यह व्रत ३३ प्रकार की अत्यासादना को दूर करके आत्मशुद्धि के लिए किया जाता है। इसमें ३३ व्रत होते हैं।
प्रथमत: समुच्चय मंत्र है—
पुन: पाँच महाव्रत के ५, पाँच समिति के ५, तीनगुप्ति के ३ ऐसे १३ व्रत हैं। पाँच अस्तिकाय के ५, छह षट्कायिक जीव के ६ और नव पदार्थ के ९ ऐसे कुल—
५±५±३±५±६±९·३३ व्रत हुुये हैं।
इनकी उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार और जघन्य एकाशन है। इस व्रत का फल चारित्र की प्राप्ति और परंपरा से मोक्ष की प्राप्ति है।
समुच्चय मंत्र-
ॐ ह्रीं अर्हं असिआउसा त्रयस्त्रिंशदत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१।।
प्रत्येक व्रत के पृथव्â-पृथक् मंत्र
ॐ ह्रीं अर्हं अहिंसामहाव्रतस्यात्यासादना-त्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं सत्यमहाव्रतस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं अचौर्यमहाव्रतस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मचर्यमहाव्रतस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं अपरिग्रहमहाव्रतस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ईर्यासमिते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं भाषासमिते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं एषणासमिते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं आदाननिक्षेपणसमिते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं उत्सर्गसमिते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं मनोगुप्ते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं वचोगुप्ते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं कायगुप्ते-रत्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं जीवास्तिकायस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं पुद्गलास्तिकायस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं धर्मास्तिकायस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं अधर्मास्तिकायस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं आकाशास्तिकायस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं पृथ्वीकायिकस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं अप्कायिकस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं तेज:कायिकस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं वायुकायिकस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं वनस्पतिकायिकस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रसकायिकस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२४।।
ॐ ह्रीं अर्हं जीवपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं अजीवपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२६।।
ॐ ह्रीं अर्हं आस्रवपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२७।।
ॐ ह्रीं अर्हं बंधपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२८।।
ॐ ह्रीं अर्हं संवरपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।२९।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्जरापदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।३०।।
ॐ ह्रीं अर्हं मोक्षपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।३१।।
ॐ ह्रीं अर्हं पुण्यपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।३२।।
ॐ ह्रीं अर्हं पापपदार्थस्यात्यासादनात्यागायानुष्ठित-प्रोषधोद्योतनाय नम:।।३३।।
ॐ ह्रीं अर्हं सम्यग्दर्शनाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं सम्यग्ज्ञानाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं सम्यक्चारित्राय नम:।।३।।