-मंगलाचरण-
शंभु छंद-
प्रभु महावीर इस युग के अंतिम, तीर्थंकर उनको वंदूँ।
है वर्तमान में उनका शासन-काल उन्हें नितप्रति वन्दूँ।।
हैं पाँच नाम से युक्त तथा, वे पंचम बालयती भी हैं।
पंचांग प्रणाम करूँ उनको, पंचमगति प्रभु को प्राप्त हुई।।१।।
छब्बिस सौ वर्षों पूर्व उन्होंने, जन्म लिया कुण्डलपुर में।
इस हेतू प्रभु का छब्बिस सौवां, जन्मकल्याण मना जग में।।
प्रभु महावीर के २६०० वें, जन्मकल्याणक वर्ष में ही।
गणिनी श्री ज्ञानमती माता ने, महाविधान रचा सच ही।।२।।
इसमें छब्बिस सौ मंत्रों के, द्वारा प्रभुवीर की पूजा है।
यह ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ अलौकिक और अनूठा है।।
इनमें से ही इक शतक आठ, मंत्रों के मोती चुन करके।
इक महावीर व्रत बतलाया, माता श्री ज्ञानमती जी ने।।३।।
इस मनोकामनासिद्धी व्रत की, चारों तरफ प्रसिद्धि हुई।
इस व्रत को करने वाले भक्तों की इच्छाएँ पूर्ण हुईं।।
मैंने भी प्रभु महावीर की भक्तीवश इस व्रत को ग्रहण किया।
कुण्डलपुर यात्रा की इच्छा को, चार व्रतों ने सफल किया।।४।।
इस चमत्कार को देख मुझे इन, मंत्रों पर दृढ़ भक्ति हुई।
उनका आश्रय लेकर विधान, रचने की इच्छाशक्ति हुई।।
फिर वीर प्रभू को वन्दन कर, मैंने यह पाठ बनाया है।
जिनवर की भक्ती करने का, शुभ भाव हृदय में आया है।।५।।
इस शुभ विधान के द्वारा भक्तों! कर्म निर्जरा करना है।
लौकिक वैभव के साथ-साथ, आध्यात्मिक लक्ष्मी वरना है।।
महावीर प्रभू के चरणों में, बस यही प्रार्थना है मेरी।
रत्नत्रय की दृढ़ता होवे, जब तक नहिं पाऊँ सिद्धगती।।६।।
अथ जिनयज्ञ पूजा प्रतिज्ञापनाय पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।