किञ्चिद्धितं प्रियं चोत्तं किञ्चिच्च हितमप्रियम् ।
किश्चित्प्रियं सदहितं परं चाहिमप्रियम् ।।११०।।
अन्त्यद्वयं परित्यज्य शेषाभ्यां भाषता हितम्।
इति निश्चित्य वैलासं तदेवागम्य दर्पिणः।।१११।।
वचन चार प्रकार के होते हैं—कुछ वचन तो हित और प्रिय दोनों ही होते हैं, कुछ हित और अप्रिय होते हैं, कुछ प्रिय होकर अहित होते हैं और कुछ अहित तथा अप्रिय होते हैं। इन चार प्रकार के वचनों में अन्त के दो वचनों को छोड़कर शेष दो प्रकार के वचनों से हित का उपदेश दिया जा सकता हेै।