(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. ग्रीष्म तपन में माताजी विहार कर दिल्ली पहुँचीं।
२. चातुर्मास की स्थापना।
३. माताजी आईं-बहार आई।
४. सब्जी मंडी जिनालय में-पार्श्र्वनाथ निर्वाण दिवस।
५. पर्यूषण पर्व में इन्द्रध्वज विधान का आयोजन।
६. सितम्बर में शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर का आयोजन।
७. डिप्टीगंज जिनालय में भी इन्द्रध्वज विधान हुआ।
८. मोरीगेट में पंचपरमेष्ठी विधान।
९. चातुर्मास निष्ठापित।
१०. दरियागंज बालाश्रम हीरक जयंती में सन्निधि दी।
११. अटल बिहारी वाजपेयी ने माताजी से आशीर्वाद लिया।
१२. ग्रीनपार्क कॉलोनी में ध्यान साधना शिविर।
१३. ब्र.माधुरी जी ने सामायिक विधि सिखलाई।
१४. माताजी ने द्रव्यसंग्रह का अध्ययन कराया।
१५. कनॉट प्लेस में इन्द्रध्वज विधान का आयोजन।
१६. पहाड़गंज में द्रव्यसंग्रह अध्यापन।
१७. ऋषभजयंती, पंचपरमेष्ठी विधान का आयोजन।
१८. चाँदनी चौक में महावीरजयंती पर माताजी के प्रवचन।
१९. सम्यग्ज्ञान शिविर का आयोजन।
२०. हिन्दी रत्नकरंड एवं शांति विधान की रचना।
२१. रत्नमती माताजी पीलिया से ग्रस्त।
२२. दिल्ली में ही ग्रीष्मकाल।
तप्त तवा-सी भूमि तप रही, सूरज आग उगलता है।
पवन लपट झुलसाती तन को, पंथी राह न चलता है।।
ऐसे में संघ माताजी का, क्रमश: पहुँचा दिल्ली पास।
मोरी गेट के जैन जिनालय, हुआ स्थापित चातुर्मास।।६८२।।
साधु-चरण जिस थल पड़ जाते, चहल-पहल बढ़ जाती है।
जैन-जगत की दैनिक चर्या, अप्रमत्त बन जाती है।।
धर्म अंकुरण होने लगता, भव्य कमल बन खिल जाते।
नगर-मुहल्ला-जिनालयों के, सारे दृश्य बदल जाते।।६८३।।
माताजी के शुभागमन से, लगे जिनालय भरा-भरा।
बाल-वृद्ध-नर-नारी मन में, धार्मिक रंग चढ़ा गहरा।।
प्रातकाल माँ के प्रवचन में, आने लगा वृहत् समुदाय।
नहीं किसी का कोई जगत में, केवल होता धर्म सहाय।।६८४।।
श्रावण शुक्ला तिथि सप्तमी, को वह आई पुण्य घड़ी।
जैन जिनालय सब्जी मंडी, में पधराई माताजी।।
पार्श्र्वनाथ निर्वाण दिवस पर, लाडू यहाँ चढ़ाया है।
तदा सामयिक प्रवचन करके, दिवस महत्त्व बताया है।।६८५।।
धन्य भाग्य माना समाज ने, माताजी के चरण पड़े।
हम आभारी, हम कृतज्ञ हैं, हम सबके सौभाग्य बड़े।।
श्री मुनिराज मल्लिसागर जी, धर्मसभा पधराये हैं।
विद्याधर के पूर्व पिता श्री, शोभा सभा बढ़ाये हैं।।६८६।।
मोरीगेट की महिलाओं ने, पर्यूषण में भाव किया।
इन्द्रध्वज मंडल विधान का, शुभ आयोजन रखा गया।।
पहली बार हुआ आयोजन, दिल्ली को थी बात नई।
अत: कमाने पुण्य अपरिमित, इंद्र-इंद्राणी बने कई।।६८७।।
शिक्षण और प्रशिक्षण शिविर, हुआ सितम्बर के महिने।
प्राप्त रही सम्पूर्ण सफलता, धर्मलाभ के क्या कहने।।
