(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. सीकर का सौभाग्य।
२. संयमियों को जिन दीक्षा दिलवायी।
३. माताजी द्वारा कर्तृत्वबुद्धि का त्याग।
४. बाबूलाल जी जमादार का सीकर आगमन, माताजी से प्रभावित हुए।
५. सब समस्या का समाधान-आर्यिका ज्ञानमती।
६. माताजी द्वारा संघ को लब्धिसार आदि पढ़ाना।
७. माता मोहिनी जी को संयम पर आरूढ़ किया।
८. अन्य जो भी आये कुछ-कुछ व्रत पाये।
जैसे सब सुमनों में सुंदर, होता है गुलाब का फूल।
जैसे सब नदियों में पावन, होते हैं गंगा के कूल।।
जैसे संत चरित होता है, सुंदर बाहर औ भीतर।
वैसे ही मरु में गुलशन-सा, लगता है सुंदर सीकर।।३९०।।
उन प्यासों की बात करो तुम, जिनको मिला न हो पानी।
मिल जाये पीने को अमृत, जीवन होता कल्याणी।।
सीकर को शुभयोग मिला जब, फूला नहीं समाया था।
ईसा सन् उन्नीस-सौ इकसठ, पुण्य वर्ष यह आया था।।३९१।।
ना जाने कितने वर्षों का, महा पुण्य फलवंत हुआ।
शिवसागर आचार्य श्री का, मंगल नगर-प्रवेश हुआ।।
धन्य जन्म सब ही ने माना, बरसी मरु में अमृतधार।
आचार्यश्री से किया निवेदन, कर दो जीवन का उद्धार।।३९२।।
मार्ग-गली-चौक-चौराहे, गये सजाये भली प्रकार।
आचार्य संघ किया अभिनंदन, पग प्रक्षालन, आरती उतार।।
चातुर्मास हुआ स्थापित, अति उत्साहमयी वातास।
अद्वितीय उपलब्धी लाया, सीकर का यह चातुर्मास।।३९३।।
श्रद्धा-ज्ञान-त्याग-त्रिवेणी, बहने लगी नगर प्रांगण।
सन्निधान आचार्यश्री के, हुआ दीक्षा का आयोजन।।
दीक्षा क्या है पुनर्जन्म है, साधु सुबुध इसे पाते हैं।
भव-तन-भोग विरक्त भव्य ही, दीक्षा को ले पाते हैं।।३९४।।
निरापेक्ष निस्पृह साध्वी हैं, पूज्य आर्यिका ज्ञानमती।
पर कल्याण निरत नित रहतीं, प्रतिफल चाह नहीं रखतीं।।
राजमल्ल-जिनमति-अंगूरी, रतनीबाई संभवमती।
दत्त प्रेरणा संयम पथ की, अंत दीक्षा दिलवा दी।।३९५।।
किन्तु आर्यिका ज्ञानमती ने, इसका कुछ न श्रेय लिया।
कर्तृत्वबुद्धि को त्याग आपने, पात्र पुण्य को श्रेय दिया।।
धन्य-धन्य माताजी सचमुच, आप तो हैं आदर्श महान्।
सब कुछ करके, किया न कुछ भी, जो माने वह है विद्वान्।।३९६।।
पंडित जी श्री बाबूलालजी, जमादार सीकर आये।
जाति-व्यवस्था, यज्ञोपवीत के, प्रमाण बहुत से दिखलाये।।
हुए प्रभावित माताजी से, श्रद्धा रखने लगे अपार।
रहे ज्ञान ज्योतिरथ संचालक, माना माता का उपकार।।३९७।।
ज्ञानमती माताजी ऊपर, आचार्यश्री को था विश्वास।
कोई जटिल समस्या आती, समाधान माताजी पास।।
कभी विशिष्ट प्रवचन करना हो, देते ज्ञानमती आदेश।
आज तुम्हारा प्रवचन होगा, कठिन समस्या, विषय विशेष।।३९८।।
अभीक्ष्ण ज्ञान योगिनी माता, अध्ययन-अध्यापन ही काम।
किसने, क्या, लिक्खा है कहाँ पर, पृष्ठ, पंक्तियाँ याद तमाम।।
कहते सब अवतार शारदा, पूर्व जन्म श्रम अनथक है।
ज्ञानमती मस्तिष्क के भीतर, कोई कम्प्यूटर फिट है।।३९९।।
जिनमत्यादि शिष्यमंडली, का लखकर दीक्षा संस्कार।
माताजी को प्राप्त हुआ ज्यों, अनुपम खुशियों का संसार।।
गुरु की सदा भावना रहती, शिष्य चढ़ें उन्नति सोपान।
जिनवर दीक्षा धारण करके, प्राप्त करें अक्षय निर्वाण।।४००।।
संघस्थों को माताजी ने, यहाँ पढ़ाया लब्धिसार।
प्रमेय कमल मार्तण्ड पढ़ाया, जिनमति को देकर विस्तार।।
पहले माँ ने नहीं पढ़ा था, ग्रंथ न्याय का महाकठिन।
किन्तु क्षयोपशम अतिशय कारी, हुआ सरलतम दिन पर दिन।।४०१।।
जीव परस्पर करें उपग्रह, उमास्वामी जी सूत्र दिया।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, जीवन में चरितार्थ किया।।
मात मोहिनी ने मैना को, गृहकारा से मुक्त किया।
उनको यहाँ पर ज्ञानमती ने, व्रत संयम आचरण दिया।।४०२।।
दर्शन करने जो भी आता, उन्हें समझती थीं परिवार।
सबको संयम पथ दिखलाकर, माताजी करतीं उपकार।।
मनोवती-कैलाश-श्रीमती, प्रकाश-मोहिनी जो आये।
परमोपकारी माताजी ने, कुछ न कुछ व्रत दिलवाये।।४०३।।
समय बीतते देर न लगती, पंख लगा उड़ जाता है।
आँख झपकते रात हो गई, आँख खुले दिन आता है।।
चातुर्मास हुआ निष्ठापित, हुआ पिच्छिका परिवर्तन।
संघ साथ में माताजी का, हुआ लाडनूं ओर गमन।।४०४।।