पूज्य १०५ क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज (मुनि श्री मोतीसागर जी के रूप में सल्लेखना प्राप्त) के पश्चात् ‘जम्बूद्वीप ज्ञानपीठ’ का कार्यभार आदरणीय ब्रह्मचारी रवीन्द्रकुमार भाई जी के सबल कंधों को सौंपा गया है।
वह चारित्रचन्द्रिका परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती जी द्वारा उठाया गया स्वागत योग्य कदम है। ब्र. भाई जी के समग्र जीवन में जो प्रतिफल सामने आया है, उसके सामने ‘कर्मयोगी’ की उपाधि भी लघुता को प्राप्त होती है।
पूज्य माताजी के सपनों को साकार करने, जम्बूद्वीप के संरक्षण, विकास और प्रभावना, माताजी के ज्ञानगौरव को प्रकाशित करने, जम्बूद्वीप को ज्ञानपीठ के रूप में विकसित करने, कल्याणक तीर्थों के विकास आदि धार्मिक कार्यों को सम्पन्न करने में ये लौहपुरुष पुरोधा अदम्य साहस और उत्साह की प्रतिमूर्ति के रूप में प्रकट हुए हैं।
वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला, शोधकार्य, माताजी व संघस्थ साधकों द्वारा रचित बृहज्जिनवाणी भंडार के प्रकाशन, राष्ट्र में जैनधर्म की गरिमा वृद्धिंगत करने, तीर्थंकर परम्परा के मूल उपदेशों को विकृत करने के प्रयत्नों को निरसित करने एवं राष्ट्रीय स्तर पर जैनधर्म की प्रतिष्ठा, प्रभावना का जो कार्य कर्मयोगी महानुभाव द्वारा सम्पादित किया गया है, वह युगों-युगों तक स्मरणीय रहेगा। उनका मुस्कराता ‘वदनं प्रसाद सदनं सम्पत्तौ च विपत्ती च महतामेकरूपता’ का प्रतीक है।
क्रोध तो मानों उनके स्वभाव में ही नहीं है। महानुभावों को अपने अनुकूल बनाने की कला यदि किसी से सीखने हो, तो वह भाई जी के व्यक्तित्व में मिलती है। धर्म के करने में वे कभी थके नहीं, हारे नहीं, चूके नहीं, रुके नहीं। विपरीत परिस्थितियों में भी कार्य सफल करने की कला के वे माहिर हैं।
आचरण के धनी हैं । ज्ञान प्रसार हेतु समर्पित हैं। वर्तमान परिवेश में जो महत्वकार्य पिच्छीधारी साधक महानुभाव से संभवत: सिद्ध न हो सके, उसकी सफलता के लिए १०वीं प्रतिमा पदस्थ इन साधक का जम्बूद्वीप ज्ञानपीठ के पीठाधीश पद पर विराजमान होना जैन समाज के लिए उन्नति कर देना परम आदरणीय श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के हेतु बधाई। वे निरन्तर स्वपर कल्याण में रत रहकर गौरव पद प्राप्त करें, यही मंगलकामना है।