तर्ज-पंखिड़ा……….
वंदना करूँ मैं सप्तऋषिराज की।
गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना….।।टेक.।।
सात भाइयों ने एक साथ दीक्षा ले लिया।
विषय भोग हैं असार सबको शिक्षा दे दिया।।
पूजा करूँ, भक्ति करूँ, उनके त्याग की।
गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना……।।१।।
उनके पिता ने भी दीक्षा लेके त्याग किया था।
उग्र तप को करके ज्ञान केवल प्राप्त किया था।।
पूजा करूँ, भक्ति करूँ, उनके त्याग की।
गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना……।।२।।
सातों ऋषियों को तपस्या करके ऋद्धियाँ मिलीं।
उनकी ऋद्धियों से सारे जग को सिद्धियाँ मिलीं।।
पूजा करूँ, भक्ति करूँ, उनके त्याग की।
गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना……।।३।।
मथुरापुर की महामारी इनसे दूर हुई थी।
मथुरापुर में सुख समृद्धि सभी पूर्ण हुई थी।।
पूजा करूँ, भक्ति करूँ, उनके त्याग की।
गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना……।।४।।
इनकी पूजा करने का हृदय में भाव आया है।
‘‘चंदनामती’’ सभी ने पुण्य क्षण को पाया है।।
पूजा करूँ, भक्ति करूँ, उनके त्याग की।
गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना……।।५।।
(विधियज्ञप्रतिज्ञापनाय मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्)