मंगलाचरण
मंगलं शांतिनाथोऽर्हन्, कुंथुनाथोऽस्तु मंगलम्।
मंगलं अरनाथोऽपि, जन्मभूमिश्च मंगलम्।।१।।
असंबाधा छंद— शांतीश: कुर्यात्, त्रिभुवनजनतायै शं।
(14) अक्षरी वाणी ते पुष्यात् कलिमलहरिणी भव्यान्।।
लोकांतं व्याप्तं तव धवलयश: स्वामिन्!।
शांतीश: कुर्यात् मम मनसि सदा शांतिं।।२।।
मालिनी छंद— अतुलसुखयुतोऽयं कुंथुनाथस्त्रिलोक्यां।
(15) अक्षरी प्रथितसुखकरीयं हस्तिनापू: पृथिव्यां।।
जिनवरजनकोऽयं सूरसेन: प्रसिद्ध:।
मम भवतु सदायं मुक्तिलक्ष्म्यै जिनेश:।।३।।
मणिगुणनिकर छंद— अर जिनवर! तव, पदयुगकमलं।
(15) अक्षरी वसतु मनसि मम कलिमलदलनं।।
सुरनरमुनिगण—कृतबहुशरणम् ।
प्रभवति जिन! तव, शमदमसुवृष:।।४।।
—अनुष्टुप् छंद—
तीर्थकृच्चक्रभृत्कामदेव – त्रिपदधारिण: ।
शांतिकुंथ्वरतीर्थेशा, भवद्भ्योऽनन्तशो नम:।।५।।
—दोहा—
सोलहवें तीर्थेश प्रभु, पंचमचक्री ईश।
कामदेव हैं बारवें, नमूं—नमूं शांतीश।।६।।
सत्रहवें तीर्थेश जिन, छठे चक्रपति नाथ।
मदन तेरहें कुंथुजिन, नमूं नमाकर माथ।।७।।
अठारवें प्रभु तीर्थकर, सप्तम चक्री धन्य।
कामदेव चउदशम प्रभु, अर जिनपद नित वंद्य।।८।।
तीनों तीर्थंकर प्रभू, त्रय—त्रय पद के ईश।
मन—वच-तन त्रय से सदा, नमूं नमा कर शीश।।९।।
प्रभो ! आपके गुण रहे, नन्तानन्त प्रमाण।
तीन रत्न के हेतु ही, करूँ अनन्त प्रणाम।।१०।।
।।अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजिंल क्षिपेत्।।।