तीस चौबीसी तीर्थंकर वंदना
अनुष्टुप-छंद
सिद्धिं प्राप्ताश्च प्राप्स्यंति, भूता सन्तश्च भाविनः।
भरतैरावतोद्भूतास्तीर्थंकरा अवंतु मां।।१।।
जंबूद्वीपेऽत्र विख्याते, मध्यलोकस्य मध्यगे।
भरतो दक्षिणे भागे, उदीच्यैरावतो मतः।।२।।
पूर्वस्मिन् धातकीद्वीपेऽपरधात्र्यामपि त्विमौ।
भरतैरावतौ द्वौ द्वौ, दक्षिणोत्तर भागिनौ।।३।।
पूर्वार्धपुष्करेप्येवं, पश्चिमार्धे तथेदृशौ।
भरतैरावते क्षेत्रे, अपागुदग्दिगोश्च ते।।४।।
पंच भरतक्षेत्राणि, पंचैवैरावतान्यपि।
दशैषामार्यखंडेषु, षट्कालपरिवर्तनं।।५।।
चतुर्थेऽप्यागते काले चतुर्विंशतयो जिनाः।
तीर्थेश्वराः भवंतीह, धर्मतीर्थप्रवर्तकाः।।६।।
भूतकाले भवा एते, वर्तमानेऽप्यनागते।
भवंति च भविष्यंति, तेभ्यो नित्यं नमोऽस्तु मे।।७।।
एवं दशसु क्षेत्रेषु, त्रिकालापेक्षया इमे।
त्रिंशच्चतुर्विशास्ते, तीर्थेशाः संतु मे श्रियै।।८।।
आस्तां स्तवनमेतेषां, सप्तशतस्य विंशतेः।
नामभिरपि स्तवनात्, को नाम दुःखनामभाक्।।९।।
एवं ज्ञात्वैव सद्भक्त्या, सुत्रिंशच्चतुर्विशतेः।
जिननामानि प्रीत्याहं, पूजयामि स्वसिद्धये।।१०।।
अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
(शंभु छंद)
सिद्धी को प्राप्त हुए होते, होवेंगे भरतैरावत में।
ये भूत भवद् भावी जिनवर, मेरे भी रक्षक हों जग में।।
इस मध्यलोक के मध्य प्रथित, वर जम्बूद्वीप प्रमुख जानो।
उसके दक्षिण में भरत तथा, उत्तर में ऐरावत मानो।।१।।
पूरब औ अपर धातकी खंड, द्वीप में दक्षिण उत्तर में।
दो भरत और दो ऐरावत, ये चार क्षेत्र होते द्वय में।।
इस पुष्करार्ध पूरब पश्चिम, दोनों के दक्षिण उत्तर में।
इक एक भरत ऐरावत से, ये क्षेत्र चार होते दो में।।२।।
ये पांच भरत औ ऐरावत, हैं पांच इन्हीं दश के मधि में।
जो आर्यखंड हैं उन सबमें, षट्काल परावर्तन सच में।।
जो चौथा काल वर्तता है, तब चौबिस तीर्थंकर होते।
ये जग में धर्मचक्रमय तीर्थ, प्रवर्तक तीर्थेश्वर होते।।३।।
ये भूतकाल में हुए तथा, होते हैं वर्तमान युग में।
होवेंगे तथा भविष्यत में, उन सबको हो नमोस्तु नित में।।
इस विध दश क्षेत्रों में त्रिकाल, संबंधी तीर्थंकर जो हैं।
ये तीसों चौबीसी जिनवर, मेरे को शिवलक्ष्मी देवें।।४।।
इनकी स्तुति तो दूर रहे इन, सात शतक बीसों जिनका।
बस नाम मात्र ही लेने से, निंह दुख का नाम भि हो सकता।।
यह जान परम भक्ती से ही, तीसों चौबीसी जिनवर का।
निज सिद्धी हेतु प्रीती से, मैं नाममंत्र पूजूँ रूचिधर।।५।।
अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
गीताछंद
मंगलमयी सब लोक में, उत्तम शरण दाता तुम्हीं।
वर तीस चौबीसी जिनेश्वर, सात शत औ बीस ही।।
नर लोक में ये भूत संप्रति, भावि तीर्थंकर कहे।
पण भरत पण ऐरावतों में, पंच कल्याणक लहे।।१।।
दोहा
आवो आवो नाथ! अब, यहां विराजो आन।
आह्वानन विधि से सदा, मैं पूजूं अघ हान।।२।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्….।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधीकरणं।
अथाष्टकं-स्रग्विणी छंद
सिंधु को नीर भृंगार में लायके।
धार देऊं प्रभो पाद में आयके।।
सात सौ बीस तीर्थंकरों को जजूँ।
जन्म व्याधी हरूं सर्व दुख से बचूं।।१।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं…..।
गंध सौगंध्य कर्पूर केशर मिली।
पाद चर्चंत सम्यक्त्व कलिका खिली।।
सात सौ बीस तीर्थंकरों को जजूँ।
जन्म व्याधी हरूं सर्व दुख से बचूं।।१।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं……।
दुग्ध के फेन सम स्वच्छ अक्षत लिये।
पुंज को धारते स्वात्म संपत लिये।।तीस०।।३।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं….।
केवड़ा मोगरा पुष्प अरविंद हैं।
नाथ पद पूजते कामशर भंग है।।तीस०।।४।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं……।
मुद्ग लाडू इमरती कनक थाल में।
पूजते भूख व्याधी हरूं हाल में।।तीस०।।५।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं……।
स्वर्ण के पात्र में ज्योति कर्पूर की।
नाथ की आरती मोह को चूरती।।तीस०।।६।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः मोहांधकारविनाशनाय दीपं…..।
धूप दशगंध ले अग्नि में खेवते।
कर्म की भस्म हो नाथ पद सेवते।।तीस०।।७।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं…..।
आम अंगूर केला अनंनास ले।
नाथ पद अर्चते मुक्तिकांता मिले।।तीस०।।८।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं….।
नीर गंधादि वसु द्रव्य ले थाल में।
अर्घ्य अर्पण करूं नाय के भाल मैं।।तीस०।।९।।
ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं…..।
सोरठा
तीर्थंकर परमेश, तिहुंजग शांतीकर सदा।
चउसंघ शांति हेत, शांतीधारा मैं करूं।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
हरसिंगार प्रसून, सुरभित करते दश दिशा।
तीर्थंकर पदपद्म, पुष्पांजलि अर्पण करूं।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य-ॐ ह्रीं त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नमः।
दोहा
पंचकल्याणक के धनी, तीर्थंकर चौबीस।
अर्चन हित पुष्पांजली, करूँ नमाऊँ शीश।।१।।
नाथ मंडस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्वाणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सागरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महासाधुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रीधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमलप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उद्धरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अंगिरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सन्मतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिंधुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुसुमाँजलिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शिवगणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उत्साहनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ज्ञानेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री यशोधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कृष्णनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ज्ञानमतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शुद्धमतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं……….।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अतिक्रांतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शाँतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-गीता छंद
निर्वाण आदी शांति तीर्थंकर सुअंतिम जानिये।
पूर्णार्घ्य ले चौबीस जिन की अर्चना विधि ठानिये।।
जो भक्तिश्रद्धा भाव से, तीर्थेश का अर्चन करें।
वे पुनर्भव को दूर कर, निज आत्म का दर्शन करें।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं जंबूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ भूतकालीननिर्वाणनाथादिशांत-
नाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
शुद्ध बुद्ध परमात्मा, पाया ज्ञान प्रभात।
परमानन्द निजात्म में, मग्न रहें दिन रात।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजिंल क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनंदननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चन्द्रप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुष्पदंतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शीतलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रेयांसनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वासुपूज्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शांतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नमिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नेमिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महावीर जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
ऋषभदेव को आदि ले, महावीर पर्यंत।
श्री चौबीस जिनेश को, पूजत हो भव अंत।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं जंबूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीनऋषभदेवादिमहावीर-
पर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
तीर्थंकर चौबीस ये, सर्वोत्तम गुणवान् ।
