१. तीन लोक रचना बनाकर अर्थात् दोनों पैरों को पैâलाकर दोनों हाथों को कमर पर रखकर खड़े होने से तीन लोक का आकार बन जाता है।
ऐसा आकार बनाकर खड़े होकर कम से कम पाँच मिनट तक तीन लोक के जिनमंदिरों की वंदना करना चाहिए।
२. इसमें नाभि के नीचे अधोलोक के जिनमंदिरों की वंदना करें।
३. नाभि के पास मध्यलोक के जिनमंदिरों की वंदना करें।
४. नाभि के ऊपर से लेकर मस्तक तक ऊर्ध्वलोक के जिनमंदिरों की वंदना करें।
५. पुन: तीनलोक के सामूहिक जिनमंदिरों एवं जिनप्रतिमाओं को नमस्कार करके वन्दना करें।
६. अनन्तर सिद्धशिला के अनन्त सिद्धों को नमस्कार करें।
इस तीन लोक के ध्यान की विधि संक्षेप में दिखाई जा रही है-
१. अधोलोक में भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख जिनमंदिर हैं।
२. मध्यलोक में चार सौ अट्ठावन शाश्वत जिनमंदिर हैं।
३. ऊर्ध्वलोक में वैमानिक देवों के चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस जिनमंदिर हैं।
४. तीनों लोक में आठ करोड़, छप्पन लाख, सत्तानवे हजार, चार सौ इक्यासी, ऐसे शाश्वत जिनमंदिर हैं।
५. इन तीनों लोकों के जिनमंदिर में प्रत्येक में १०८-१०८ जिनप्रतिमाएँ हैं, जिनकी संख्या-९२५ करोड़, ५३ लाख, २७ हजार, ९ सौ ४८ है।
इन सब जिनमंदिर, जिनप्रतिमाओं को मेरा नमस्कार होवे।
६. व्यन्तर देवों के एवं ज्योतिषी देवों के असंख्यात जिनमंदिर हैं, उन सबमें १०८-१०८ ऐसी असंख्यात जिनप्रतिमाएँ हैं उन सबको मेरा नमस्कार होवे।
७. मध्यलोक में, ढाई द्वीप में १७० कर्मभूमियाँ हैं। इनमें जितने भी अर्हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य एवं चैत्यालय हैं, जितने भी कृत्रिम जिनमंदिर हैं, जितनी भी पंचकल्याणक भूमि, निर्वाणभूमि एवं अतिशय क्षेत्र हैं उन सबको मेरा नमस्कार होवे।
८. पुन: मस्तक के अग्रभाग पर अर्द्धचन्द्राकार सिद्धशिला बनाकर-बुद्धि से चिन्तन करते हुए सिद्धशिला पर विराजमान अनन्तानन्त सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार करते हुए नीचे लिखे पद्य को पढ़ें।
पद्य- त्रिभुवन के मस्तक पर सिद्ध-शिला पर सिद्ध अनन्तानन्त।
नमों नमों त्रिभुवन के सभी, तीर्थ को जिससे हो भव अन्त।।१।।
इस प्रकार तीन लोक के ध्यान से अनन्त पुण्य का बंध होता है। असंख्य पापों का नाश एवं भूत-व्यन्तरों के प्रकोप का अभाव तथा रोगोें का नाश होता है एवं संसार भ्रमण समाप्त करने की शक्ति प्रगट होती है।