श्रीगौतमस्वामी ने जिनचैत्य—जिनप्रतिमाओं की वन्दना की है—
‘‘भवनविमानज्योति–व्र्यंतरनरलोकविश्वचैत्यानि। त्रिजगदभिवन्दितानां, वन्दे त्रेधा जिनेन्द्राणाम्।।८।।’’
अर्थ— भवनवासी, वैमानिक, ज्योतिषी और व्यंतर इन चार प्रकार के देवों के यहाँ तथा नरलोक— मनुष्यलोक में होने वाली अकृत्रिम—कृत्रिम सभी जितनी भी जिनेंद्रदेवों की जिनचैत्य—जिनप्रतिमायें हैं, जो कि तीनों जगत में पूज्य हैं उन सभी की मैं मन वचन काय से वन्दना करता हूँ।।