तर्ज-अब ना छुपाऊँगा……….
दर्शनविशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके, इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
जो सोलह भावना भाते, वे तीर्थंकर बन जाते।।
केवलि श्रुतकेवलि पद में, ऐसे स्वर्णिम क्षण मिलते।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।१।।
आह्वानन स्थापन है, पूजन का सन्निधापन है।।
पुष्पांजली समर्पण है, प्रभु चरणों में वन्दन है।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।२।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि! अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट्
सन्निधीकरणं।
-अष्टक-
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
जल का स्वर्ण कलश लेकर, धार करूँ तीर्थंकर पद।
जन्म जरा मृत्यु क्षय हों, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।१।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
शुद्ध सुगंधित केशर ले, जिनवर पद में चर्चूं मैं।
भव आताप मेरा क्षय हो, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।२।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं
निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
मोती सम अक्षत लेकर, पुंज धरूँ मैं जिनवर पद।
मम आतम सुख अक्षय हो, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।३।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति
स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
कुंद कमल पुष्पों को ले, जिनवर सम्मुख अर्पूं मैं।
मेरी काम व्यथा क्षय हो, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।४।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं
निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
मेरा रोग क्षुधा क्षय हो, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।५।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
घृत का इक लघु दीपक ले, प्रभु की आरति कर लूँ मैं।
मेरा मोह तिमिर क्षय हो, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।६।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: मोहांधकारविनाशनाय दीपं
निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
गंध सुगंधित धूप लिया, प्रभू पूजन में चढ़ा दिया।
अष्टकर्म मेरे क्षय हों, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।७।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति
स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
सेव व आम अनार लिया, प्रभु पूजन में चढ़ा दिया।
मोक्ष मिले दुख का क्षय हो, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।८।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति
स्वाहा।
दर्शन विशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा-२।।टेक.।।
अर्घ्य चढ़ा प्रभु पूजन की, भाव हैं ये ‘‘चन्दनामती’’।
मिले अनघ पद दुख क्षय हों, मानव जीवन सुखमय हो।।
भावों की शुद्धि हो, निजगुण की वृद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके इस जग से मुक्ति हो,
आओ करें मिल आज सोलहकारण पूजा।।९।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
शांतीधारा के लिए, लिया है प्रासुक नीर।
सोलह भावन भाय के, हो जाऊँ भव तीर।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
पुष्पांजलि के हेतु मैं, पुष्प सुगंधित लाय।
सोलहकारण पर्व में, गुण उपवन खिल जाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाभ्यो नम:।
-शेरछंद-
जय जय प्रभो! दर्शनविशुद्धि भावना भाऊँ।
आत्मा को शुद्ध करके गुण के पुष्प खिलाऊँ।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।१।।
पहली जो है दर्शनविशुद्धि भावना कही।
अष्टांग सहित दोष रहित देती शिवमही।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।२।।
दूजी विनयसम्पन्नता सिखलाती विनय को।
अतिचार रहित शीलव्रत है पालना सबको।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।३।।
चौथी अभीक्ष्ण ज्ञान में उपयोग कराती।
संवेग भावना जगत् से राग हटाती।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।४।।
निज शक्ति के अनुसार त्याग भावना भाएँ।
शक्ती के ही अनुसार तपस्या भी बढ़ाएँ।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।५।।
फिर भावना जो साधु समाधी की भाते हैं।
वे निज समाधि साध मोक्ष पद को पाते हैं।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।६।।
गुरुओं की वैयावृत्ति का जो भाव बनाते।
वे भीम के समान तन की शक्ति को पाते।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।७।।
अर्हन्त-सूरि-बहुश्रुत-प्रवचन की भक्ति से।
हो जाती आतमा को प्राप्त ज्ञान शक्ति है।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।८।।
आवश्यकापरिहाणि भावना है बताती।
धार्मिक क्रिया में सावधानी रखना सिखाती।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।९।।
जिनधर्म की प्रभावना की भावना करूँ।
प्रवचन के वात्सल्य की बस कामना करूँ।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।१०।।
इन सोलहों शुभ भावना को मन में बसाऊँं।
पूजन में ‘‘चन्दनामती’’ पूर्णार्घ्य चढ़ाऊँ।।
हे नाथ! कृपा करके मुझे शक्ति दीजिए।
सोलह सुभावना के लिए युक्ति दीजिए।।११।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्य: जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-शंभु छंद-
जो रुचिपूर्वक सोलहकारण, भावना की पूजा करते हैं।
मन-वच-तन से इनको ध्याकर, निज आतम सुख में रमते हैं।।
तीर्थंकर के पद कमलों में, जो मानव इनको भाते हैं।
वे ही इक दिन ‘चन्दनामती’, तीर्थंकर पदवी पाते हैं।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।