पुष्पांजलि अर्पण करूँ, पूजन हेतु प्रधान।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महापद्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुरदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वयंप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वात्मभूतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवपुत्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुलपुत्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उदंकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रौष्ठिलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जयकीर्तिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निष्पापनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निष्कषायनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विपुलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्मलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चित्रगुप्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री समाधिगुप्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वयंभूनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनिवर्तकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जयनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवपाल्ानाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनंतवीर्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
भरत क्षेत्र चौबीस जिन, होंगे धर्मधुरीण।
पूरण अर्घ्य चढ़ाय के, होऊँ धर्मप्रवीण।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं जंबूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीनमहापद्मादि-
अनन्तवीर्यपर्यंत चतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
सोरठा
परमानंद स्वरूप, परम ज्योति परमात्मा।
परम दिगंबर रूप, पुष्पांजलि अर्पण करूँ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पंचरूपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सांप्रतिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ऊर्जयंतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आधिक्षायिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनंदननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रत्नसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रामेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनंगोज्झितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विन्यासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अशेषनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुविधाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुमारनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वशैलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभंजननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सौभाग्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री व्रतविंदुनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धकरनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ज्ञानशरीरनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कल्पद्रुमनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तीर्थफलेशनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दिनकरनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वीरप्रभनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
ऐरावत के तीर्थकर, भूतकाल के सिद्ध।
पूरण अर्घ्य चढ़ाय के, लहूँ ऋद्धि नव निद्धि।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं जंबूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थभूतकालीनपंचरूपादि-
वीरप्रभपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शान्तये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
कर्ममलीमस आत्मा, प्रभु तुम भक्ति प्रसाद।
शुद्ध बुद्ध होवे तुरत, अतः नमूँ तुम पाद।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बालचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुव्रतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अग्निसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदिसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रीदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री व्रतधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सोमचन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धृतदीर्घनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शतायुष्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विवसितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रेयोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विश्रुतजलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिंहसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उपशांतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गुप्तशासननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनंतवीर्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिधाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मरुदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रीधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शामकंठनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अग्निप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अग्निदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वीरसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-सोरठा
श्री चौबीस जिनेश, सकल अमंगल को हरें।
पूरें सौख्य हमेश, पूजूँ पूरण अर्घ्य ले।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं जंबूद्वीप संबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीनबाल-
चंद्रादिवीरसेनपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
परम शुद्ध परिणाम हित, तुम पद पूजूँ आज।
पुष्पांजलि अर्पण करूँ, भरो आश जिनराज।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धार्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जयघोषनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदिसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वर्गमंगलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वङ्कााधारिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्वाणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मध्वजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महासेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रविमित्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सत्यसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महीचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रुतांज्ाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुव्रतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकौशलनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनंतनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमृतसेननाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अग्निदत्तनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
ऐरावत के भाविजिन, चिंतामणी अनूप।
चिंतित फल देवें सदा, भक्त बने शिवभूप।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं जंबूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीनसिद्धार्थादि-
अग्निदत्तपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
राग द्वेष मद मोह को, जीत हुए ‘जिन’ ख्यात।
पृथक्-पृथक् तुम नाम ले, जजूँ नमाकर माथ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रत्नप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अकलंकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चंद्रस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शुभंकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तत्त्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुंदरस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुरंधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वामिदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वासवदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रेयोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विश्वरूपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तपस्तेजोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रीपतिबोधदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धार्थदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संयमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवेन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रवरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विश्वसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मेघनंदिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिजेतृकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-नरेन्द्र छंद
भूतकाल के चौबीसों जिन, मुक्तिमार्ग के नेता।
कर्म कुलाचल के भेत्ता हैं, सकल तत्त्व के वेत्ता।।
जल गंधादिक अर्घ्य सजाकर, पूजूँ पद मन लाके।
पुनर्जन्म का दुःख मिटाकर, बसूँ स्वपद में जाके।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वधातकी द्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थभूतकालीनरत्नप्रभादि-
