इस रिपब्लिक डे पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा चीफ गेस्ट थे। जानते हैं रिपब्लिक डे २६ जनवरी को ही क्यों मनाते हैं। साथ ही, हमारे पीएम और अमेरिकी प्रेजिडेंट के काम में क्या में क्या कॉमन है, बता रहे हैं लोकेश के भारती: बात आज से ८६ वर्ष पहले की है। वर्ष था १९२९। जब इंडिया पर अंग्रेजों का शासन था। अंग्रेज लोगों की मांग पर अधिक ध्यान नहीं देते थे। सन् १९२९ में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में हुआ था। जिसकी अध्यक्षता पंडित नेहरू ने की थी। इसमें यह प्रस्ताव पारित किया कि अगर अंग्रेज सरकार २६ जनवरी १९३० तक भारत को डोमिनियन स्टेटस (पूरी आजादी नहीं, पर कई अहम अधिकार) नहीं देगी तो भारत खुद को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा तो भारत खुद को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा। इस मांग को अंग्रेजी सरकार नहीं मानी । तब २६ जनवरी को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा। साथ ही अपने आंदोलन को तेज कर दिया। उस दिन से भारत के आजाद होने (१९४७) तक २६ जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। चूंकि हमें अंग्रेजों से आजादी १५ अगस्त १९४७ को मिली इसलिए इसे ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। पर सत्ता उस वक्त पूरी तरह से जनता के चुने प्रतिनिधियों के हाथी में नहीं आई थी क्योंकि हमारा कॉन्स्टिट्यूशन तैयार भी नहीं हुआ था। २६ नवंबर,१९४९ को भारत का कॉन्स्टिट्यूशन मंजूर किया गया और २४ जनवरी, १९५० को कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली के मेंबर्स के द्वारा इस पर साइन किए गए लेकिन इसे पूरी तरह लागू २६ जनवरी (१९५०) को ही किया गया ताकि २६ जनवरी का महत्व कम न हो।
२६ जनवरी का क्यों कहते हैं रिपब्लिक डे ?
यह एक ऐसी तारीख है जिस दिन देश की सत्ता सही रूप में पब्लिक के हाथों में आ गई। दरअसल, हम खुद ही शासन के लिए प्रतिनिधि चुनते हैं न कि हमारे ऊपर इसे थोपा जाता है या कोई राजशाही है यानी पावर पब्लिक के ही पास है। सीधे शब्दों में कहें तो इंडिया में अगर डिमोकेसी है तो कंस्टिट्यूशन की वजह से। हमारे मूलभूत अधिकार और कत्र्तव्य भी इसमें बतलाए गए हैं। हमें वोट देने और सरकार चुनने का अधिकार भी इसी संविधान ने दिया है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसके अनुसार देश को चलाया जाता है। चूंकि २६ जनवरी को कांन्स्टिट्यूशन लागू हुआ इसलिए इसे रिपब्लिक डे के रूप में मनाते हैं। अमेरिकी प्रेजिडेंट और हमारे पीएम में भूमिका के लिहाज से काभी समानताएं हैं। इंडिया और अमेरिका, दोनों ही देशों में संविधान है पर प्रतिनिधि चुभने का तरीका अलग है। इंडिया में हम पहले सांसद चुनते हैं। उसमें से जिस पार्टी समूह को बहुमत मिलता है वे पीएम का चुनाव करते हैं जबकि अमेरिकी में लोग सीधे प्रेजिडेंट को चुनने के लिए वोट देते हैं। हमारे यहां शासन की सभी शक्तियां पीएम और उनके मंत्रियों के पास होती है। हालांकि ये प्रेजिडेंट के प्रतिनिधि के रूप में ही काम करते हैं, हमारे यहां प्रजिडेंट, पीएम और उनके सहयोगियों की सलाहा पर ही काम करते हैं। प्रेजिडेंट का भाषण भी केद्र सरकार की नीतियां बतलाना ही होता है । कह सकते हैं तो जो भूमिका और अहमियत हमारे यहां पीएम की होती है, अनुमन वही रोल अमेरिका में राष्ट्रपति का होता है।