सुरेन्द्र से पूजित हैं चरण कमल जिनके,ऐसे अमल गुणों से सहित श्री वर्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार करके आस्रव के कारणभूत सत्तावन भेदों को मैं कहूँगा, हे भव्यजीवों! तुम उन्हें सावधानचित्त होकर सुनो!
मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ये आस्रव कहलाते हैं। ये आस्रव के लिए कारणभूत हैं अत: इन्हें आस्रव कह देते हैं। इनके उत्तर भेद क्रम से मिथ्यात्व के पाँच, अविरति के बारह, कषाय के पच्चीस और योग के पंद्रह भेद होते हैं।।२।।
मिथ्यात्व के उदय से जो तत्वों का अश्रद्धान है वह मिथ्यात्व कहलाता है उसके ५ भेद हैं-एकांत, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान।।३।।
अविरति का लक्षण एवं भेद
छिंस्सदिएसुऽविरदी छज्जीवे तह य अविरदी चेव।
इंदियपाणासंजम दुदसं होदित्ति णिद्दिट्ठं।।४।।
षट्स्विन्द्रियेष्वविरति: षड्जीवेषु तथा चाविरतिश्चैव। इन्द्रियप्राणासंयमा द्वादश भवन्तीति निर्दिष्टं।।
पाँच इंद्रिय और मन इन छह इंद्रियों के विषयों से विरक्त नहीं होना और पाँच स्थावर एवं त्रस ऐेसे षट्काय जीवों की विराधना से विरक्त नहीं होना अविरति है। इस प्रकार से इंद्रिय असंयम और प्राणी असंयम के भेद से अविरति के १२ भेद होते हैं।।४।।
सत्य, असत्य, उभय और अनुभय अर्थों में मन, वचन की प्रवृत्ति सत्य मन, सत्य वचन आदि नाम से कही जाती है। इन सत्य मन, असत्य मन की प्रवृत्तियों के निमित्त से जो आत्मा के प्रदेशों में हलन, चलन होता है वह योग कहलाता है अत; इन सत्यमन, वचन के योग से सत्य मनोयोग, असत्य मन, वचन के योग से असत्य मनोयोग आदि उन-उन नाम वाले योग कहलाते हैं। इनके नाम-सत्यमनोयोग, असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्यवचन योग, असत्यवचन योग, उभयवचन योग, अनुभय वचन योग, ये मनोयोग, वचनयोग के आठ भेद हुये।।७।।
औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, वैक्रियक काययोग, वैक्रियकमिश्र काययोग, आहारक काययोग, आहारकमिश्र काययोग और कार्मणयोग ये काययोग के ७ मिलकर योग के पंद्रह भेद होते हैं।।८।।
मिथ्यात्व गुणस्थान तक मिथ्यात्व रहता है, देशसंयत गुणस्थान तक अविरति रहती है, सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान तक कषायें रहती हैं एवं सयोगकेवली पर्यंत योग रहते हैं।।९।।
कौन-कौन से विशेष आस्रव किन-किन गुणस्थानों में होते हैं?
मिथ्यात्व, सासादन और असंयत गुणस्थानों में औदारिकमिश्र, वैक्रियक- मिश्र और कार्मण काययोग होते हैं। छठे गुणस्थान में आहारक, आहारकमिश्र योग होते हैं एवं केवली भगवान के औदारिक मिश्र और कार्मण योग होते हैं।।१०।।