त्रिजेतृकनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
(8)
पूर्वधातकीखंडद्वीप भरतक्षेत्र के वर्तमान 24 तीर्थंकर के अर्घ्य
दोहा
धर्मचक्र के अधिपती, त्रिभुवनपति जिनराज।
सुमन चढ़ाकर पूजहूँ, नमूँ नमूँ नतमाथ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री युगादिदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धांतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमार्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री समुद्धरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भूधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उद्योतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आर्जवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभयनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अप्रकंपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मनंदिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रियंकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकृतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पंचमुष्टिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिमुष्टिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गांगिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वांगदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ब्रह्मेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री इन्द्रदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नायकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
धर्मतीर्थ के नाथ तुम, धर्मचक्रधर धीर।
पूरण अर्घ्य चढ़ाय के, पाऊँ मैं भवतीर।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वधातकीखंडद्वीप संबंधि-भरतक्षेत्रस्थ-वर्तमानकालीन युगादिदेवनाथादि-
नायकनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
घात घातिया कर्म को, किया ज्ञान को पूर्ण।
नमूँ नमूँ नित आप को, करो हमें सुख पूर्ण।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धार्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सम्यग्गुणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनेन्द्रदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्राr संपन्ननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विशिष्टदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ब्रह्मशांतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पर्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अकामुकदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ध्याननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रीकल्पनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संवरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वास्थ्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आनंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रविप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चंद्रप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुनंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकर्णदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकर्मदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अममदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शाश्वतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-गीताछंद
भावी जिनेश्वर आप मुक्ती, जायेंगे जब जायेंगे।
पर भक्त उनके भी प्रथम, शिव संपदा को पायेंगे।।
जल गंध आदिक अर्घ्य ले, इस हेतु मैं अर्चन करूँ।
अति शीघ्र ही सब कर्म हन कर, मुक्तिकन्या वश करूँ।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वधातकीखंडद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रभविष्यत्कालीन-
सिद्धार्थनाथादिशाश्वतनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
(10)
पूर्वधातकीखंडद्वीप संबंधि-ऐरावत क्षेत्र के भूतकालीन 24 तीर्थंकर के अर्घ्य
दोहा
त्रिभुवनपति त्रिभुवन धनी, त्रिभुवन के गुरु आप।
त्रिभुवन के चूड़ामणि, नमूँ नमूँ नत माथ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वङ्कास्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सूर्यस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुरुषोत्तमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शरणस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अवबोधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विक्रमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्घंटिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हरीन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परित्रेरितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्वाणसूरिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्महेतुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चतुर्मुखनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकृतेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रुताम्बुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलार्कनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धरणेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुतीर्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उदयानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वार्थदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धार्मिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री क्षेत्रस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हरिचन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
कर्म मर्महर तीर्थकर, प्रीतिंकर सुखकार।
चौबीसों जिनराज को, मैं प्रणमूँ त्रयबार।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वधातकीखंडद्वीपसंबंधिऐरावतक्षेत्रस्थ भूतकालीन-
श्रीवङ्कास्वाम्यादि-हरिचन्द्रनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……..।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
दोहा
ज्ञान दर्श सुख वीर्यमय, गुण अनंत विलसंत।
सुमन चढ़ाकर पूजहूँ, हरूँ सकल जगफंद।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अपश्चिमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुष्पदंतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अर्हदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चारित्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मकूपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उदयनाभिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रुकमेंदुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कृपालुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रौष्ठिलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सिद्धेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमृतेन्दुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भुवनलिंगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वरथनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मेघनंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदिकेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हरिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अधिष्ठनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शांतिकदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदिस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुंदपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विरोचननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
सप्तप्रमस्थान गत, चौबीसों जिनराज।
पूजूँ पूरण अर्घ्य ले, लहूँ पूर्ण साम्राज।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वधातकीखंडद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रवर्तमानकालीन-अपश्चिमनाथादि-
विरोचननाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
धर्मामृतमय वचन की, वर्षा से भरपूर।
