ज्ञानावरणादि ८ कर्मों की १४८ प्रकृतियों को नाश करने के लिए और आत्मशुद्धि के लिए कर्मदहन व्रत करने की और उसका विधान करने की प्रथा दिगम्बर जैन समाज में प्रचलित है।
इस कर्मदहन व्रत के १५६ उपवास करने होते हैं अर्थात् कर्म की १४८ प्रकृतियों के १४८ उपवास और कर्म नाश होने के बाद सिद्धों के जो आठ गुण प्राप्त होते हैं उनके ८ उपवास करने होते हैं। ये उपवास चाहे जिस दिन नहीं करने चाहिए। निम्न तिथियों में ये १५६ उपवास पूर्ण करने चाहिए।
१. चौथे गुणस्थान में ७ प्रकृतियों का नाश होता है, इसलिए चतुर्थी के ७ उपवास करें।
२. सातवें गुणस्थान में ३ प्रकृतियों का नाश होता है, इसलिए सप्तमी के ३ उपवास करें।
३. नौवें गुणस्थान में ३६ प्रकृतियों का नाश होता है, इसलिए नवमी के ३६ उपवास करें।
४. दसवें गुणस्थान में १ प्रकृति का नाश होता है, इसलिए दशमी का १ उपवास करें।
५. बारहवें गुणस्थान में १६ प्रकृतियों का नाश होता है, इसलिए बारस के १६ उपवास करें।
६. चौदहवें गुणस्थान में ८५ प्रकृतियों का नाश होता है, इसलिए चौदश के ८५ उपवास करें।
७. सिद्धों के अष्टगुणों के कारण अष्टमी के ८ उपवास करें।
इस प्रकार ७±३±३६±१±१६±८५±८·१५६ उपवास कर्मदहन व्रत के करने चाहिए तथा हर एक उपवास के दिन गृहारम्भ का त्याग करके ब्रह्मचर्य धारण कर स्नानादि क्रिया से शरीर तथा वस्त्र की शुद्धि करके श्री जिनालय में आकर श्री अर्हंत भगवान का पंचामृताभिषेक करके देव-शास्त्र-गुरुपूर्वक श्री सिद्धपूजा करें। फिर १०८ जाप्य देवें। कुल १५६ जाप्य हैं। उनमें हर एक उपवास के दिन क्रमश: एक-एक जाप्य को १०८ बार जपना चाहिए।
ये उपवास प्रोषधोपवास ही करने चाहिए अर्थात् पहले दिन एकाशन करके उपवास करें और फिर दूसरे दिन एकाशन करें। इसको प्रोषधोपवास कहते हैं।
यह कर्मदहनव्रत (१५६ उपवास) पूर्ण होने पर फिर उद्यापन करें। उसमें श्री जिनमंदिर में यथाशक्ति अष्ट मंगल द्रव्य और उपकरणादि चढ़ावें तथा मांडना मांड कर वृहत् अभिषेक, जलशुद्धि व सकलीकरणादि को विधिपूर्वक करके यह कर्मदहन व्रत विधान मंगलाष्टक, पुण्याहवाचन व शांतिविसर्जनपूर्वक करें, फिर यथाशक्ति चारों प्रकार का दान करें। उनमें खास करके जैन संस्थाओं के लिए अच्छी रकम विद्यादान में अवश्य निकालें तथा कम से कम १५६ शास्त्रों का दान करें। यदि उद्यापन करने की शक्ति न हो तो यह व्रत दूना करना चाहिए।
चतुर्थी के ७ उपवास के सात मंत्र
१. ॐ ह्रीं मिथ्यात्व-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२. ॐ ह्रीं सम्यक्मिथ्यात्व-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३. ॐ ह्रीं मिश्र-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४. ॐ ह्रीं अनन्तानुबंधिक्रोध-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५. ॐ ह्रीं अनन्तानुबंधिमान-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६. ॐ ह्रीं अनन्तानुबंधिमाया-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७. ॐ ह्रीं अनन्तानुबंधिलोभ-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
सप्तमी के ३ उपवास के तीन मंत्र
१. ॐ ह्रीं नारकायुष्कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२. ॐ ह्रीं तिर्यगायुष्कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३. ॐ ह्रीं देवायुष्कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
नवमी के ३६ उपवास के छत्तीस मंत्र
१. ॐ ह्रीं निद्रानिद्रा-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२. ॐ ह्रीं प्रचलाप्रचला-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३. ॐ ह्रीं स्त्यानगृद्धि-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४. ॐ ह्रीं नरकगति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५. ॐ ह्रीं तिर्यग्गति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६. ॐ ह्रीं नरकगत्यानुपूर्वी-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७. ॐ ह्रीं तिर्यग्गत्यानुपूर्वी-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८. ॐ ह्रीं एकेन्द्रिय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
९. ॐ ह्रीं द्वीन्द्रिय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१०. ॐ ह्रीं त्रीन्द्रिय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
११. ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रिय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१२. ॐ ह्रीं स्थावर-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१३. ॐ ह्रीं आतप-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१४. ॐ ह्रीं उद्योत-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१५. ॐ ह्रीं साधारण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१६. ॐ ह्रीं सूक्ष्म-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१७. ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानावरणक्रोध-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१८. ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानावरणमान-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१९. ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानावरणमाया-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२०. ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानावरणलोभ-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२१. ॐ ह्रीं अप्रत्याख्यानावरणक्रोध-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२२. ॐ ह्रीं अप्रत्याख्यानावरणमान-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२३. ॐ ह्रीं अप्रत्याख्यानावरणमाया-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२४. ॐ ह्रीं अप्रत्याख्यानावरणलोभ-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२५. ॐ ह्रीं नपुंसकवेद-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२६. ॐ ह्रीं स्त्रीवेद-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२७. ॐ ह्रीं पुरुषवेद-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२८. ॐ ह्रीं हास्य-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२९. ॐ ह्रीं रति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३०. ॐ ह्रीं अरति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३१. ॐ ह्रीं शोक-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३२. ॐ ह्रीं भय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३३. ॐ ह्रीं जुगुप्सा-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३४. ॐ ह्रीं संज्वलनक्रोध-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३५. ॐ ह्रीं संज्वलनमान-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३६. ॐ ह्रीं संज्वलनमाया-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
दशमी के १ उपवास के एक मंत्र
१. ॐ ह्रीं संज्जवलनलोभ-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
बारस के १६ उपवास के सोलह मंत्र
१. ॐ ह्रीं निद्रा-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२. ॐ ह्रीं प्रचला-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३. ॐ ह्रीं मतिज्ञानावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४. ॐ ह्रीं श्रुतज्ञानावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५. ॐ ह्रीं अवधिज्ञानावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६. ॐ ह्रीं मन:पर्ययज्ञानावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७. ॐ ह्रीं केवलज्ञानावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८. ॐ ह्रीं चक्षुर्दर्शनावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय्ा नम:।
९. ॐ ह्रीं अचक्षुर्दर्शनावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१०. ॐ ह्रीं अवधिदर्शनावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
११. ॐ ह्रीं केवलदर्शनावरण-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१२. ॐ ह्रीं दानांतराय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१३. ॐ ह्रीं लाभान्तराय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१४. ॐ ह्रीं भोगान्तराय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१५. ॐ ह्रीं उपभोगान्तराय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१६. ॐ ह्रीं वीर्यान्तराय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
चौदस के ८५ उपवास के ८५ मंत्र
१. ॐ ह्रीं असातावेदनीय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२. ॐ ह्रीं औदारिकशरीर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३. ॐ ह्रीं वैक्रियिकशरीर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४. ॐ ह्रीं आहारकशरीर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५. ॐ ह्रीं तैजसशरीर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६. ॐ ह्रीं कार्मणशरीर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७. ॐ ह्रीं औदारिकबंधन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८. ॐ ह्रीं वैक्रियिकबंधन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
९. ॐ ह्रीं आहारकबंधन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१०. ॐ ह्रीं तैजसबंधन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
११. ॐ ह्रीं कार्मणबंधन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१२. ॐ ह्रीं औदारिकसंघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१३. ॐ ह्रीं वैक्रियिकसंघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१४. ॐ ह्रीं आहारसंघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१५. ॐ ह्रीं तैजससंघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१६. ॐ ह्रीं कार्मणसंघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१७. ॐ ह्रीं औदारिकाङ्गोपाङ्ग-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१८. ॐ ह्रीं वैक्रियिकाङ्गोपाङ्ग-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
१९. ॐ ह्रीं आहारकाङ्गोपाङ्ग-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२०. ॐ ह्रीं समचतुरस्रसंस्थान-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२१. ॐ ह्रीं न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२२. ॐ ह्रीं स्वातिसंस्थान-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२३. ॐ ह्रीं वामनसंस्थान-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२४. ॐ ह्रीं कुब्जकसंस्थान-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२५. ॐ ह्रीं हुण्डकसंस्थान-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२६. ॐ ह्रीं वङ्कावृषभनाराचसंहनन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२७. ॐ ह्रीं वङ्कानाराचसंहनन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२८. ॐ ह्रीं नाराचसंहनन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
