वंदना
-स्रग्विणी-
सिद्ध की वंदना सर्व आस्रव हरे।
वंद्य अर्हंत को पुण्य आस्रव भरें।।
सूरि पाठक सभी साधु को वंदते।
पाप आस्रव टरें दु:ख को खंडते।।१।।
मैं नमूँ मैं नमूँ पंच परमेष्ठि को।
रोक शोकादि मेरे सबे दूर हों।।
शुद्ध सम्यक्त्व हो ज्ञान ज्योती जगे।।
शुद्ध चारित्र हो कर्मशत्रू भगें।।२।।
जो जजें नाथ को सर्वसंपत् भरें।
पुण्य आस्रव यजन से महादुख हरें।।
धन्य जीवन करें पुण्य लक्ष्मी वरें।
फेर संसार का परिभ्रमण परिहरें।।३।।
सांपरायीक आस्रव सदा काल में।
ये कषायों सहित हो रहा जीव में।।
ये गुणस्थान दशवें हि पर्यंत हो।
ये कषायें नशें कर्म आस्रव न हो।।४।।
केवलीनाथ ईर्यापथास्रव धरें।
वेदनीसात आवे उसी क्षण झरे।।
वे निरास्रव बनें सिद्धपद पावते।
सिद्ध वंदत मिले स्वात्मसुख शाश्वते।।५।।
अथ विधियज्ञप्रतिज्ञापनाय पुष्पांजलिं क्षिपेत्।