भविजन कलिमल धोवते, करो हमें सुखपूर।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रवरवीरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विजयप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सत्पदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महामृगेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चिंतामणिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अशोकिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री द्विमृगेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उपवासिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बोधकेंदुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चिंताहिमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उत्साहिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अपाशिवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवजलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नारिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनघनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नागेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नीलोत्पलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अप्रकंपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुरोहितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भिंदकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्वाचनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विरोषिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-शंभु छंद
भावी तीर्थंकर जो मानें, वे आगे शिवलक्ष्मी लभते।
पर निजभक्तों को पहले भी, सचमुच शिवराज्य दिला सकते।।
मैं निज समतारस का इच्छुक, अतएव शरण में आया हूँ।
बस पूरण अर्घ्य चढ़ा करके, गुण पूरण करने आया हूँ।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वधातकीखंडद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रभविष्यत्कालीन-
श्रीवीरनाथादि-विरोषितनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……..।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
सब कर्मों में एक ही, मोह कर्म बलवान।
उसके नाशन हेतु मैं, पूजूँ भक्ति प्रधान।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वृषभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रियमित्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शांतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुमितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आदिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अतिव्यक्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कलासेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कर्मजित्नाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रबुद्धनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रव्रजितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुधर्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तमोदीपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री व्रजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बुद्धनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रबंधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अतीतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रमुखनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पल्योपमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अकोपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निष्ठितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मृगनाभिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवेन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पदस्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शिवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
मैं अतीत जिनदेव को, पूजूँ भक्ति समेत।
पूरण अर्घ्य चढ़ाय हूँ, पूर्ण सौख्य के हेत।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थभूतकालीन-
श्रीवृषभदेवादि-शिवनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
कोटि सूर्य से प्रभ अधिक, अनुपम आतम तेज।
पुष्पांजलि कर पूजहूँ, कर्मांजन हर हेत।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विश्वचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कपिलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वृषभदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रियतेजोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रशमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विषमाँगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चारित्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभादित्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुंजकेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वीतवासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुराधिपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दयानाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सहस्रभुजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनसिंहनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रैवतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बाहुस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रीमालिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अयोगदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अयोगिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कामरिपुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आरंभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नेमिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गर्भज्ञातिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री एकार्जितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-रोलाछंद
पंच महाकल्याण, स्वामी शिवपथ नेता।
सकल तत्त्वविद्नाथ, कर्माचल के भेत्ता।।
अष्टद्रव्य से नित्य, प्रभुपद पूज रचाऊँ।
चिच्चैतन्य स्वरूप, निज अनुभव सुख पाऊँ।।२५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीनश्रीविश्व-
चन्द्रनाथादिएकार्जितस्वामिपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
सोरठा
स्थिति अरु अनुभाग, बंध कषायों से कहा।
इनके नाशन हेतु, पुष्पांजलि से पूजहूँ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रक्तकेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चक्रहस्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कृतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुमूर्तिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुक्तिकांतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निकेशिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रशस्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निराहारनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमूर्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री द्विजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रेयोगतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरुजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दयाधिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुष्पनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रतिभूतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नागेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तपोधिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दशानननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आरण्यकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दशानीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सात्त्विकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-रोला छंद
परम हंस परमेश, श्री चौबीस जिनेशा।
परम पिता भुवनेश, नमत शतेन्द्र हमेशा।।
सात भयों से दूर, पूर्ण अभयपद दाता।
जो पूजें तुम नित्य, पावें अनुपम साता।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ भविष्यत्कालीन-
श्रीरक्तकेशनाथादि-सात्त्विकनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
ज्ञाननेत्र से लोकते, लोक अलोक समस्त।
चौबीसों जिनराज मम, शिवपथ करो प्रशस्त।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुमेरुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनकृतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वैâटभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रशस्तदायकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्दमननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुलकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वर्धमाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अमृतेंदुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संख्यानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कल्पकृतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हरिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बहुस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भार्गवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भद्रस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पविपाणिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विपोषितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ब्रह्मचारिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री असाक्षिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चारित्रेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पारिणामिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शाश्वतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निधिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कौशिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-शंभुछंद