मोतीचंद कोठारी फल्टण, कुलपति का पद धारे थे।
साहित्याचार्य श्री पन्नालाल जी, सागर से पधराये थे।।६८८।।
डिप्टीगंज जिनालय दिल्ली, माताजी आगमन हुआ।
इंद्रध्वज मंडल विधान का, शुभ-आयोजन यहाँ हुआ।।
शतकाधिक स्त्री-पुरुषों ने, पूजक बनकर लाभ लिया।
तदुपरान्त श्रीमाताजी ने, मोरीगेट को गमन किया।।६८९।।
मोरीगेट में रमेशचंद ने, पंचपरमेष्ठी किया विधान।
समय बीतते देर न लगती, आया दिवस वीर निर्वाण।।
चातुर्मास हुआ निष्ठापित, हुआ पिच्छिका परिवर्तन।
बालआश्रम-दरियागंज को, माताजी ने किया गमन।।६९१।।
बालआश्रम दरियागंज ने, वर्ष पचहत्तर पूर्ण किए।
हीरक जयंति महोत्सव माँ ने, बहुश: आशीर्वाद दिए।।
अटल बिहारी वाजपेयी ने, प्राप्त किया माँ शुभ आशीष।
कर विहार माताजी पहुँचीं, ग्रीनपार्क कॉलोनी बीच।।६९१।।
ध्यान साधना शिविर यहाँ पर, हुआ महत्तम आयोजन।
माताजी ने ध्यान कराया, ह्रीं बीज पद सुनियोजन।।
बालब्रह्मचारिणी माधुरी, सामायिक विधि सिखलाई।
ध्यान-साधना-सामायिक में, मनोशांति सबने पाई।।६९२।।
आचार्य प्रवर श्री नेमिचंद्र की, लघु रचना द्रव्यसंग्रह नाम।
माताजी स्वाध्याय कराया, रहा सुखद-सफल परिणाम।।
तदुपरान्त श्रीमाताजी के, प्रवचन होते धर्म सभा।
ग्रीन पार्क के भव्य बाग में, बिखर उठी अद्भुत शोभा।।६९३।।
निर्मल कुमार सेठी सीतापुर, साहूजी श्री शांतिप्रसाद।
तद् सुपुत्र श्री अशोक कुमार ने, पाकर माँ का आशीर्वाद।।
अ.भा.दिगम्बर जैन महासभा, सेठी पद पाया अध्यक्ष।
धार्मिक कार्यों बना अग्रणी, साहू परिवार सकल प्रत्यक्ष।।६९४।।
ग्रीनपार्क से कनॉट प्लेस में, माताजी संघ लाये जन।
इन्द्रध्वज मंडल विधान का, हुआ महत्तम आयोजन।।
कनॉट प्लेस से पहाड़गंज में, कर विहार संघ पधराया।
द्रव्य संग्रह के अध्यापन का, यहाँ पुन: अवसर आया।।६९५।।
ऋषभ जयंती मनी यहाँ पर, पंचपरमेष्ठी विधान किया।
प्रवचन लाभ मिला जनता को, सबने धार्मिक ज्ञान लिया।।
पहाड़गंज से चौक चाँदनी, सकल संघ पधराया है।
वीर जयंती महामहोत्सव, माँ सान्निध्य मनाया है।।६९६।।
महावीर जयंति महापर्व पर, हुए प्रभावक माँ प्रवचन।
माह मई में हुआ प्रयोजित, सम्यग्ज्ञान शिविर शिक्षण।।
बालविकास-ग्रंथ द्रव्यसंग्रह, रत्नकरण्ड श्रावकाचार।
सभी वर्ग ने पढ़े ध्यान से, ग्रहण किए उत्तम संस्कार।।६९७।।
आयोजन प्रतिदिन होते थे, चलती थी प्रवचन माला।
किन्तु कभी भी माताजी ने, लेखन कार्य नहीं टाला।।
व्यस्त दिनों में भी माताजी, करतीं जिनवाणी का गान।
रचीं आपने हिन्दी रचना, रत्नकरण्ड व शांतिविधान।।६९८।।
ग्रीष्मकाल की तीव्र तपन में, हुआ पीलिया तीव्र अती।
शिथिलगात हो गई बहुत ही, पूज्य आर्यिका रत्नमती।।
यूनानी ठंडाई पिलाई, हुआ पीलिया में आराम।
ग्रीष्मकाल में सकल संघ ने, इन्द्रप्रस्थ ही लिया विराम।।६९९।।