१. चातुर्मास की स्थापना।
२. इन्द्रध्वज विधान का आयोजन।
३. श्रवणबेलगोल महामस्तकाभिषेक पर अनेक रचनाएँ लिखीं।
४. बड़ी संख्या में प्रकाशित एवं अन्य भाषाओं में अनूदित।
५. पर्यूषण पर्व में कम्मोजी की धर्मशाला में प्रवचन।
६. जैन भारती का विमोचन।
७. इन्द्रध्वज विधान एवं गजरथ।
८. लाल मंदिर को विहार।
९. दिल्ली में माँ सानिध्य में १०० इन्द्रध्वज, कई ऋषिमंडल, पंचपरमेष्ठी, शांतिविधान हुए।
१०. कई शिक्षण शिविर आदि।
११. हस्तिनापुर के लिए विहार।
१२. माताजी का ज्ञान यज्ञ प्रारंभ।
१३. अनेक आयोजन सम्पन्न।
१४. ज्ञान ज्योति रथ भ्रमण की रूपरेखा।
कालचक्र चलता ही रहता, रुकने का लेता नहिं नाम।
एक-एक क्षण कटते-कटते, कट जाती है उम्र तमाम।।
तपतीं जेठ दुपहरी बीतीं, आया क्रमश: प्रावृड् काल।
काले-काले पयोधरों की, दिखने लगीं गगन में माल।।७००।।
चातुर्मास शुरू होने में, बस अब थे कुछ ही दिन शेष।
माताजी के श्रीचरणों में, दिल्लीवासी गये अशेष।।
एक-एक श्रीफल था कर में, मन-सर-वारिज खिले-खिले।
शिरसा वंदामि कर बोले, हमको चातुर्मास मिले।।७०१।।
माताजी मन परम पारखी, जान गई सब गहराई।
कितनी प्यास लगी चातक को, अच्छी तरह समझ आर्ई।।
स्वीकृति देकर भक्तजनों की, माताजी ने पूरी आस।
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को, हुआ स्थापित चातुर्मास।।७०२।।
कूचा रहा बुलाकी बेगम, चौक चाँदनी, अतिथि भवन।
मेरु जिनालय, नंदीश्वर की, रचना अतिशय मनभावन।।
बीच सुशोभित अंजनगिरि है, चार बावड़ी चार दिशा।
एक बावड़ी तेरह मंदिर, बावन मंदिर चतुर्दिशा।।७०३।।
चातुर्मास हुआ स्थापित, जैन जगत उत्साहित मन।
इन्द्रध्वज मंडल विधान का, हुआ सुटीत्या आयोजन।।
माह फरवरी सन् इक्यासी, श्रवणबेलगोला दक्षिण।
महामस्तकाभिषेक बाहुबली, का होना है आयोजन।।७०४।।
एक हजार वर्ष पूर्व से, गोम्मटेश श्री बाहुबली।
की प्रतिमा तपलीन खड़ी है, विन्ध्यगिरी पर लगे भली।।
लगे हुए सब तैयारी में, कौन-कौन क्या कर पायें।
परम पूज्य श्रीमाताजी ने, की साहित्यिक रचनायें।।७०५।।
योग चक्रेश्वर बाहुबली जी, उपन्यास नव लिखा गया।
कामदेव बाहूबलि लघु, बाहूबलि नाटक रचा गया।।
भरत-बाहुबली यह नामांकित, चित्रकथा कॉमिक्स लिखा।
बाहुबली पूजन रचना की, स्तोत्र संस्कृत में विरचा।।७०६।।
लाखों की संख्या में प्रतियाँ, हुर्इं प्रकाशित, वितरित कीं।
हो प्रचार-प्रसार अधिकतम, माताजी अभिलाषा थी।।
हुई अनूदित कई भाषा में, माताजी की रचनाएँ।
आडियो कैसिट गये बनाये, लिखी जो माता कविताएँ।।७०७।।
पर्वराज पर्यूषण आया, हुए आयोजित माँ प्रवचन।
प्रात: कम्मोजी धर्मशाला, दोपहर मंदिर अतिथि भवन।।
प्रवचन कहें कि अमृतवर्षा, सरल-शुद्ध-भाषा में ज्ञान।
ज्ञान सूर्य से छटा हृदय में, बैठा युग-युग का अज्ञान।।७०८।।
धर्म एक है लक्षण दश हैं, इन सबका सम्मान करो।
क्षमाभाव से ब्रह्मचर्य तक, सबका सम्यग्ज्ञान करो।।
छोड़ो पाप-कषाएँ दृढ़ हो, दशलक्षण पा जाओगे।
क्षमासिन्धु स्नान करोगे, ब्रह्म शिखर चढ़ जाओगे।।७०९।।
माताजी के प्रवचन रहता, श्रोतागण वात्सल्य घुला।
