नवल वर्ष में, नवल हर्ष ले, नव पद को करते हैं नमन। नव पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति जी का है सादर अभिवंदन। उत्तरप्रदेश में बाराबंकी, इक छोटा सा है जनपद, उसमें ग्राम टिकैतनगर, महिमा सुन मन होता गद्गद क्या ‘ज्ञानमती’, क्या ‘रत्नमती’, ‘चंदना’, ‘अभय’ ने छोड़ा घर रत्नत्रय पथ चाहने वाले ‘रवीन्द्र’ भी टिक नहीं सके
टिकैतनगर धर्मस्नेही श्री ‘छोटेलाल जी’ और ‘मोहिनी’ का जीवन धन्य संतानों की त्याग, तपस्या और यश का फैला वैभव सन् उन्नीस सौ पचास जब आया, गूंजी रवीन्द्र की किलकारी पुत्र जन्म का आनंद उत्सव, सजी हर्ष की फुलवारी। बहन ‘मैना’ की गोद में खेले, माँ के जैसा प्यार मिला, बी.ए. तक की करी पढ़ाई, फिर तो धर्म का द्वार खुला।
जननी ‘माँ’ भी दीक्षा पाकर फिर रत्नमती कहलाई थी, गृहस्थरूपी कीचड़ में ना फसने की सीख सिखाई थी। सन् बहत्तर अप्रैल माह, नागौर में ब्रह्मचर्य व्रत पाया आचार्य प्रवर श्री धर्मसागर जी का सान्निध्य भी मन भाया मोक्षमार्ग पर चलने की माँ ज्ञानमती ने दिखाई राह। अनुभव के मोती पाये और बढ़ने लगी मोक्ष की चाह।
जम्बूद्वीप हस्तिनापुरी, में विकसित होने लगा संस्थान तबसे पूर्ण समर्पित होकर, थामी अपने हाथ कमान, कावंâदी, प्रयाग, अयोध्या, कुण्डलपुर का किया विकास मांगीतुंगी में अतिशय प्रतिमा, ज्ञानतीर्थ हित किये प्रयास ऋषभदेव विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष पद को किया ग्रहण विद्वानों को गले लगाया, विकसित किया महिला संगठन।
क्षुल्लक मोतीसागर जी का स्वर्ग-लोक हित हुआ प्रयाण, बने आप तब पीठाधीश्वर, पूर्ण हुए सब विधि-विधान। रवीन्द्र जैन से ‘रवीन्द्रकीर्ति’ बने हर्ष समाया सबके मन, ‘उषा’ प्रकाशित, ‘रेखा’ अरुणिम, मन उपवन में खिले ‘सुमन’ ग्रंथ प्रकाश, मंगल अवसर, अंतर्तम यही भाव भरें, रत्नत्रय की दिव्य ज्योति से जीवन में उत्कर्ष रहे। इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ स्वमी जी के चरणों में शत-शत नमन।