२९. ॐ ह्रीं अर्धनाराचसंहनन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३०. ॐ ह्रीं कीलकसंहनन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३१. ॐ ह्रीं असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३२. ॐ ह्रीं श्यामवर्ण-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३३. ॐ ह्रीं हरिद्वर्ण-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३४. ॐ ह्रीं पीतवर्ण-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३५. ॐ ह्रीं अरुणवर्ण-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३६. ॐ ह्रीं श्वेतवर्ण-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३७. ॐ ह्रीं तिक्तरस-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३८. ॐ ह्रीं कडुकरस-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
३९. ॐ ह्रीं मधुरस-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४०. ॐ ह्रीं आम्लरस-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४१. ॐ ह्रीं कषायरस-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४०. ॐ ह्रीं मुदुस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४३. ॐ ह्रीं कठोरस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४४. ॐ ह्रीं शीतस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४५. ॐ ह्रीं उष्णस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४६. ॐ ह्रीं रुक्षस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४७. ॐ ह्रीं स्निग्धस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४८. ॐ ह्रीं गुरुस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
४९. ॐ ह्रीं लघुस्पर्श-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५०. ॐ ह्रीं सुगंध-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५१. ॐ ह्रीं दुर्गन्ध-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५२. ॐ ह्रीं देवगत्यानुपूर्वी-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५३. ॐ ह्रीं अगुरुलघु-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५४. ॐ ह्रीं प्रत्येक-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५५. ॐ ह्रीं उच्छवास-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५६. ॐ ह्रीं उपघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५७. ॐ ह्रीं शुभविहायोगति-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५८. ॐ ह्रीं अशुभविहायोगति-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
५९. ॐ ह्रीं अपर्याप्त-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६०. ॐ ह्रीं स्थिर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६१. ॐ ह्रीं अस्थिर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६२. ॐ ह्रीं शुभ-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६३. ॐ ह्रीं अशुभ-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६४. ॐ ह्रीं दुर्भग-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६५. ॐ ह्रीं सुस्वर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६६. ॐ ह्रीं दु:स्वर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६७. ॐ ह्रीं अनादेय-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६८. ॐ ह्रीं अयशो-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
६९. ॐ ह्रीं परघात-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७०. ॐ ह्रीं निर्माण-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७१. ॐ ह्रीं नीचगोत्र-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७२. ॐ ह्रीं देवगति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७३. ॐ ह्रीं सातावेदनीय-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७४. ॐ ह्रीं मनुष्यायु:-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७५. ॐ ह्रीं मनुष्यगति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७६. ॐ ह्रीं मनुष्यगत्यानुपूर्वी-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७७. ॐ ह्रीं पंचेन्द्रियजाति-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७८. ॐ ह्रीं त्रस-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
७९. ॐ ह्रीं बादर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८०. ॐ ह्रीं पर्याप्ति-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८१. ॐ ह्रीं सुभग-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८२. ॐ ह्रीं आदेय-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८३. ॐ ह्रीं उच्चगोत्र-कर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८४. ॐ ह्रीं यशो-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
८५. ॐ ह्रीं तीर्थंकर-नामकर्मरहिताय सिद्धाय नम:।
इस प्रकार १४८ कर्म-प्रकृतियों का क्षय कर आत्मा मोक्ष को चला जाता है। फिर वह संसार में कभी नहीं आता है। मुक्त आत्मा को सिद्ध कहते हैं सिद्ध अवस्था में उसके अनन्त गुण प्रगट होते हैं उनमें आठ गुण मुख्य हैं। इन आठ गुणोें वâे अष्टमी के आठ उपवास कर प्रत्येक दिन क्रम से नीचे लिखे आठ मंत्रों की जाप देनी चाहिए।
अष्टमी के आठ उपवास के ८ मंत्र
१. ॐ ह्रीं सम्यक्त्व-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
२. ॐ ह्रीं अनन्तदर्शन-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
३. ॐ ह्रीं अनन्तज्ञान-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
४. ॐ ह्रीं अनन्तवीर्य-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
५. ॐ ह्रीं सूक्ष्मत्व-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
६. ॐ ह्रीं अमूर्त्तिक-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
७. ॐ ह्रीं अगुरुलघु-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।
८. ॐ ह्रीं अव्याबाध-गुणसहिताय सिद्धाय नम:।