जिन जन्मकल्याणक महोत्सव, इंद्रशत मिलकर करें।
सुरगिरि शिखर पर तीर्थकर का जन्मते अभिषव करें।।
इन तीर्थकर के जन्मकल्याणक जजें हम भाव से।
निज आत्म अनुभव प्राप्त हित आह्वान करते चाव से।।१।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आहृवाननं।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरण्।
तृषा चाह की है बुझी ना कभी भी।
इसी हेतु से नीर लाया प्रभु जी।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।१।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: जलं निर्वपामीति स्वाहा।
महाताप संसार में मोह का है।
इसी हेतु से शीत चंदन घिसा है।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।२।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
हुआ सौख्य मेरा क्षणिक नाशवंता।
इसी हेतु से शालि को धोय संता।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।३।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
मनोभू जगत में सभी को भ्रमावे।
इसी हेतु से पुष्प चरणों चढ़ावें।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।४।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षुधारोग सबसे बड़ा है जगत् में।
इसी हेतु नैवेद्य लाया सरस मैं।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।५।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
महाघोर अंधेर अज्ञान का ये।
इसी हेतु से दीप लौ जगमगावे।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।६।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
महा दुष्ट आठों करम संग लागे।
इसी हेतु से धूप खेऊँ यहाँ पे।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।७।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
स्ववांछीत फल हेतु घूमा अभी तक।
फलों को इसी हेतु अर्पूं प्रभू अब।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।८।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: फलं निर्वपामीति स्वाहा।
महा अर्घ ले आप को पूजता हूँ।
महामोह के फंद से छूटता हूँ।।
जजूँ जन्मकल्याण तीर्थंकरों के।
करूँ जन्म साफल्य निज सौख्य पाके।।९।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तीर्थंकर परमेश, तुम पद पंकज में सदा।
जग में शांती हेत, शांतीधारा मैं करूँ।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
हरसिंगार गुलाब, सुरभित करते दश दिशा।
तीर्थंकर पादाब्ज, पुष्पांजलि अर्पण करूँ।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
परम सौख्य आनंदमय, महापुण्य की राशि।
पुष्पांजलि चढ़ावते, मिले आत्मसुख राशि।।१।।
इति मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णानवम्यां ऋषभदेवजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं माघशुक्लादशम्यां अजितनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं कार्तिकपूर्णिमायां संभवनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं माघशुक्लाद्वादश्यां अभिनंदनजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लाएकादश्यां सुमतिनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णात्रयोदश्यां पद्मप्रभजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां सुपार्श्वनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां चंद्रप्रभजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लाप्रतिपदायां पुष्पदंतजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं माघकृष्णाद्वादश्यां शीतलनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णाएकादश्यां श्रेयांसजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णाचतुर्दश्यां वासुपूज्यजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां विमलनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाद्वादश्यां अनंतनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं माघशुक्लात्रयोदश्यां धर्मनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां शांतिनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लाप्रतिपदायां कुंथुनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लाचतुर्दश्यां अरनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लाएकादश्यां मल्लिनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णाद्वादश्यां मुनिसुव्रतजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णादशम्यां नमिनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठ्यां नेमिनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां पार्श्वनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं चैत्रशुवलात्रयोदश्यां महावीरजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
कुरुवंश शिरोमणि शांतिकुंथु, अर जिनवर जग में मान्य हुए।
मुनिसुव्रत नेमी हरिवंशी, श्रीपार्श्व उग्रकुल नाथ हुये।।
महावीर नाथवंशी बाकी, इक्ष्वाकुवंश भूषण मानें।
इन वंश पूजते वंश चले, वंदत संतान सौख्य ठाने।।२५।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य-ॐ ह्रीं जन्मकल्याणकसहितचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।
जै जै जिनेन्द्र आपने जब जन्म था लिया।
संपूर्णलोक में महा आश्चर्य भर दिया।।
सुरगृह में कल्पवृक्ष पुष्पवृष्टि कर झुकें।
देवों के सिंहासन भी आप आप कंप उठें।।१।।
शीतल सुगंध वायु मंद मंद बही थी।
पृथ्वी भी तो हिलने से मनों नाच रही थी।।
संपूर्ण दिशाएं गगन भी स्वच्छ हुए थे।
सागर भी तो लहरा रहा आनंद हुए से।।२।।
व्यंतर गृहों में भेरियों के शब्द हो उठे।
भवनालयों में शंख नाद गूंजने लगे।।
ज्योतिष गृहों में सिंहनाद स्वयं हो उठा।
सुरकल्पवासि भवन में घंटा भी बज उठा।।३।।
इंद्रों के मुकुट अग्र भी स्वयमेव झुक गये।
जिन जन्म जान आसनों से सब उतर गये।।
तब इंद्र के आदेश से सुर पंक्ति चल पड़ीं।
सबके हृदय में हर्ष की नदियाँ उमड़ पड़ीं।।४।।
सुरपति प्रभु को गोद में ले गज पे चढ़े हैं।
ईशान इंद्र प्रभु पे छत्र तान खड़े हैं।।
सानत्कुमार औ महेन्द्र चमर ढोरते।
सब देव देवियाँ बहुत भक्ति विभोर थे।।५।।
क्षण में सुमेरु गिरि पे जाके प्रभु को बिठाया।
पांडुक शिला पे नाथ का अभिषेक रचाया।।
सौधर्म इन्द्र ने हजार हाथ बनाये।
संपूर्ण स्वर्ण कलश एक साथ उठाये।।६।।
सबने प्रभु का न्हवन एक साथ कर दिया।
जय जय ध्वनी से देवों ने आकाश भर दिया।।
सब इंद्र औ इंद्राणियों ने न्हवन किया था।
सब देव औ देवांगनाओं ने भी किया था।।७।।
अभिषेक जल उस क्षण में पयोसिंधु बना था।
देवों की सेना डूब रही हर्ष घना था।।
जन्माभिषेक जिनका स्वयं, इंद्र कर रहे।
उत्सव विशेष और की फिर बात क्या कहें।।८।।
सुरपति ने पुन: प्रभु को लाके जनक को दिया।
बहुदेव और देवियाँ सेवा में रख दिया।।
सुर धन्य वे जो नाथ संग खेल खेलते।।
मिथ्यात्वशत्रु को भी वे घानी में पेलते।।९।।
मैं भी करूँ सेवा प्रभू की भक्ति भाव से।
मिथ्यात्व का निर्मूल हो समकित प्रभाव से।।
बस एक प्रार्थना पे नाथ! ध्यान दीजिए।
‘‘सज्ज्ञानमती’’ पूर्ण हो यह दान दीजिए।।१०।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरजन्मकल्याणकेभ्य: जयमाला अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जो पंचकल्याणक महापूजा महोत्सव को करें।
वे पंचपरिवर्तन मिटाकर पंच लब्धी को धरें।।
फिर पंचकल्याणक अधिप हो, मुक्तिकन्या वश करें।
‘सुज्ञानमति’ रविकिरण से भविजन कमल विकसित करें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।