मनुष्य के जीवित रहने के लिए वायु व जल के बाद सर्वाधिक आवश्यक वस्तु भोजन ही है । मनुष्य का भोजन कैसा हो उसका क्या उद्देश्य है, वह क्या हो, कितना हो इस पर ध्यान देना आवश्यक है ।
भोजन से मनुष्य का उद्देश्य मात्र उदरपूर्ति, स्वास्थ्य प्राप्ति अथवा स्वाद की पूर्ति ही नहीं है अपितु मानसिक व चारित्रिक विकास करना भी है । आहार का हमारे आचार, विचार व व्यवहार से गहरा संबंध है । प्राचीन कहावत जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन आज भी उतनी ही सत्य है । मनुष्य की विभिन्न प्रकार के भोजन के प्रति रूचि उसके आचरण व चरित्र की पहचान कराती है । अतः हमारा भोजन से उद्देश्य उन पदार्थो का सेवन करना है जो शारीरिक, नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक उन्नति करने वाले व स्नेह, प्रेम, दया, अहिंसा, शांति आदि गुणों को बढ़ावा देने वाले हों ।
मनुष्य के भोजन में शरीर को शक्ति, पुष्टि देने वाले व गर्मी बनाये रखने वाले पदार्थ, प्रोटीन, शर्करा, विटामिन्स, खनिज, वसा आदि पदार्थ उचित अनुपात व पर्याप्त मात्रा में होने चाहिये ताकि शरीर में अच्छी किस्म के नए कोशाणु (New cells) व R.B.Cs बनते रहें क्योंकि हमारे शरीर में लाखों R.B.Cs (Red Blood Corpuscle) प्रति सैकिन्ड मरते व नए उत्पन्न होते हैं । ऐसा अनुमान हैं कि छ: वर्ष में हमारे शरीर के सभी (Cells & Tissues) कोशाणु व ऊतक पूरी तरह बदल जाते हैं यानि जिस प्रकार सांप हर छ: महीने बाद अपनी खाल बदल लेता है उसी तरह छ: वर्ष में हमारे शरीर के भी पूरे (Ahinsa Voice, 90 published by Sharma Sahitya Sanstan,Delhi. Cell & Tissues) पूरी तरह बदल जाते हैं जिनकी क्वालिटी हमारे भोजन पर निर्भर करती है । साथ ही भोजन में ऐसे पदार्थ भी होने चाहिये जिनसे शरीर में रोगों का प्रतिरोध करने की क्षमता रहे व शरीर से व्यर्थ मादे, मल तथा बचे खुचे हानिकारक तत्व (toxins) बाहर निकलने में रुकावट न आए । भोजन में रोगोत्पादक, स्वास्थ्य नाशक व उत्तेजनकारी तत्व न हों क्योंकि ये तत्व मानसिक सन्तुलन को बिगाड़ कर आवेगों को जन्म देते हैं और उन्हें अमर्यादित व उच्छृंखल बनाते हैं ।
प्रकृति ने मनुष्य के भोजन के लिए अनेक पदार्थ अनाज, फल, साग सब्जी, मेवे इत्यादि उत्पन्न किये है जिनमें सभी प्रकार के पौष्टिक तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं । एक वयस्क व्यक्ति की विभिन्न तत्वों की दैनिक आवश्यकता निम्न है। प्रोटीन , फैट , कैलोरीज Hyderabad. अपनी रुचि अनुसार विभिन्न श्रेणी के पदार्थो में जो पसन्द हों वह पृष्ठ 14 पर दी गई तालिका से चुन कर लिया जा सकता है व अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार सस्ते व महंगे पदार्थ शामिल कर संतुलित व पौष्टिक शाकाहारी भोजन तैयार किया जा सकता है । शाकाहारी भोजन न केवल सस्ता होता है, अपितु रोगों से बचाव करने की क्षमता प्रदान कर हमारे स्वास्थ्य, समय व पैसे की बचत भी करता है । बिना पकाए हुए फलों व सब्जियों के प्रयोग से तो अनेकों रोग तक ठीक हो जाते हैं । कुछ किस्म के (Diatery Fibre) डायटरी फाइबर तो केवल पौधों से प्राप्त वस्तुओं में ही पाए जाते हैं । ये फाइबर, ब्लड कोलस्ट्रोल कम रखते हैं व डायबटीज आदि रोगों से बचाव करते हैं ।
