-उपजाति छन्द-
सुरत्नत्रयै: सद्व्रतैर्भ्राजमान:। चतु:संघनाथो गणीन्द्रो मुनीन्द्र:।।
महा-मोह-मल्लैक-जेता यतीन्द्र:। स्तुवे तं सुचारित्रचक्रीशसूरिम्।।१।
-दोहा-
शांतिसागराचार्य को, नमूँ नमूँ शत बार।
सम्यक् चारित प्राप्त हो, मिले स्वात्मनिधि सार।।१।।
-शंभु छंद-
दक्षिण भारत के भोजग्राम में, धर्मनिष्ठ श्रेष्ठी प्रसिद्ध।
पाटील भीमगौंडा उन भार्या-सत्यवती पतिव्रता सिद्ध।।
ईस्वी सन् अठरह सौ बाहत्तर, वदि अषाढ़ षष्ठी तिथि थी।
बालक ने जन्म लिया उस नाम-सातगोंडा था रखा तभी।।२।।
बचपन यौवन था धर्ममयी, वैराग्यभाव वृद्धिंगत थे।
उन्नीस शतक चौदह सन् में, सुदि ज्येष्ठ मास तेरस तिथि के।।
देवेन्द्रकीर्ति मुनि से उत्तूर-ग्राम में क्षुल्लक दीक्षा ली।
उन्नीस शतक बीस फाल्गुन सुदि-चौदस में मुनि दीक्षा ली।।३।।
देवेन्द्रकीर्ति गुरु से दीक्षित, मुनिराज दिगम्बर मान्य हुए।
समडोली पंचकल्याणक में, आचार्य सर्व प्राधान्य हुए।।
उन्निस सौ चौबिस ईस्वी सन्, चउविधसंघ के मुनिनाथ बने।
आगम अनुकूल विहित चर्या, कलियुग में भी शिवमार्ग बने।।४।।
ईस्वी सन् उन्निस सौ सैंतीस, गजपंथा सिद्धक्षेत्र सुंंदर।
चारित्र चक्रवर्ती पद से, भूषित सब जग पूजित गुरुवर।।
पूरे भारत में भ्रमण किया, सब जिन तीर्थों की यात्रा की।
मुनि दीक्षा क्षुल्लक ऐलक औ, आर्यिका क्षुल्लिका दीक्षा दी।।५।।
शिष्यों को दीक्षा शिक्षा दे, मुनि परंपरा अक्षुण्ण किया।
ऐसे गुरुवर की शरणा ले, मैंने भी संयम लब्धि लिया।।
इस समय चतुर्विध संघ सर्व, इन गुरुवर तरु के फूल व फल।
संयमपथ निराबाध दिखता, इन गुरु की कृपादृष्टि का फल।।६।।
कुलभूषण देशभूषण प्रतिमा, कुंथलगिरि पर स्थापित कीं।
श्री सीमंधर आदिक प्रतिमा, दहिगांव क्षेत्र में स्थापित की।।
आचार्य प्रेरणा पा करके, कुंभोज आदि बहु तीर्थ बने।
बहु पंचकल्याण प्रतिष्ठाएं, बहु धर्मप्रभावक क्षेत्र बने।।७।।
षट्खंडागम धवलादि ग्रन्थ, श्रुतभक्ती से छपवाये हैं।
तांबे पर भी उत्कीर्ण करा, स्थायी ग्रंथ बनाये हैं।।
जिनदेवों की प्रतिमाओं की, अतिशायि प्रतिष्ठा करवायी।
जिन आगम को छपवा करके, जिन आगम रक्षा करवायी।।८।।
कुलभूषण देशभूषण मुनि ने, जहाँ पर निज आत्मा सिद्ध किया।
वहाँ पर ही प्रत्याख्यान मरण-विधि से तुम सल्लेखना लिया।।
ईस्वी सन् उन्निस सौ पचपन, भादों सुदि दूज तिथी आई।
‘सिद्धाय नम:’ जपते जपते, गुरुवर ने देवगती पाई।।९।।
हैं देव-शास्त्र-गुरु रत्न तीन, रत्नत्रय को देने वाले।
इनके सर्जक इनके वर्द्धक, इनकी भक्ती करने वाले।।
हे शांतिसागराचार्यप्रवर ! चारित्रचक्रवर्ती गुरुवर।
मैं भक्ति करूँ सज्ज्ञानमती, सह पाऊँ स्वात्म सौख्य सत्त्वर।।१०।।
अथ गुरुपूजाविधानप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।