कर्ममलविनिर्मुक्तो, विमलाय नमो नम:।
तव नामस्मृतिर्लोकं, नैर्मल्यं कुरुते क्षणात्।।१।।
चित्ते मुखे शिरसि पाणिपयोजयुग्मे।
भक्तिं स्तुतिं विनतिमंजलिमंजसैव।।
चेक्रीयते चरिकरीति चरीकरीति।
यश्चर्करीति तव देव! स एव धन्यः।।२।।
नमो नम: सत्त्वहितंकराय, वीराय भव्याम्बुजभास्कराय।
अनन्तलोकाय सुरार्चिताय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय।।३।।
—पद्यानुवाद—
मन में भक्ति धरें मुख से, संस्तुती करें अति भक्ति भरें।
शिर से नमन करें करद्वय, कुड्मल पंकज अंजुली करें।।
इस विधि देव! तुम्हारी जो, भक्ति स्तुति नतिअंजुली करें।
धन्य वही हैं जीव जगत में, धन्य जन्म निज सफल करें।।२।।
नमो नमो हे सत्त्वहितंकर! भव्यकमलभास्कर हे ईश।
अनंत लोकपति सुर अर्चित जिन, नमूँ सुराधिप देव हमेश।।३।।