जितने व्यक्ति भुखमरी से मरते हैं उससे कहीं अधिक आवश्यकता से अधिक खाने से मरते हैं । अधिक खाने से कम खाना कहीं ज्यादा बेहतर है । हमें ध्यान रखना चाहिये कि हम जीने के लिये खाते हैं-खाने के लिये नहीं जीते। अत: हमें अपनी भूख से कुछ कम ही खाना चाहिये क्योंकि अन्य कार्यों की भांति खाना भी एक आदत है । समान कार्य करने वाले. समान उम्र के सब व्यक्तियों की खुराक एक सी नहीं होती । कुछ अधिक खाते हैं तो कुछ उनसे कम खाते हैं । कम खाने वाले स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक खाने वालों से अधिक बलवान नहीं होते । पौष्टिक पदार्थ खाने वाले अक्सर मोटापे के शिकार हो जाते हैं जो सुस्ती व आलस्य उत्पन्न करता है व अपच कब्ज आदि पेट के रोगों को जन्म देता है । अधिकांश रोगों का मूल कारण अधिक खाना ही है । अंग्रेजी की एक कहावत है Bigger the Waistline Shorter is life line अर्थात जितना मोटापा अधिक उतनी उम्र कम । महान सूफी शेख सादी के अनुसार पेट के चार हिस्से मान कर उसमें से दो हिस्से खाने से भरें एक हिस्सा पानी से और एक हिस्सा खाली रहने दें वो खुदा के नूर से भर जाएगा । स्वाद में अधिक खा लेना स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को न्यौता देना है । शास्त्रों में विद्यार्थी व साधक दोनों को ही स्वल्पाहारी होंना आवश्यक कहा गया है ।
शाकाहारी भोजन का एक बड़ा लाभ यह हैं कि यह फुलावदार भारी भरकम (Bulky) होता है और भूख जल्दी भरता है । इसको शरीर की आवश्यकता से अधिक खा पाना कठिन होता है, अत: इससे मोटापा सीमित रहता है । हमारा शरीर एक अद्भुत व विशाल यन्त्र है जो सांस लेना, रक्त साफ करना, नया रक्त बनाना, भोजन आदि को पचाना व अनावश्यक तत्वों को बाहर निकालना आदि अनेक क्रियाएं निरन्तर करता रहता है । अन्य मशीनों की भाँति हमारी इस मशीन को भी सुचारू रूप से काम करने के लिए कुछ विश्राम की आवश्यकता होती है जो हम सप्ताह में एक बार भोजन न करके दे सकते हैं । ऐसा करने से हमारे पाचन तंत्र व गुर्दे आदि पर दबाव हल्का हो जाता है और अनेक बीमारियों से बचाव होता है । शरीर को स्वस्थ रखने के लिये अधिक भोजन नहीं चाहिये इसको जितना सीमित पर्याप्त आहार दोगे यह उतना अधिक काम देगा, जितना अधिक दोगे उतना कम काम देगा खाना हमारे लिए है हम खाने के लिए नहीं अत: स्वस्थ रहने के लिए कम खाएं-गम खाएं का ही सिद्धांत अपनाएं ।
अपने सभी कर्मों को उचित बताने के प्रयत्न में प्राय: मनुष्य ऐसा कहते हैं कि पेट के लिए सब कुछ करना पड़ता है” यह ठीक हैं कि पेट की भूख हर प्राणी को व्याकुल व पथ भ्रष्ट कर देती है किन्तु यह उससे भी अधिक सत्य हैं कि मानव के पेट की भूख बहुत सीमित होती है और उसे वह थोड़े से श्रम से व बिना किसी गलत कार्य के भी पूरा कर सकता है । मानव की जो भूख कभी भी नहीं भरती और जिसे पूरा -करने के लिए वह गलत काम करता है वह उसके पेट की भूख नहीं अपितु उसके मन की भूख है जिसे जितना तृप्त करने का प्रयत्न किया जाता है । उतनी ही वह अधिक बढ़ती है और उसे पूरा करने के लिए मानव को छल, कपट, लूटमार, अपराध, हत्या आदि कुकर्मो की ओर ले जाती है, जिनका परिणाम भय, अशांति, क्रोध, लूटमार, घृणा आदि के रूप में मिलता है और जो उसे व्यसनों दुर्गुणों व रोगों की ओर ले जाते हैं । यह तो प्राय : कहा ही जाता हैं कि पेट तो भर गया पर मन नहीं भरा । यह मन का न भरना ही अधिकांश समस्यायें उत्पन्न करता है, इस तन की भूख व मन की भूख का अन्तर समझ लेने में ही मानव का कल्याण है।