त्रिभुवनपति त्रिभुवन मस्तक पर, जा करके सुस्थिर राज रहे।
त्रयकालिक गुण पर्यायों युत, संपूर्ण पदारथ जान रहे।।
वर पंच कल्याण के स्वामी, चौबीसों तीर्थंकर जग में।
मैं पूजूँ पूरण अर्घ्य लिये, पाऊँ अविचल शाश्वत सुख मैं।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ भूतकालीन-
श्रीसुमेरुनाथादि-धर्मेशनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
सोरठा
त्रिभुवनगुरु भगवान्, अनुपम सुख की खान हो।
मैं पूजूँ धर ध्यान, सकल विघ्न घन को हरो।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री साधितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्तमितेन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अत्यानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुष्पोत्फुल्लनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मंडितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रहतदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मदनसिद्धनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हसदिंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चंद्रपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अब्जबोधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनबल्लभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुविभूतिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ककुद्भासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुवर्णनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हरिवासकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रियमित्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रियरतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अश्वानीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पर्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चित्रहृदयनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-अडिल्लछंद
वर्तमान चौबीस जिनेश्वर को जजूँ।
श्रद्धा भक्ति समेत, सतत उनको भजूँ।।
पूजूँ अर्घ्य चढ़ाय, नमाऊँ भाल मैं।
जिनगुण संपति लहूँ, तुरत खुशहाल मैं।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीन-
श्रीसाधितनाथादि-चित्रहृदयनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
गुण रत्नाकर तीर्थंकर, तुम पदपरम पुनीत।
कुसुमांजलि करके यहां, मैं अर्चूं धर प्रीत।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलि क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रवीन्दुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सौकुमारनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पृथ्वीवान्नाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुलरत्ननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सोमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वरुणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनंदननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुदृष्टिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शिष्टनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुधन्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सोमचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री क्षेत्राधीशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सदंतिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जयंतदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तमोरिपुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्मितदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कृतपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बोधिलाभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बहुनंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुदृष्टिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुंकुमनाभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वक्षेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
अपर धातकी द्वीप में, ऐरावत शुभ क्षेत्र।
भावी तीर्थंकर जजूँ, पाऊँ स्वातम क्षेत्र।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीन-
श्रीरवीन्दुनाथादिवक्षेशनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
सोरठा
गणपति मुनिपति वंद्य, सुरपति नरपति से नमित।
पूजूँ भक्ति अमंद, आनंदकंद जिनंद को।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दमनेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मूर्तस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विरागस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रलंबनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पृथ्वीपतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चारित्रनिधिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अपराजितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुबोधकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बुद्धीशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वैतालिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिमुष्टिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिबोधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तीर्थस्वामिनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मधीशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धरणेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभवदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनादिदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनादिप्रभुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वतीर्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निरुपमदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कौमारिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विहारगृहनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धरणीश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विकासदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
पुष्करार्ध पूरबदिशी, भरतक्षेत्र जिननाथ।
पूरण अर्घ्य चढ़ायके, नित्य नमाऊँ माथ।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थभूतकालीनश्रीदमनेन्द्र-
नाथादिविकासदेवनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
सोरठा
ज्ञान चेतनारूप, परमेष्ठी चिद्रूप हैं।
पुष्पांजलि से पूज, सकल दुःख दारिद हरूँ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जगन्नाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वरस्वामीनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भरतेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दीर्घानननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विख्यातकीर्तिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अवसानिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रबोधनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तपोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पावकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिपुरेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सौगतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वासवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मनोहरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शुभकर्मईशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री इष्टसेवितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मवासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रसादनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभामृगांकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उज्झितकलंकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्फटिकप्रभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गजेन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ध्यानजयनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
