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तत्त्वार्थसूत्र भजन- द्वितीय अध्याय!
June 14, 2020
भजन
jambudweep
भजन-२ द्वितीय अध्याय
हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।।
हैं जीव तत्व के पाँच भाव, जो आत्मा में ही होते हैं।
औदयिक पारिणामिक उपशम, क्षय और क्षयोपशम होते हैं।।
संसारी-मुक्त सभी जीवों में, यथाशक्ति पाये जाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।१।।
चौरासी लाख योनियों में, यह जीव जनम कैसे लेता।
सुख-दुख अनुभव के साथ सदा, इन्द्रिय विषयों में रस लेता।।
औदारिक आदि शरीरों से, अशरीरी तभी न बन पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।२।।
कुछ कारणवश तिर्यञ्च मनुज का, मरण अकाल भी हो सकता।
नहिं देव नारकी भोगभूमि, अरु मोक्षगामि के हो सकता।।
‘‘चंदनामती’’ तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय द्वितीय में ये बातें।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।३।।
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Tatvaarth Sutra bhajan
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