-उपेंद्रवङ्काा छंद-
देवेंद्रवृंदैर्नरनाथमुख्यै:, मुनीश्वरै: सर्वगणाधिपैश्च।
सदा प्रपूज्यो भुवनेषु पूज्य: त्वां वासुपूज्यं प्रणमामि भक्त्या।।१।।
-शंभु छंद-
आत्मा औ तनु के अन्तर को, कर तनु से निर्मम हो जाऊँ।
मैं शुद्ध बुद्ध परमात्मा हूँ, यह समझ स्वयं में रम जाऊँ।।
इंद्रिय बल आयु श्वास चार, प्राणों को धर—धर मरता हूँ।
निश्चय नय से निंह जन्म—मरण, फिर भी निश्चय निंह करता हूँ।।१।।
मैं इन प्राणों से भिन्न सदा, पुद्गल से भिन्न निराला हूँ।
सुखसत्ता दर्शन ज्ञानवीर्य, चेतनमय प्राणों वाला हूँ।।
वे वासुपूज्य! तव चरण कमल, की भक्ति से यह मिल जावे।
जो खोई शक्ति अनन्त मेरी, तव नाम मंत्र से प्रगटावे।।२।।
चंपापुर में वसुपूज्य पिता, औ प्रसू जयावति इन्द्र नमित।
आसाढ़ वदी छठ को प्रभु ने, माँ गर्भ प्रवेश किया सुरनत।।
फाल्गुन वदि चौदस जन्म लिया, इस तिथि को ही जिनवेश धरा।
सित माघ द्वितीया के प्रभु को, केवल लक्ष्मी ने स्वयं वरा।।३।।
भादों सुदि चौदस को प्रभुवर, चम्पापुर से शिवधाम गये।
बाहत्तर लक्ष वर्ष आयु, दो सौ अस्सी कर तुंग कहे।।
कल्हार कमल छवि महिष चिन्ह, फिर भी तनुमुक्त अनन्तगुणी।
वासव गण पूजित वासुपूज्य! मम दीजे निज सम्पत्ति घनी।।४।।
अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजिंल क्षिपेत्।