तर्ज-देख तेरे संसार की हालत…….
नवदेवांची पूजन करतो मिळते नव निधी महान,
जय जय जय नव देव महान।।टेक.।।
अरिहंत आणि सिद्ध परमेष्ठी।
आचार्य-उपाध्याय परमेष्ठी।।
सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-चैत्य-चैत्यालय महान,
जय जय जय देव देव महान।।१।।
सर्वांना इथे करूँ आह्वानन।
स्थापन आणि सन्निधापन।।
पुष्पांजलि अर्पण करतो मी पूजन करून महान,
जय जय जय नव देव महान-२।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथाष्टक-शेर छंद
गंगे चे नीर मुनि मना समान पवित्र आहे।
भगवन्ताच्या चरणी चढ़ाव्या मन पवित्र आहे।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरीचे केशर घेउनी मी आलो।
भगवन्ताच्या चरणामध्ये चर्चन करण्या आलो।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
मोती समान अक्षता चे पुंज मी आणले।
भगवन्ताच्या चरणमध्ये अर्पण करतो त्याला।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
मोतीच्या लड़ी सम मी पुष्पलड़ी आणली।
विषयानधता समाप्तकरण्या साठी मी आलो।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
पक्वानांची थाळी मी हाता मध्ये आणली।
प्रभु चरणां मधे त्यासी मी अर्पण केली।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृताचा एक दीपक घेऊन मी आलो।
प्रभु आरती ने माझे मोहतिमिर नाश झाले।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
मी चंदनाची धूप सुगंधीत आणतो।
प्रभु सम्मुख अग्निमधे त्यासी अर्पण करतो।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
डाळिंब द्राक्षे फळांची थाळी आणतो।
मी शिवफळांची प्राप्ति हेतु प्रभु पूजा करतो।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
मी अष्टद्रव्य मिळून अर्घ्य थाळी आणतो।
प्रभु चरणां मध्ये ‘‘चन्दनामती’’ ते अर्पण करतो।।
भवसिन्धु तरण्या साठी मी पूजा ही रचतो।
नव देवतांची मूर्ति आपल्या हृदयी धारतो।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तर्ज-गंगा यमुना में जब तक………
झारी नाची घेऊन चरणां मधे, तीन धारा करण्याचे भाव आहे….भाव आहे।
देवा…….हो नव देवा……। देवा…….हो नव देवा।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
फार सुरभित सुगंधीत पुष्प घेऊनी, प्रभु चरणां मधे पुष्पांजलि मी करतो…..
पुष्पांजलि मी करतो।
देवा…….हो नव देवा……। देवा…….हो नव देवा।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य- ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम- जिनचैत्य-चैत्यालयेभ्यो नम:।
(९, २७ या १०८ बार मंत्र को जपते हुए पुष्पांजलि करें)
तर्ज-देख तेरे संसार की हालत……..
नव देवांची पूजन करून मी म्हणतो जयमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।टेक.।।
अरिहंत देव प्रथम देवता आहे।
त्यांचे प्रसिद्ध शेह चाळीस गुण आहे।।
सिद्धशिलांचे वासी सिद्ध प्रभूंची गुणमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।१।।
आचार्य-उपाध्याय परमेष्ठी।
यांचे मूलगुण छत्तिस-पंचवीस।।
पंचपरमेष्ठी सर्व साधूंची म्हणतो गुणमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।२।।
जिनधर्माची शरण घेऊनी।
जिनवाणी चा स्वाध्याय करतो मी।।
श्री अकृत्रिम-कृत्रिम जिनचैत्यांची गुणमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।३।।
जिनचैत्यालय मध्ये जातो।
सम्यग्दर्शन प्राप्ती होते।।
सर्व नव देवांच्या पूजनाची ही गुणमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।४।।
सद्या उपस्थित त्रय परमेष्ठी।
सूरी-पाठक-साधु परमेष्ठी।।
त्यांचा जयकारा करतो मिळती गुणाची माला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।५।।
गौतम गणधर चैत्य भक्ति मध्ये।
नव देवांची भक्ती करतो।।
महावीरांचा समवसरण मध्ये म्हणतो गुणमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।६।।
तसेच गणिनी ज्ञानमती जी।
नव देवांची भक्ती करती।।
नव देवांची हिन्दी पूजा रचिता गुणमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।७।।
मी पूर्णार्घ समर्पण करतो।
पद अनर्घची भावना करतो।।
भवसिन्धू तरण्या साठी मी गातो जयमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।८।।
जिनभक्ती ही मुक्ति प्रदात्री।
पंचम कालाची सुखदात्री।।
एवढेच ‘‘चन्दनामती’’ आर्यिका म्हणते जयमाला,
आज आनंदि आनंद झाला-२।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-
चैत्यालयेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
तर्ज-गंगा यमुना में जब तक………
नव देवांची पूजा करूनी मला,
नव नवी भावना भावितो निज मना…….भावितो निजमना।
देवा…..हो नव देवा…..२।।टेक.।।
माझे मन सदा प्रभुच्या चरणीं आहे,
अशी इच्छा मी करितो निज मना….करितो निजमना।
देवा…..हो नव देवा…..२।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।