इन्द्रिय विषयों से विरत, परम अतीन्द्रिय सौख्य।
नमूँ नमूँ तीर्थेश सब, पाऊँ सौख्य मनोज्ञ।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीन-
श्रीजगन्नाथादि-ध्यानजयनाथपर्यंंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
सोरठा
तीन रत्न से हो गये, तीन लोक के नाथ।
तीन शल्य के नाशने, पूजूँ बनूँ सनाथ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वसंतध्वजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिजयंतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिस्तंभनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परबह्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अबालिशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रवादिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भूमानन्दनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिनयननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विद्वाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमात्मप्रसंगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भूमीन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गोस्वामीनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कल्याणप्रकाशितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं…. ।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मंडलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महावसुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उदयवाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दिव्यज्योतिर्नाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रबोधेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभयांकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रमितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दिव्यस्फारकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री व्रतस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निधाननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिकर्मानाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-कुसुमलता छंद
पण मिथ्यात्व विनय संशय, एकांत और विपरीत अज्ञान।
तथा अवान्तर भेद तीन सौ-त्रेसठ हैं मिथ्यात्व प्रधान।।
तुम भक्ती से भव का मूलहेतु मिथ्यात्व नष्ट हो जाय।
इसी हेतु चौबीसों जिनवर, तुमको पूजूँ अर्घ्य चढ़ाय।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीन-
श्रीबसंतध्वजनाथादि-त्रिकर्मानाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
दोहा
सप्त परमस्थान के, दाता श्रीजिनदेव।
नमूँ नमूँ तुमको सतत, करो अमंगल छेव।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कृतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उपविष्टनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवादित्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आस्थानिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वेषिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिभानुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ब्रह्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वङ्काांगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अविरोधीनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अपापनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री लोकोत्तरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जलधिशेषनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विद्योतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुमेरुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विभावितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वत्सलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनालयनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तुषारनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भुवनस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकामनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवाधिदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अकारिमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बिंबितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
पुण्यराशि अरू पुण्यफल, तीर्थंकर भगवान् ।
स्वातम पावन हेतु मैं, अर्घ्य चढ़ाऊँ आन।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ भूतकालीनश्रीकृति-
नाथादिबिंबितनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
सोरठा
सिद्धिवधू भरतार, निज में ही रमते सदा।
भुक्ति मुक्ति करतार, इसी हेतु भविजन जजें।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शंकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अक्षवासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नग्ननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नग्नाधिपतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नष्टपाखंडनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वप्नवेदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तपोधननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुष्पकेतुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धार्मिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चन्द्रकेतुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनुरक्तज्योतिर्नाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वीतरागनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उद्योतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तमोपेक्षनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मधुनादनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मरुदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वृषभस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शिलातननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विश्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महेन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तमोहरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ब्रह्मजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-गीताछंद
जो आपमें ही आप रत हो, आपको प्रभु पा लिया।
उन चरण में शत इंद्र ने, भी आप शीश झुका दिया।।
मैं पूजहूँ उनको सदा, वे सौख्य के भंडार हैं।
वे काम मोह व मृत्यु तीनों-मल्ल के हंतार हैं।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रवर्तमानकालीनश्रीशंकर-
नाथादिब्रह्मजनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
सोरठा
अतुल ऋद्धि के नाथ, अतुल रूप के तुम धनी।
अगणितगुण भंडार, मेरे सब संकट हरो।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री यशोधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुकृतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभयघोषनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निर्वाणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री व्रतवासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अतिराजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अश्वदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अर्जुननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तपश्चंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शारीरिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुग्रीवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दृढ़प्रहारनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अम्बरीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दयातीतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तुंबरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वशीलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रतिजातनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री तपादित्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
\ॐ ह्रीं अर्हं श्री रत्नाकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री लांछननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुप्रदेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-गीता छंद
सज्जाति सद्गार्हस्थ्य पारिव्राज्य और सुरेन्द्रता।
साम्राज्य पद आर्हन्त्य पद, निर्वाणपद की पूर्णता।।
ये सात परम स्थान हैं, तुम भक्त इनको पावते।
क्रम से परम निर्वाण पाकर, फिर न भव में आवते।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीन
श्रीयशोधरनाथादिसुप्रदेशनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…..।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
