तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ जिसका दूसरा नाम मोक्षशास्त्र भी है, इसमें दश अध्याय हैं। दिगम्बर जैन परंपरा में संस्कृत भाषा में यह पहला सूत्रग्रंथ है। एक-एक अध्याय को आश्रित करके इसके १० व्रत किये जाते हैं। व्रत में भगवान का पंचामृत अभिषेक करके पूजन करें। सरस्वती प्रतिमा या श्रुतस्कंध यंत्र या सरस्वतीयंत्र का पंचामृत अभिषेक करके तत्त्वार्थ सूत्र की पूजा करें।
समुच्चय मंत्र—ॐ ह्रीं दशाध्यायसहिततत्त्वार्थसूत्रमहाशास्त्रेभ्यो नम:।
प्रत्येक व्रत के पृथव्â-पृथव्â मंत्र—
१. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रप्रथमाध्यायस्य सम्यग्दर्शनादित्रयस्त्रिंशत्सूत्रेभ्यो नम:।
२. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रद्वितीयाध्यायस्य औपशमिकादित्रिपंचाशत्सूत्रेभ्यो नम:।
३. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रतृतीयाध्यायस्य रत्नशर्करादि-एकोनचत्वािंरशत्सूत्रेभ्यो नम:।
४. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रचतुर्थाध्यायस्य देवाश्चतुर्णिकाया आदि द्विचत्वािंरशत्सूत्रेभ्यो नम:।
५. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रपंचमाध्यायस्य अजीवकायादि द्विचत्वािंरशत्सूत्रेभ्यो नम:।
६. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रषष्ठाध्यायस्य कायवाङ्मन:कर्मयोगइत्यादि सप्तिंवशतिसूत्रेभ्यो नम:।
७. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रसप्तमाध्यायस्य िंहसानृतस्तेयादि एकोनचत्वािंरशत्सूत्रेभ्यो नम:।
८. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्राष्टमाध्यायस्य मिथ्यादर्शनाविरत्यादि-षड्िंवशतिसूत्रेभ्यो नम:।
९. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रनवमाध्यायस्य आस्रवनिरोध:संवर आदिसप्तचत्वािंरशत्सूत्रेभ्यो नम:।
१०. ॐ ह्रीं तत्त्वार्थसूत्रदशमाध्यायस्य मोहक्षयाज्ज्ञानादि नवसूत्रेभ्यो नम:।
इस व्रत को पूर्ण कर उद्यापन में तत्त्वार्थसूत्र की पूजा व श्रुतस्कंध विधान करके तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ छपाकर ज्ञानदान में चतुर्विध संघ को प्रदान करें। दश-दश उपकरणादि मंदिर जी में भेंट देवें। यथाशक्ति व्रत पूर्णकर श्रुतज्ञान की वृद्धि करके केवलज्ञान को प्राप्त करने में अपनी आत्मा को सफल बनावें।