मिथ्यात्व के उदय से होने वाले तत्त्वार्थ के अश्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैंं। इसके पाँच भेद हैं—एकांत, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान अथवा गृहीत और अगृहीत के भेद से मिथ्यात्व के दो भेद भी होते हैं। इन्हीं में संशय को मिला देने से तीन भेद भी हो जाते हैं। विशेष रूप से ३६३ भेद होते हैं यथा—क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६७ और वैनयिकवादियों के ३२, मिथ्यादृष्टि जीव के परिणामों की अपेक्षा विस्तार से मिथ्यात्व के असंख्यात लोकप्रमाण तक भेद हो जाते हैं। मिथ्यादृष्टि जीव को सच्चा धर्म नहीं रुचता है। वह सच्चे गुरुओं के उपदेश का श्रद्धान नहीं करता है किन्तु आचार्याभासों से उपदिष्ट वचनों का श्रद्धान कर लेता है । इस गुणस्थान का काल संख्यात, असंख्यात या अनंत भव होता है।