नि:संग हो हे नाथ! आप दर्श को आया।
स्नान त्रय से शुद्ध धौत वस्त्र धराया।।
त्रैलोक्य तिलक जिनभवन की वंदना करूँ।
जिनदेवदेव को नमूँ संपूर्ण सुख भरूँ।।१।।
(जिनमंदिर के निकट पहुँचकर यह श्लोक पढ़कर मंदिर को नमस्कार कर चारों दिशा में तीन-तीन आवर्त एक-एक शिरोनति करते हुए मंदिर की तीन प्रदक्षिणा देवें पुन: पैर धोकर अंदर प्रवेश करें।)
ॐ ह्रीं हुँ हूँ णिसिहि स्वाहा।
यह मंत्र बोलकर मंदिर में प्रवेश कर नीचे लिखा मंत्र पढ़कर हाथ धोवें।
हाथ धोने का मंत्र—
ॐ ह्रीं असुजर सुजर स्वाहा।
पुन: हाथ जोड़कर दर्शन स्तोत्र पढ़ें—
हे नाथ! आप दर्श करके हर्ष हो रहा।
आनंद अश्रु झड़ रहे सब पाप धो रहा।।
जीवन सफल हुआ मैं आज धन्य हो गया।
प्रभु भक्ति से निज सौख्य में निमग्न हो गया।।२।।
पडिक्कमामि भंते। इरियावहियाए विराहणाए अणागुत्ते, अइगमणे, णिग्गमणे, ठाणे गमणे, चंकमणे, पाणुग्गमणे, बीजुग्गमणे, हरिदुग्गमणे, उच्चार-पस्सवण खेलसिंघाणवियडिपइट्ठावणियाए जे जीवा एइंदिया वा, बेइंदिया वा, तेइंदिया वा, चउिंरदिया वा, पंचिंदिया वा, णोल्लिदा वा, पेल्लिदा वा, संघट्टिदा वा, संघादिदा वा, उद्दाविदा वा, परिदाविदा वा, किरिंच्छिदा वा, लेस्सिदा वा, छिंदिदा वा, भिंदिदा वा, ठाणदो वा, ठाणचंकमणदो वा, तस्स उत्तरगुणं तस्स पायच्छित्तकरणं तस्स विसोहिकरणं, जाव अरहंताणं भयवंताणं पज्जुवासं करेमि ताव कायं पावकम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि।
(९ बार णमोकार मंत्र का जाप करें।)
इच्छामि भंते। आलोचेउं इरियावहियस्स पुव्वुत्तर-दक्खिणपच्छिम-चउदिसु विदिसासु विहरमाणेण जुगंतरदिट्ठिणा भव्वेण दट्ठव्वा। पमाददोसेण डबडबचरियाए पाणभूदजीवसत्ताणं उवघादो कदो वा कारिदो वा कीरंतो वा समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं।
ॐ क्ष्वीं भू: शुद्ध्यतु स्वाहा।
(बैठने की जगह जल छिड़कें।)
ॐ ह्रीं क्ष्वीं आसनं निक्षिपामि स्वाहा।
(आसन बिछावें।)
ॐ ह्रीं ह्युं ह्युं णिसिहि आसने उपविशामि स्वाहा।
(आसन पर बैठें।)
ॐ ह्रीं मौनस्थिताय स्वाहा
(मौन ग्रहण करें अर्थात् पूजा-पाठ के सिवाय अन्य बातें न करें।)
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: नमोऽर्हते श्रीमते पवित्रतरजलेन पात्रशुद्धिं करोमि स्वाहा।
(पूजा के बर्तन धोवें या उन पर जल छिड़कें।)
ॐ ह्रीं अर्हं झ्रौं वं मं हं सं तं पं झ्वीं क्ष्वीं हं स: असि आ उसा समस्त तीर्थ पवित्रजलेन शुद्धपात्रनिक्षिप्तपूजाद्रव्याणि शोधयामि स्वाहा।
(पूजा सामग्री पर जल छिड़कें।)
भगवन्! नमोस्तु ते एषोऽहं जिनेन्द्रपूजावंदनां कुर्याम्।
पुन: सामायिक स्वीकार करें—
संसार के भ्रमण से अति दूर हैं जो।
ऐसे जिनेन्द्र पद में नित ही नमूूँ मैं।।
संपूर्ण सिद्धगण को सब साधुओं को।
वंदूं सदा सकल कर्म विनाश हेतू।।१।।
है साम्यभाव सब प्राणी में हमारा।
है ना कभी किसी से मुझे वैर किंचित्।।
संपूर्ण आश तज के शुभभाव धारूँ।
संसार दु:ख हर सामायिक करूँ मैं।।२।।
भगवन्! नमोस्तु प्रसीदंतु प्रभुपादा वंदिष्येहं। एषोऽहं तावच्च सर्वसावद्ययोगाद्विरतोस्मि।
अथ जिनेन्द्रपूजावंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजा-वंदनास्तवसमेतं श्रीमद्सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
णमो अरहंताणं णमो सिद्धांणं णमो आइरियाणं।
ण्मो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं।।
चत्तारि मंगलं, अरहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहुमंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मोमंगल, चत्तारि लोगुत्तमा, अरहंत लोगुत्तमा सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंतसरणं पव्वज्जामि, सिद्धसरणं पव्वज्जामि, साहुसरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मोसरणं पव्वज्जामि।
जाव अरहंताणं भयवंताणं पज्जुवासं करेमि ताव कायं पावकम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि। (९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य।)
थोस्सामि हं जिणवरे तित्थयरे केवली अणंतजिणे।
णरपवरलोयमहिये विहुयरयमले महप्पण्णे।।
लोयस्सुज्जोययरे धम्मं तित्थंकरे जिणे वंदे।
अरहंते कित्तिस्से चउवीसं चेव केवलिणो।।१।।
तवसिद्धे णयसिद्धे संजमसिद्धे चरित्तसिद्धे य।
णाणम्हि दंसणह्मि य सिद्धे सिरसा णमंसामि।।२।।
इच्छामि भंत्ते। सिद्धभत्ति काओसग्गो कओ तस्स आलोचेउं सम्मणाण-सम्मदंसणसम्मचारित्तजुत्ताणं अट्ठविहकम्मविप्पमुक्काणं अट्ठगुणसंपण्णाणं उड्ढलोयमत्थयह्मि पइट्ठियाणं तवसिद्धाणं णयसिद्धाणं संजमसिद्धाणं चरित्तसिद्धाणं अतीताणागदवट्टमाणकालत्तयसिद्धाणं सव्वसिद्धाणं सया णिच्चकालं अंचेमि पूजेमि वंदामि णमंस्सामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।
इति पूजामुखविधि:।
(यह पूजा प्रारंभ विधि हुई।)