हमें अच्छी तरह याद है – जब लखनऊ युनिवर्सिटी में रवीन्द्र कुमार अध्ययन करते थे, जैन बाग के जिस कमरे में रहते थे, दो चार फोटो, कैलेण्डर लगा रखे थे, वह अत्यन्त सादगी एवं प्रेरणादायक थे। तभी इनकी सादगी से प्रभावित होकर (समाधिस्थ-मुनि मोतीसागर महाराज) ब्र. मोतीचंद जी ने कहा था कि ‘होनहार विरवान के होत चीकने पात’ की कहावत को चरितार्थ करने वाले भाई रवीन्द्र कुमार स्वयं में एक प्रेरणास्रोत हैं।
पढ़ाई में सच्ची लगन, सहपाठियों के साथ मधुर व्यवहार और परीक्षा में सदैव उत्तीर्ण होने वाले लघु भ्राता रवीन्द्र कुमार सदैव छात्रवृत्ति से गौरवान्वित किये जाते थे। इनकी इच्छा देखकर हमनें टिकैतनगर अपने प्रतिष्ठान के ऊपर एक सुन्दर दुकान बनवाकर नया प्रतिष्ठान प्रारंभ करवाया था। जो अल्प समय में ही प्रगति पर अग्रसर हुई। किन्तु माताजी के संघ से ब्र. मोतीचंद जी पहुँचकर माताजी के दर्शनों को ब्यावर लिवा ले गये।
पश्चात् माताजी के आदेश से पूज्य आचार्य धर्मसागर जी महाराज के दर्शनार्थ नागौर ले गये। जहाँ पर इन्होंने आचार्यश्री से आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया। उस समय हमें बहुत आघात लगा था । पूज्य पिताजी की समाधि २५ दिसम्बर १९६९ को कराने हेतु रविवार के दिन प्रात: रवीन्द्र कुमार लखनऊ से टिकैतनगर पहुँच गये थे। उस समय हम चारों भाई पिताजी के सम्मुख मौजूद थे । अंत समय मे माताजी को याद करते हुए णमोकार मंत्र श्रवण के साथ समाधिस्थ हो गये थे।
पश्चात् परिवार वालों के साथ कुछ दिन रहे। फिर माताजी के संघ में आ गये। संघ में पूज्य माताजी की प्रेरणा, पूज्य चंदनामती माताजी एवं क्षुल्लक मोतीसागर जी महाराज के साथ माताजी की सभी योजनाओं को तन-मन-धन से मूर्तरूप देने में सहयोगी बने। आपकी कर्तव्य निष्ठा एवं सच्ची लगन से ही आप कर्मयोगी बने। माताजी के संघ में रहकर शास्त्रों का, व्याकरण एवं आगम के क्लिष्ट ग्रंथों का अध्ययन किया।
आपकी निर्लोभी प्रवृत्ति, धर्मनिष्ठ कार्य सेवा, विनय एवं लगन प्रारंभिक गुण रहे हैं। पूज्य माताजी ने पीठाधीश स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी पदारोहण करके एक आदर्श प्रस्तुत किया है। जैन समाज की तमाम आशाओं के प्रति पूज्य जननी माँ समाधिस्थ श्री रत्नमती माताजी, पूज्य ज्ञानमती माताजी, पूज्य चंदनामती माताजी, पूज्य अभयमती माताजी के आशीर्वाद रूप सदैव सफल एवं समुन्नत रहेंगे।