रोम-रोम पुलकित हो जाता, ऐसा अनुभव-ज्ञान मिला।।
शरच्चंद्र के मुखमण्डल से, जब बहती धर्मामृत धार।
विनयांजलि कर मानें श्रोता, माताजी का परमोपकार।।७१०।।
चुन-चुन माता कहें उद्धरण, प्रथम आदि चारों अनुयोग।
श्रोताओं का सदा काल ही, स्थिर रहता शुभ उपयोग।।
समय पूर्ण हो जाता यद्यपि, फिर भी रहती मन में चाह।
भूख-प्यास कुछ भी न सताती, मनुआँ रहता बे-परवाह।।७११।।
महामस्तकाभिषेक बाहुबली, किया प्रवर्तन इन्दिरा जी।
मानों पुनर्जन्म पा करके, आर्इं वही गुल्लिका जी।।
माताजी के शुभाशीष से, मंगल कलश ने किया भ्रमण।
लालकिला मैदान में हुआ, माताजी मंगल प्रवचन।।७१२।।
तेईस अक्टूबर, उन्निस अस्सी, शरदपूर्णिमा, इच्छा नाह।
गया मनाया माताजी का, जन्ममहोत्सव अति उत्साह।।
पिच्यासी विद्वान् पधारे, समयसार-वाचना-शिविर।
पन्नालाल-कैलाशचंद जी, आये थे विद्वान् प्रवर।।७१३।।
ऋषभदेव संस्कार प्रभावना, जीवनदान उपकार नियम।
माताजी की रचनाओं का, हुआ विमोचन क्रम-क्रम-क्रम।।
महामस्तकाभिषेक काल में, श्रवणबेलगोला प्रांगण।
त्रिलोक जैन शोध संस्थान का, हुआ वहाँ पर अधिवेशन।।७१४।।
माताजी से रचित महत्तम, रचना जैन भारती नाम।
हुई विमोचित श्रवणगोल में, करी प्रशंसा साधु तमाम।।
चतुरनुयोग समन्वित रचना, सुंदरतम सामग्री सह।
बहु उपयोगी देखी सबने, की सराहना अद्भुत यह।।७१५।।
प्रेमचंद जी दाने वाले, परमदयालू व्यक्ति महान।
लाल जिनालय चौक चाँदनी, इन्द्रध्वज करवाया विधान।।
परम पूज्य श्रीमाताजी का, मंगलमय सान्निध्य सुवास।
गजरथ निकला इंद्रप्रस्थ में, रचा गया नूतन इतिहास।।७१६।।
सोलह मार्च इक्यासी आया, लाल जिनालय हुई सभा।
साश्रु विदाई दी माता को, माँ बिखरी आशीष प्रभा।।
लाल जिनालय से विहार कर, मोरीगेट पधराया संघ।
पर्व अठाई यहाँ मनाया, होली का आ रहा प्रसंग।।७१७।।
हस्तिनागपुर करे प्रतीक्षा, हो माताजी शुभागमन।
दो-क वर्ष में माताजी के, हुए नहीं पावन दर्शन।।
जम्बूद्वीप प्रगति के चरण, दो वर्षों में बढ़े कई।
बनकर के तैयार हो गई, दो धर्मशाला नई-नई।।७१८।।
परम पूज्य माताजी सन्निधि, दिल्ली दिखलाया औदार्य।
दो वर्षों में इन्द्रप्रस्थ में, हुए अनेक महत्तम कार्य।।
सत इन्द्रध्वज, कई ऋषिमंडल, पंचपरमेष्ठी, शांतिविधान।
शिक्षण-शिविर हुए लघु-वृहत्, माँ अध्याप्ये ग्रंथ महान।।७१९।।
दिल्ली के दिल से विहार कर, माँ पधराई हस्तिनापुर।
गलियों में सूनापन आया, छाई उदासी चेहरों पर।।
हस्तिनागपुर रौनक आई, जम्बूद्वीप में चहल-पहल।
जग के दृश्य बदलते रहते, रहें न स्थिर इक भी पल।।७२०।।
हस्तिनागपुर आकर माता, स्वाध्याय तप लीन हुई।
प्रात: दोपहर संघ साथ में, स्वाध्याय तल्लीन हुई।।
अष्टपाहुड़ सर्वार्थसिद्धि का, स्वाध्याय हित चयन हुआ।
माताजी श्री ज्ञानमती का, ज्ञानयज्ञ प्रारंभ हुआ।।७२१।।
लेखन कार्य चला द्रुतगति से, पूर्व ज्ञान निधि हुई संभाल।
ज्ञान ज्योतिरथ देश भ्रमण हित, बनी रूपरेखा इस काल।।
शांतिनाथ अभिषेक साथ ही, निलय रत्नत्रय उद्घाटन।
माताजी के सन्निधान में, हुए अन्य बहु आयोजन।।७२२।।