सौम्य छवीयुत मुखकमल, मंद मंद मुस्कान।
अंतर शुद्धी कह रहा, खेद रहित अमलान।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मचन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रत्नांगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अयोगिकेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वार्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ऋषिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हरिभद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गुणाधिपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पारत्रिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ब्रह्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनीन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दीपकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री राजर्षिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विशाखदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनिंदितनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रविस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सोमदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जयस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मोक्षनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अग्रभासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धनुःसंगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रोमांचकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुक्तिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रसिद्धनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जितेशनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
तीर्थंकर को पूज कर, भवदधि तिरूँ अगाध।
चिदानंद चिन्मय सहज, सुख पाऊँ निर्बाध।।२५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ भूतकालीन-
श्रीपद्मचन्द्रनाथादिजितेशस्वामिपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…..।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
(26)
पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंंबंधि-भरतक्षेत्र के वर्तमानकालीन 24 तीर्थंकरों के अर्घ्य
दोहा
अलंकार भूषा रहित, फिर भी सुंदर आप।
आयुध शस्त्र विहीन हो, नमूँ नमूँ निष्पाप।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वांगस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्माकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभाकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री बलनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री योगीश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सूक्ष्मांगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री व्रतचलातीतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कलंबकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परित्यागनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री निषेधिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पापापहारिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुक्तिचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अप्राशिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जयचंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मलाधारिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुसंयतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मलयसिंधुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अक्षधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवगणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आगमिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विनीतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रतानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
क्रोध बिना भी आपने, कर्मशत्रु को घात।
निर्भयपद को पा लिया, नमूँ नमाकर माथ।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीन
श्रीसर्वांगस्वाम्यादि-रतानंदनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
नाथ! आप शिवपथ विघन, करते चकनाचूर।
इसी हेतु मैं पूजहूँ, मिले आत्मरस पूर।।२५।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रभावकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विनतेंद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुभावकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दिनकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अगस्त्येजोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धनदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पौरवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री जिनदत्तनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिसिंधुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री आस्तिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भवानीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नृपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नारायणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रशमौकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भूपतिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुदृष्टिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भवभीरुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भार्गवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुवसुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परावशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वनवासीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भरतेशनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
इहलोकादिक सात भय, जन को करते भीत।
भय भी भय से भागते, जो पूजें धर प्रीत।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीन
श्रीप्रभावकनाथादि-भरतेशनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
सोरठा
केवल दर्शन ज्ञान, सौख्य वीर्य गुण आप में।
इन गुण हेतु महान्, पाद सरोरूह मैं जजूँ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री उपशांतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री फाल्गुणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पूर्वासनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सौधर्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गौरिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिविक्रमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नरसिंहनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मृगवसुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सोमेश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुधासुरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अपापमल्लनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विबाधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संधिकस्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मान्धात्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अश्वतेजोनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विद्याधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुलोचननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मौननिधिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुंडरीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चित्रगणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मणिरिन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सर्वकालनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भूरिश्रवणनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुण्यांगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-गीताछंद
संपूर्ण अतिशयगुण भरित, चौबीस तीर्थंकर कहे।
उनके चरण की वंदना, भविवृंद के पातक दहें।।
सब भूत प्रेत पिशाच व्यंतर, कष्ट दे सकते नहीं।
जिनने शरण प्रभू का लिया, वे दुःख क्या पाते कहीं।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ भूतकालीन-
उपशांतनाथादि-पुण्यांगनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा।दिव्य पुष्पांजलिः।
दोहा
समवसरण प्रभु आप का, दिव्य सभा का रूप।
