इसके आगे स्वयं श्री गौतमस्वामी नवदेवों की संख्या दिखाते हुये कहते हैं—
‘‘इति पंचमहापुरुषा:, प्रणुता जिनधर्मवचनचैत्यानि। चैत्यालयाश्च विमलां, दिशंतु बोिंध बुधजनेष्टाम्।।१०।।’’
अर्थ- इस प्रकार पंचमहापुरुष—पांच परमेष्ठी जिनकी मैंने वन्दना की है। पुन: जिनधर्म, जिनवचन, जिनचैत्य और चैत्यालय ये नव देव मुझे बुधजन इष्ट ऐसी विमल बोधि—रत्नत्रय की प्राप्ति प्रदान करें।’’ संसार में जितने भी पूज्य—वन्दना करने योग्य हैं वे सभी इन नवदेवों में समाविष्ट हैं। अरिहंत देवों के पंचकल्याणक स्थान तीर्थ, मुनियों के निर्वाण व समाधिस्थान आदि तीर्थ भी सब इन्हीं में समाविष्ट हैं।