ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र कुमार जैन का जैन संस्कृति के गौरव जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के पीठाधीश बनना धर्म और समाज दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जम्बूद्वीप ऐसी धरोहर है, जो सम्पूर्ण विश्व में जैनधर्म-संस्कृति की यशोगाथा गा रही हैं इतनी विशाल और विश्व विख्यात जम्बूद्वीप प्रतिकृति का संरक्षण और संवर्धन कोई प्रज्ञा और प्रतिभा का धनी कर्मयोगी रवीन्द्र कुमार जैन सदृश व्यक्ति ही करने में सक्षम था।
इसीलिए तत्त्व विद्या एवं शताधिक ग्रंथों की रचयित्री जिनधर्मप्रभाविका गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने तीर्थ निर्माण और जिनमंदिर निर्माण कराने में पूर्ण सक्षम लोकप्रिय व्यक्तित्व के धनी ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र कुमार जैन को दश प्रतिमा के व्रत धारण कराकर जम्बूद्वीप – हस्तिनापुर के पीठाधीश पद पर अधिष्ठित कराकर समाज को गौरवान्वित किया।
ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र कुमार जैन का सम्पूर्ण जीवन समाज को समर्पित तो था ही, अब पीठाधीश के रूप में धर्म और समाज के संवर्धन में निरन्तर समर्पित रहेगा। पीठाधीश पद पर अधिष्ठित होने के अनन्तर वे समाज और देश में पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी नाम से विद्युत हुए। उनका वात्सल्य और सरल व्यवहार प्रशंसनीय है। विद्वानों के साथ तो इनका व्यवहार सदैव मधुर रहा है।
इनकी कार्यक्षमता अद्भुत है। एक ही दिन में अनेक नगरों-उपनगरों में धर्म प्रभावना कराने में समर्थ हैं। जिनमंदिरों के निर्माण कराने में विज्ञ हैं, इन्होंने मांगीतुंगी, तीर्थराज प्रयाग, अयोध्या, काकंदी, कुण्डलपुर, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर सहित अनेक स्थानों पर अपनी देख-रेख में जिनमंदिरों का निर्माण कराकर महनीय पुण्य अर्जित किया है। कहा भी है-
दिनैकजात्सत्पुण्यं चैत्यगेहकरस्य यत्।
अनेक भव्यसंयोगाद् वत्तुं क: स्यात्क्षमो बुध:।।
जिनमंदिर बनवाने वाले को एक दिन में जो उत्तम पुण्य होता है, अनेक मांगलिक पदार्थों के संयोग होने से उसे कहने के लिए कौन विद्वान् समर्थ है। जिनमंदिरों और जैन तीर्थों के निर्माण में समर्पित श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी का यश सर्वत्र वायु के समान फैल रहा है। मैं तो व्यक्तिगत रूप से इनसे १९७७ से परिचित और संबद्ध हूँ। मैंने इनकी अनेक विशेषताएँ देखी हैं।
ये कभी भी किसी भी प्रकार का अभिमान नहीं करते और दूसरे की बात को धैर्यपूर्वक सुनकर सहजता और सरलता से विचार करते हैं। गणिनीप्रमुख आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी और आर्यिका श्री चंदनामती माताजी, आर्यिका श्री अभयमती माताजी और क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज की चर्या/साधना की अनुकूलताओं को बनाने के लिए सतत सहयोग देते रहे हैं और दे रहे हैं। संस्थाओं को चलाने की जो कला होती है, उसमें ये पूर्ण दक्ष हैं।
हम पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं और भावना करते हैं कि इनके द्वारा जैनधर्म की महती प्रभावना हो। देव-शास्त्र-गुरु भक्ति के साथ में तीर्थंकरों की जन्मभूमियों के विकास को कराकर जैन संस्कृति के समुन्नायक बनकर विश्व में कीर्तिमान स्थापित करें।