पूजा नं.-1
(समुच्चय पूजन)
-स्थापना (शंभु छंद)-
श्री कुन्दकुन्द आचार्य रचित, चौरासी पाहुड़ ग्रंथों में।
है समयसार इक मुख्य ग्रंथ, जो है विभक्त नवतत्त्वों में।।
शुद्धात्मतत्व का सार इसे, पढ़कर जाना जा सकता है।
जो नग्न दिगम्बर मुनियों द्वारा, ही पाला जा सकता है।।१।।
-दोहा-
समयसार की अर्चना, करे शुद्ध नित भाव।
आह्वानन स्थापना, दे शुद्धातम भाव।।१।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसारग्रंथराज! अत्र अवतर
अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसारग्रंथराज! अत्र तिष्ठ
तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसारग्रंथराज! अत्र मम सन्निहितो
भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
–अथ अष्टक-
तर्ज-ये क्या है………..
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…।।
।।टेक.।।
गंगाजलधारा श्रुत के लिए समर्पित है।
मिट जाय जन्म मृति रोग भाव यह अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है….।।१।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
मलयागिरि चन्दन श्रुत के लिए समर्पित है।
भवताप नष्ट हो जाय भाव यह अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है….।।२।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय संसारतापविनाशनाय चंदनं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है….
मोती सम तन्दुल श्रुत के लिए समर्पित हैं।
अक्षय पद पाने हेतु भाव शुभ अर्पित हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…।।३।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
फूलों की माला श्रुत के लिए समर्पित है।
विषयों की आशा मिटे भाव यह अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…..।।४।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय कामबाणविनाशनाय पुष्पं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
नैवेद्य थाल यह श्रुत के लिए समर्पित है।
क्षुधरोग विनाशन हेतु भावना अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…..।।५।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
घृत दीपक श्रुत की आरति हेतु समर्पित है।
मोहान्धकार नश जाय भाव यह अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है….।।६।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय मोहांधकारविनाशनाय दीपं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
श्रुत पूजन हित कृष्णागरु धूप समर्पित है।
हों कर्मनाश बस शीघ्र भाव यह अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है….।।७।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय अष्टकर्मदहनाय धूपं
निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
फल थाल हमारा श्रुत के लिए समर्पित है।
शिवफल की होवे प्राप्ति भाव यह अर्पित है।।
यह क्या है? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…..।।८।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय मोक्षफलप्राप्तये फलं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
हम समयसार की पूजा करने आए हैं।
बन अन्तरात्म शुद्धात्म भावना लाए हैं।।
यह व्या है ? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है…
यह अर्घ्यथाल श्रुत पूजन हेतु समर्पित है।
‘‘चन्दनामती’’ भावों की श्रद्धा अर्पित है।।
यह क्या है ? जिनवाणी है, प्रभु कुन्दकुन्द की वाणी है।
यह समतारस निर्झरिणी है, शिवधाम हेतु यह सरणी है।। यह क्या है….।।९।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसाराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
-दोहा-
कंचन झारी में भरा, प्रासुक गंगा नीर।
जलधारा श्रुत के लिए, करती भवदधि तीर।।१०।।
शांतये शांतिधारा
विविध वर्ण के पुष्प ले, श्रुत को दिया चढ़ाय।
यह पुष्पांजलि हृदय में, दे गुण पुष्प खिलाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसारग्रंथाय नम:।
-शंभु छंद-
श्री समयसार की पूजन से, आध्यात्मिक सुख मिल जाता है।
पूर्णार्घ्य थाल के अर्पण से, भव्यों का मन खिल जाता है।।
श्री कुन्दकुन्द आचार्य रचित, यह ग्रंथ बड़ा महिमाशाली।
इस ग्रंथ का सच्चा स्वाध्यायी, बन जाता है गुणमणिमाली।।१।।
ध्रुव अचल सिद्धपद प्राप्त सभी, सिद्धों को प्रथम नमन करके।
श्रुतकेवलि के वचनानुसार, आगम प्रमाण बतला करके।।
यह ग्रंथ समयप्राभृत के नाम से, भी पहचाना जाता है।
इसका रहस्य जो समझ गया, वह आत्मतत्त्व का ज्ञाता है।।२।।
आचार्यदेव कहते इसमें, आतम स्वभाव को पहचानो।
व्यवहार व्रिया पालन करके, तुम निश्चयनय को सरधानो।।
इस जग में काल अनादी से, हैं काम भोग अरु बन्ध कथा।
इन सर्व सुलभ आचरणों को, पालन कर खोया जन्म वृथा।।३।।
हे भव्यात्मन् ! दुर्लभ जग में, है आत्मतत्त्व की पुण्यकथा।
उस कथा को सुनकर ग्रहण करो, तो टल जाए भव व्याधि व्यथा।।
आत्मा शरीर हैं भिन्न भिन्न, बस यही भेदविज्ञान कहा।
कुछ जानो या मत जानो तुम, बस यह ही सच्चा ज्ञान कहा।।४।।
दश अधिकारों में है विभक्त, यह समयसार श्री ग्रंथराज।
श्री कुंदकुंद आचार्य कथित, तत्त्वों का क्रम भी सुनें आज।।
अधिकार प्रथम एवं द्वितीय में, जीव-अजीव को कहा गया।
उसके आगे कर्ता व कर्म, अधिकार तीसरा कहा गया।।५।।
फिर चौथे में है पुण्य-पाप, आश्रव पंचम अधिकार कहा।
संवर छट्ठा निर्जरा पुन:, बंधाधिकार अष्टम में रहा।।
मोक्षाधिकार नवमां पढ़कर, आगे दशवां अधिकार पढ़ो।
जो सर्व विशुद्ध ज्ञानमय है, इसको पढ़ ज्ञान विकास करो।।६।।
इस तरह चार सौ चव्वालिस, गाथाओं में यह ग्रंथ कहा।
इस समयसारमय बन करके, मुनियों ने आतम तत्त्व लहा।।
इसका अध्ययन करें हम भी, दोनों नय का आश्रय लेकर।
नहिं शास्त्र शस्त्र बन जाय कभी, यह लक्ष्य रहे मन के अन्दर।।७।।
सम्यग्दर्शन के साथ ज्ञान चारित्र कार्यकारी होंगे।
व्यवहार रत्नत्रय के पालक निश्चय के अधिकारी होंगे।।
इस समयसार की पूजन में, पूर्णार्घ्य थाल यह अर्पण है।
‘‘चन्दनामती’’ रत्नत्रयमय भावों का अर्घ्य समर्पण है।।८।।
-सोरठा-
जयमाला के साथ, अष्ट द्रव्य अर्पण करूँ।
हे जिनवाणी मात, वर दो मैं अध्यन करूँ।।९।।
ॐ ह्रीं शुद्धात्मभावप्रतिपादकश्रीसमयसारमहाग्रंथाय जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
समयसार का सार ही, है जीवन का सार।
शेष द्रव्य का भार है, जीवन में निस्सार।।
।। इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि: ।।