पूज्य स्वस्तिश्री बालब्रह्मचारी कर्मयोगी रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का जीवन सराहनीय प्रशंसनीय एवं अभिनंदनीय है
यह हम लोगों का सौभाग्य है कि १०वीं प्रतिमाधारी स्वामी जी एक नैष्ठिक एवं धर्मकार्य सम्पन्न कराने में अनूठा उदाहरण है। आप जैसा श्रावक धर्म का पूरा आचरण करते हुए सभी धार्मिक क्षेत्रों में सरलता, सहिष्णुता, उदारता एवं विवेक पूर्ण कार्य को संचालित करने वाला दूसरा कोई भी नहीं है। यह तो मानना ही होगा कि इस हीरे को तरासने में परमपूज्य प्रथम गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का परम वरदहस्त रहा है।
आपका जन्मस्थल टिकैतनगर (बाराबंकी) अवध प्रान्त रहा है। स्वामी जी ने आपने चारित्र से कई युवा पीढ़ी को सन्मार्ग एवं मोक्षमार्ग की ओर चलने का रास्ता प्रशस्त किया है। मैंने मेरे जीवन में १ साल में ५ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव अथ से इति पर्यन्त करने वाला आप जैसा महात्मा नहीं देखा।
आपने जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर पर भगवान महावीर मंदिर, जम्बूद्वीप, ध्यान मंदिर, कैलाशपर्वत पर ७२ जिन की रचना, ह्रीं मंदिर, ३१ फुट उत्तुंग भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा तथा अद्वितीय तेरहद्वीप रचना, कीर्तिस्तंभ, तीनलोक रचना, तीनमूर्ति भगवान ऋषभदेव, भरत, भगवान बाहुबली का मंदिर तथा रत्नों की प्रतिमाओं को विराजमान एवं सहस्रकूट चैत्यालय, नवग्रह शांति मंदिर, ॐ मंदिर की रचना, विदेह क्षेत्र में स्थित २० तीर्थंकर रचना, वासुपूज्य भगवान का मंदिर, भूत-भविष्य-वर्तमान तीर्थंकरों की ७२ रत्न प्रतिमा, अयोध्या ऋषभदेव तपस्थली का नवनिर्माण, इलाहाबाद-प्रयाग में कैलाशपर्वत, समवसरण मंदिर एवं भगवान ऋषभदेव की १००० साल तपस्या की प्रतिकृति रूप प्रतिमा तथा कावंâदी भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमि, भगवान महावीर जन्मस्थली कुण्डलपुर आदि तीर्थों का विकास किया है।
इन कार्यों का निर्देशन, मार्गदर्शन रचनाओं की कल्पना का श्रेय परमपूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को ही जाता है। लेकिन यह सभी कार्य सम्पन्न कराने में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी, स्व. क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज एवं रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का बहुत योगदान रहा है।
आज भी विश्व विख्यात प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की १०८ फुट विशालकाय मूर्ति निर्माण कमेटी के अध्यक्ष आप अत्यंत सुचारू रूप से कार्य सम्पन्न करा रहे हैं। इसी तरह त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर, अयोध्या दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली प्रयाग, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर दि. जैन समिति, अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद आदि स्थानों के अध्यक्ष के रूप में आप पदभार संभाल रहे हैं। आप गुणवंत-पुण्यवंत एवं भाग्यवंत हैं।
जिनको समय-समय पर पूज्य ज्ञानमती माताजी का मार्गदर्शन प्राप्त होता है। आपने माताजी के लिखित २५० से अधिक ग्रंथों को प्रकाशित करके उसकी लाखों प्रतियाँ प्रकाशित की है।
१६ साल से उनके नित्य संपर्क में रहते हुए मैंने उनको प्रशंसा, बड़ापन, प्रसिद्धी से दूर देखा है। क्रोध पर उन्होंने विजय प्राप्त की है तथा मोह से दूर हैं। २४ तीर्थंकरों की १६ जन्मभूमियों में से ९ जन्मभूमियों का विकास करने में सम्पूर्ण सफलता माताजी के निर्देशन में आपने प्राप्त की है। आपने माताजी की प्रेरणा से न्यूयार्क में जाकर धर्म प्रचार किया है।
अंतर्राष्ट्रीय कार्य किये हैं। आपने पूज्य माताजी की प्रेरणा से कई तीर्थों का निर्माण, मंदिरों का निर्माण, कई पंचकल्याणक महोत्सव सम्पन्न किये हैं। पूरे देश में रथों का प्रवर्तन कराना, कई विधानों का आयोजन, नियोजन सफलतापूर्वक किया है।
आपने प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, कई गणमान्य नेता जो माताजी के दर्शन एवं कार्यक्रम में आते हैं, उन कार्यक्रमों का नियोजन आयोजन किया है। महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभाताई पाटिल जब पूज्य माताजी से आशीर्वाद लेने हस्तिनापुर आई, तो उस कार्यक्रम का पूरा नियोजन एवं संचालन आपके नेतृत्व में हुआ। यह कहते हुए गर्व होता है कि आपने समाज के कई वाद-विवादों का निपटारा किया है।
कतिपय मंदिर और उससे संबंधित लगभग २०० बिल्डिंग का कार्य सानंद पूरा किया है और १०००० से ज्यादा दिगम्बर जैन मूर्तियाँ पद्मासन एवं कायोत्सर्ग में माताजी के मार्गदर्शन में विराजमान की हैं। यह चरित्र देखकर ऐसा लगता है कि आप एक महान मोक्षमार्ग प्रशस्त करने का बड़ा भारी उपक्रम कर रहे हैं। आपकी ९ बहनें, ४ भाई सब परिवार १७५ की संख्या तक पहुँचा है।
आपके पिता श्रीमान छोटेलाल जी गोयल सर्राफ तथा माता परमपूज्य वात्सल्यमूर्ति धर्मनिष्ठ आर्यिका रत्नमती माताजी जिन्होंने परमपूज्य ज्ञानमती माताजी से दीक्षा लेकर मोक्षमार्ग प्रशस्त किया है। दो उदाहरण देश में प्रसिद्ध हैं एक चारित्र चक्रवर्ती शांतिसागर जी महाराज ने अपने बड़े भाई को दीक्षा दी तथा बड़े माताजी ज्ञानमती माताजी ने अपनी माँ को दीक्षा दिलाकर अनूठा उदाहरण स्थापित किया है।
जल्द ही भगवान ऋषभदेव की विशालकाय १०८ फुट दिगम्बर जैन मूर्ति जो मांगीतुगी में बन रही है, उसका स्वरूप तरासने का काम माताजी के निर्देशन में तथा स्वामी जी के अध्यक्षता में शुरू होने जा रहा है। आपका जन्म श्रुतपंचमी के शुभ मुहूर्त का है। आपका अत्यन्त प्रेरणादायी, प्रभावशाली धार्मिक कार्य और छोटे-बड़े जीवों के प्रति करुणाभाव मैत्रीभाव रहे। आपका मंगल आशीर्वाद सभी को प्राप्त होता रहे।
मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे आपके मार्गदर्शन में कार्य करने का, सेवा करने का मौका मिला। आपका जीवन आरोग्यमय दीर्घायु हो, यही मंगल कामना करता हूँ।