(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. एकादश वर्ष के श्रम का फल है जम्बूद्वीप।
२. रंग में भंग-माताजी अस्वस्थ।
३. अस्वस्थता में भेदविज्ञानी चिन्तन।
४. देह कमजोर, पर आत्मा सबल।
५. अनेकानेक आयोजन-त्यागी गृह से ही आशीष।
६. थोड़ा स्वास्थ्य लाभ-लेखन प्रारंभ।
७. कमल मंदिर के निर्माण का शिलान्यास।
८. सर्वतोेभद्र विधान की रचना।
९. जम्बूद्वीप विधान की रचना।
१०. श्रुतपंचमी पर्व पर विधानों की पालकी निकाली।
११. सम्यग्ज्ञान शिविर का आयोजन-नरेन्द्र्प्रकाश जी कुलपति रहे।
१२. षोडश दिवसीय शांति विधान का आयोजन।
१३. माताजी के स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना।
पंचकल्याणक महामहोत्सव, सुष्ठुतया सम्पन्न हुआ।
कार्य समाप्ति पर अतिथिजनों का, सुकृतपथ को गमन हुआ।।
वर्ष एकादश का अनथक श्रम, आज सामने आया है।
लखकर सुंदरता का सागर, हृदय कमल मुस्काया है।।८०४।।
जम्बूद्वीप स्वर्ग परिसर में, कुछ-कुछ कार्य रहे अवशेष।
आर्ष प्रणीत महाग्रंथों का, स्वाध्याय चल रहा विशेष।।
दे प्राथम्य उसे माताजी, हस्तिनागपुर किया प्रवास।
एक जुलाई, सन् पिच्चासी, हुआ स्थापित चातुर्मास।।८०५।।
शुभ कार्यों में विघ्न बहुत से, बिना बुलाये आ जाते।
किन्तु मनस्वी उन्हें देखकर, किंचित् नहीं हैं घबराते।।
उनसे डटकर युद्ध ठानते, विजय लक्ष्मी पाते हेैं।
ऐसा ही प्रसंग पाठकों, तुमको एक सुनाते हैं।।८०६।।
गणिनी ज्ञानमती माता के, हैं व्यक्तित्व के पक्ष अनेक।
उत्तम साध्वी, श्रेष्ठ लेखिका, कवियों में कवयित्री एक।।
रचे आपने बहुविधान हैं, पूजाएँ उत्तम-उत्तम।
साहित्यसाधिका बीस शती की, सर्वश्रेष्ठ कह सकते हम।।८०७।।
सुखों-दुखों का आना-जाना, निश्चित रहता नियति क्रम।
दुख पहाड़ कब टूट पड़ेगा, कुछ्छ नहीं कह सकते हम।।
बीत रहा था धार्मिक जीवन, स्वाध्याय-लेखन-सुविचार।
किन्तु अचानक माताजी को, प्रतिदिन आने लगा बुखार।।८०८।।
व्याधि यहाँ तक बढ़ी कि छोड़ी, भक्तों ने जीवन आशा।
शांतिपाठ प्रारंभ कर दिये, जो समाधि की परिभाषा।।
किन्तु रहा पुण्योदय सबका, निदान पीलिया पर आया।
हुआ कारगर औषधि देना, माता स्वास्थ्य लाभ पाया।।८०९।।
तन तो अतिशय क्षीण हो गया, किन्तु आत्मा महा प्रबल।
भेदज्ञान जिनके घट जागा, मनोमेरु नहिं होता चल।।
माताजी जपती ही रहतीं, अहमिक्को खलु शुद्धोऽहं।
दंसण-णाणमयी मे आत्मा, अरस-अरूपी-बुद्धोऽहं।।८१०।।
मुझको मृत्यु नहीं आती है, मैं तो अमर आत्मा हूँ।
रोग-शोक से दूर सर्वदा, शुद्ध द्रव्य परमात्मा हूँ।।
बालक – वृद्ध – युवा – नर – स्त्री, यह है मेरा रूप नहीं।
ये सब पुद्गल की पर्यायें, मम स्वभाव अनुरूप नहीं।।८११।।
हुए विविध धार्मिक आयोजन, या सामयिक कार्य किया।
त्यागी-गृह में ही प्रवास कर, माँ ने शुभ आशीष दिया।।
माताजी के तन में ज्यों ही, दौड़ी सूरज स्वास्थ्य किरण।
स्वाध्याय संलग्न हो गई, करने लगीं ग्रंथ लेखन।।८१२।।
शिलान्यास श्री कमल जिनालय, शुभ मुहूर्त में किया गया।
महावीर जी के मंदिर को, भव्य रूप यों दिया गया।।
गणिनी माता ज्ञानमती ने, रचा सर्वतोभद्र विधान।
एक शतक एक पूजाएँ, दो हजार है अर्घ्य प्रमाण।।८१३।।
परम पूज्य श्रीमाताजी ने, विरचा जम्बूद्वीप विधान।
किन्तु पूर्णता पा न सका वह, पीड़ा कर्म असाता आन।।
स्वास्थ्य लाभ कर पूर्ण किया वह, पर्व पंचमी श्रुत अवतार।
ग्रंथ पालकी किए विराजित, पूर्ण नगर में हुआ विहार।।८१४।।
गणिनी ज्ञानमती माताजी, विद्वज्जन् हित कल्पलता।
ज्ञानशिविर आयोजित करतीं, बनें विद्वान् ज्ञान सविता।।
नरेन्द्रप्रकाश जी फिरोजाबाद को, कुलपतित्व का सौंपा भार।
मोक्षशास्त्र सहदशधर्मों का, ग्रहण किया शिविरार्थी सार।।८१५।।
माताजी से प्राप्त प्रेरणा, विविधायोजन होते हैं।
आस-पास के नगरादिक भी, अति लाभान्वित होते हैं।।
माघ-फाल्गुन शुक्लपक्ष में, षोडश दिवसी शांति विधान।
हुए यहाँ पर, नगर सरधना, शिविर लगाए देने ज्ञान।।८१६।।
माताजी के परम भक्त हैं, मोतीचंद जी ब्रह्मचारी।
आत्मोत्थान चाहते बनकर, क्षुल्लकव्रत के आचारी।।
परम पूज्य श्री माताजी ने, स्वीकृति सह आशीष दिया।
विमलनिधि आचार्यश्री से, यथाकाल व्रत ग्रहण किया।।८१७।।
हे भगवन्! श्री माताजी को, सदा स्वास्थ्य का लाभ रहे।
आधि-व्याधि कोई न सताए, रत्नत्रय निराबाध रहे।।
नूतन निर्मित आयोजन से, जम्बूद्वीप करे उत्थान।
माताजी के शुभाशीष से, हम सबका होवे कल्याण।।८१८।।