मध्य कमल आसन उपरि, राजें तिहुँजग भूप।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गांगेयकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नल्लवासवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री भीमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दयाधिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुभद्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वामिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री हनिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री नंदिघोषनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री रूपबीजनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वङ्कानाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संतोषनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुधर्मनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री फणीश्वरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वीरचन्द्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मेधानिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री स्वच्छनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कोपक्षयनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अकामनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मधामनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सूक्तिसेननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री क्षेमंकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री दयानाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री कीर्तिपनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शुभंकरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-दोहा
पूजूूँ अर्घ्य चढ़ाय के, प्रभु तुम हो निर्दोष।
जन तुम भक्ति प्रभाव से, व्रत करते निर्दोष।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीन श्री
गांगेयकनाथादि-शुभंकरनाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
(30)
पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंंबंधि-ऐरावतक्षेत्र के भविष्यत्कालीन 24 तीर्थंकरों के अर्घ्य
दोहा
कोटि सूर्य शशि से अधिक, तुम प्रभु ज्योतिर्मान् ।
पुष्पांजलि कर पूजहूँ, करिये द्योतित ज्ञान।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अदोषिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वृषभदेवनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री विनयानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिभारतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री इंद्रकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चंद्रकेतुनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ध्वजादित्यनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वसुबोधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुक्तिगतनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मबोधनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री देवांगनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मारीचिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुजीवननाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री यशोधरनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री गौतमनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिशुद्धिनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री प्रबोधिकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सदानीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चारित्रनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री शतानंदनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री वेदार्थनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुधानीकनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री ज्योतिर्मुखनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुरार्घनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं………।।२४।।
पूर्णार्घ्य-त्रिभंगीछंद
तुम भक्ति अकेली, मुक्ति सहेली, समसुखमेली जो करते।
निज कर्मबंध अघ, खंड खंड तव, पुण्यपुंज सब वे भरते।।
जल आदिक लाके, अर्घ्य चढ़ाके, तुम गुण गाके मैं ध्याऊँ।
जिनवर गुणसंपति, आत्मिक संगति, त्रिभुवन वंदित मैं पाऊँ।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं पश्चिम पुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ भविष्यत्कालीन-
श्रीअदोषिकनाथादि-सुरार्धनाथपर्यंंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः पूर्णार्घ्यं………।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं श्री त्रिंशच्चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नमः।
(सुगंधित पुष्प, लवंग या पीले चावलों से 108 बार जपें।)
शेरछंद (हे दीनबंधु श्रीपति……)
जय जय प्रभो! तुम सिद्धि अंगना के कांत हो।
जय जय प्रभो! आर्हन्त्य रमा के भी कांत हो।।
हे नाथ! आपकी सभा अनुपम विशाल है।
उसके लिए इस जग में न कोई मिशाल है।।१।।
पृथ्वी से पांच सहस धनुष उपरि गगन में।
प्रभु आपका समोसरण है मात्र अधर में।।
सोपान पंक्ति बीस सहस श्रेष्ठ मणिमयी।
बस एक मुहूरत में सभी चढ़ते हैं सही।।२।।
बहु रत्नमयी धूलिसाल कोट प्रथम है।
उसमें ही चार द्वार नाम विजय आदि हैं।।
चारों दिशा में चार मानस्तंभ बताये।
जो कोस अड़तालीस तक भी दर्श करायें।।३।।
है चैत्यभवन भूमि रम्य द्रह वनादि से।
जिनबिंबनिलय से पवित्र तुम प्रसाद से।।
आगे है रम्यखातिका जो स्वच्छ जल भरी।
फूले कमल से हंस आदि रव से चित हरी।।४।।
है तीसरी लतावनी वकुलादि कुसुम से।
बल्ली के मंडपों से रम्य व्याप्त सुरभि से।।
उद्यानभूमि चौथि चार दिश में चार वन।
अशोक सप्तछद तथा चंपक व आम्रवन।।५।।
इनमें है चैत्यवृक्ष जैन बिंब को धरें।
मुनिगण भी जिनकी वंदना बहुभक्ति से करें।।
आगे है ध्वजाभूमि जो अगणित ध्वजा धरे।
हंसादि चिन्हदश तरह से युत ध्वजा धरें।।६।।
दशविध सुकल्पतरु से कल्पवृक्ष भू कही।
सिद्धार्थ वृक्ष सिद्ध बिंब युक्त धर रहीं।।
इनकी जो वंदना करें त्रिकाल भक्ति से।
वे सर्वसिद्धि प्राप्त करें स्वात्म शक्ति से।।७।।
आगे की भूमि में कहीं महलों की पंक्तियाँ।
जिन भक्ति नृत्य आदि करें देव देवियां।।
भू आठवीं जो बारहों कोठों को है धरे।
मणिस्फटिक की भित्ति से विभक्त गण धरे।।८।।
कोठे प्रथम में गणधरादि साधुगण रहें।
दूजे में कल्पवासिनी देवी वहां रहें।।
है तीसरे में आर्यिका औ श्राविका घनी।
फिर ज्योतिषी औ व्यंतरी व भवनवासिनी।।९।।
फिर भवनवासि व्यंतरों ज्योतिष्क के कोठे।
आगे हैं कल्पवासि मनुष औ पशू कोठे।।
द्वादश गणों के जीव ये चारों तरफ घिरे।
जिनदेव की वाणी सुने सम्यक्त्वगुण धरें।।१०।।
आगे की प्रथम पीठ पे यक्षेन्द्र खड़े हैं।
चउदिश में यक्ष धर्म चक्र शिर पे धरे हैं।।
हैं पीठ दूसरी पे चिन्ह युक्त ध्वजाएं।
तृतीय पीठ को भी रत्नखचित बतायें।।११।।
इसके उपरि है गंधकुटी नाथ की बनी।
जिस पर हैं चमर आदि व बजती हैं किंकणी।।
मणिस्फटिक से बना रत्नखचित सिंहासन।
जो गंध कुटी मध्य में है कमल इवासन।।१२।।
इस पे जिनेंद्र चार अंगुल अधर राजते।
त्रैलोक्यनाथ अतुल विभवयुत विराजते।।
चौंतीस अतिशयों व आठ प्रातिहार्य से।
आनन्त्य चतुष्टय सहित अनुपम विभासते।।१३।।
ये ग्यारहों हि भूमियां अद्भुत निकेत हैं।
इन मध्य मध्य कोट त्रय व पांच वेदि हैं।।
सब रत्न की रचना वहां नवनिधि भरी पड़ीं।
गोपुर व द्वार नाट्यशालाएं बड़ी बड़ी।।१४।।
प्रेक्षा सदन अभिषेक सहनआदि वहाँ पे।
मंडप सभागृहादि भी श्रुत केवलि ताके।।
वापी सरोवरों में वहाँ फूल खिले हैं।
वापी में कर स्नान सात भव भी दिखे हैं।।१५।।
कोठों का लघू क्षेत्र तो भी जिन प्रभाव से।
प्राणी असंख्य बैठते निर्वैर भाव से।।
आतंक रोग भूख प्यास आदि ना वहां।
मिथ्यात्वि असंज्ञी अभव्य शूद्र ना वहां।।१६।।
अंधे भी वहां देखते गूँगे भी बोलते।
लंगड़े चढ़े सब सीढ़ियाँ, बहिरे भी हैं सुनते।।
विष भी वहां निर्विष बने सब शोक टले हैं।
सब जात विरोधी वहां आपस में मिले हैं।।१७।।
स्तूप बनें तीन लोक आदि के वहां।
जो सर्व सृष्टि रूप धरें शोभते वहां।।
बहु धूपघड़ों में सभी सुधूप खे रहे।
निज कर्म धूप को उड़ा आनंद ले रहे।।१८।।
इत्यादि विभव है अपूर्व कौन कह सके।
गणधरगुरू सुरगुरु भी नहिं पार पा सकें।।
जो एक बार समोसरण मे चले गये।
वे भव्य मोक्ष पथिकों की कोटी में आ गये।।१९।।
जो भक्त एक बार भी तुम अर्चना करें।
निश्चित वे कर्म प्रकृतियों की खंडना करें।।
फिर वे कभी यमराज के चंगुल में ना पड़ें।
हो पूर्ण ‘ज्ञानमती’ मोक्ष महल में चढ़ें।।२०।।
दोहा
सर्व सात सौ बीस जिन, पंचकल्याणक ईश।
हो कल्याणक कल्पतरु, नमूँ नमूँ नत शीश।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिपंचभरतपंचैरावतक्षेत्रस्थत्रिंशच्चतुर्विंशति-
तीर्थंकरेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
गीता छंद
जो तीस चौबीसी महापूजा विधी रूचि से करें।
वर पंचकल्याणक अधिप जिननाथ के गुण उच्चरें।।
वे पंच परिवर्तन मिटाकर पंचकल्याणक धरें।
निर्वाण लक्ष्मी ‘ज्ञानमति’ युत पाय निज संपति वरें।।१।।
इत्याशीर्वादः। पुष्पांजलिः।