-अथ स्थापना (नरेंद्र छंद)-
श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर के, चरण कमल शिर नाऊँ।
व्रत संयम गुण शील प्राप्त हों, यही भावना भाऊँ।।
मुनिगण महाव्रतों को पाकर, मुक्तिरमा को परणें।
हम भी आह्वानन कर पूजें, पाप नशें इक क्षण में।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक (बसंततिलका छंद)-
सरयू नदी जल भरा कनकाभ झारी।
धारा करूँ त्रय जिनेश्वर पाद में मैं।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर संग घिस चंदन गंध लाया।
पादारविंद प्रभु के चर्चूं अभी मैं।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
मोती समान धवलाक्षत पुंज धारूँ।
मेरा अखंड पद नाथ! मुझे दिला दो।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
बेला गुलाब सुरभी करते दशों दिक्।
पादारविंद प्रभु के अर्पण करूँ मैं।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय कामवाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
फेनी सुहाल गुझिया बरफी बनाके।
हे नाथ! अर्पण करूँ क्षुध रोग नाशे।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर ज्योति जलती हरती अंधेरा।
हे नाथ! आरति करूँ निज ज्ञान चमके।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
खेऊँ सुगंध वर धूप सु अग्नि में मैं।
संपूर्ण कर्म झट भस्म बने न दुःख दें।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
केला अनार वर द्राक्ष बदाम लेके।
अर्पूं तुम्हें सब मनोरथ पूर्ण कीजे।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीरादि अर्घ्य भर थाल चढ़ाय देऊँ।
मेरा अनर्घ्य पद नाथ! मुझे दिला दो।।
वंदूँ सदैव मुनिसुव्रत को रुची से।
संपूर्ण चारित मिले भव दुःख नाशे।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-सोरठा-
श्री जिनवर पादाब्ज, शांतीधारा मैं करूँ।
मिले निजातम राज्य, त्रिभुवन में भी शांति हो।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
बेला हरसिंगार, जिनपद पुष्पांजलि करूँ।
मिले सर्व सुखसार, त्रिभुवन की सुख संपदा।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।