स्वामी जी, पीठाधीश ने उद्धार किया है।
धर्म का संवर्धन, संरक्षण आप ही लोगों ने किया है। आप ही एक कड़ी हैं हम समाज और साधु के बीच में, आप देव शास्त्र गुरु की रक्षा करते हुए उनकी वंदना करते हुए आगे बढेंगे और हमेशा आपने माताजी का कार्य संभाला आप दूसरे पीठाधीश हैं आपको हम नमन करते हैं। आज आपके वस्त्र बदल गये हैं ये तो पीठाधीश के लिए होते ही होते हैं। गेरुआ वस्त्र तो उनको पहने ही पड़ते हैं। साउथ में एक देवेन्द्र कीर्ति स्वामी जी बने हैं, परसों ही हम वहां से आये और आज रवीन्द्र कीर्ति स्वामी जी, हम अपने भाग्य को सराहते हैं कि दो दिन के अंदर हमने दो कीर्ति देख लिये और आपकी कीर्ति हमेशा दशों दिशाओं में फैले ऐसी हमारी प्रार्थना है।