भाई रवीन्द्र कुमार जी अब स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी हो गये हैं, यह जानकर हृदय अत्यन्त आल्हादित हो गया। उनका मार्ग शून्य से शिखर की तरफ है। पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना हो जाता है, फिर पूज्य माताजी के अन्तेवासी भाई रवीन्द्र कुमार जी १० प्रतिमा की दीक्षा लेकर श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी हो गये, तो इसमे विस्मय कैसा । कर्मयोगी तो वह पहले भी थे, लेकिन अब कर्मयोगी के साथ वे धर्मयोगी भी हो गये।
अवसाद सिर्पक एक है कि पहले हम निर्भीकता के साथ उनके कंधे में हाथ डालकर चर्चा किया करते थे, लेकिन अब बहुत विनयपूर्वक वंदना करते हुए सावधानी एवं संयमपूर्वक वार्ता करनी होगी। वीर प्रभु से यही प्रार्थना है कि आप यशस्वी होवें, हम लोगों का मार्गदर्शन करें और वीरशासन को सुदीर्घ करते हुए यथाशीघ्र निग्र्रन्थ दीक्षा धारण करें। पुन: आपके चरणों में वंदना के साथ-