वेद्यां मंडलमालिखार्चितसितैश्चूर्णैः सिताकल्पभृत्।
नागाधाीशधानेशपीतवसना-लंकारपीतैश्च तैः।।
नीलैर्नीरजनीलवेष सुमनो, रक्ताभरक्तैस्ततो।
रक्ताकल्पककृष्णमेघविलसन्-कृष्णैश्च कृष्णप्रभ।।1।।
पंचचूर्णस्थापनम्।। द्धमंडल पर पंचचूर्ण की स्थापना करेंऋ
सन्मंगलस्यास्य कृते कृतस्य, कोणेषु बाह्यक्षितिमंडलस्य।
वज्राणि चत्वारि च वज्रपाणिन्, वज्रस्य चूर्णेन लिखाद्य वेद्याम्।।2।।
इति वज्रस्थापनम्।। द्धमंडल के चारों कोनों पर हीरा स्थापित करेंऋ
अथ पुष्पांजलिपुरःसरं ब्रह्मादिवास्तुदेवतानां पृथगिष्टिः।
द्धअब ब्रह्म आदि वास्तुदेवों की पुष्पांजलिपूर्वक पृथक्-पृथक् पूजा करेंऋ
द्धजिनपूजा में भव्यों को विघ्न नहीं आवें इसलिए वास्तुदेव पूजन के प्रारंभ में
पुष्पांजलि क्षेपण करेंऋ
श्रीमज्जैनमहामहोत्सवविधिा-व्यापारसंसि)ये।
भव्यानामपि तं नियोगनिचय-श्रपरीतात्मनाम्।।
क्षेमार्थं क्रियमाणवस्तुदिविषत्-संघातसंपूजन-
प्रस्तावे प्रविकीर्यते जयजया-रावेण पुष्पांजलिः।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्षीं भूः स्वाहा।। पुष्पांजलिः।
ॐ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धानांग , णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
हौ सर्वशान्तिं कुरुत कुरुत स्वाहा।।1।।
ॐ ह्रींअक्षीणमहानसि)र्भ्यो नमः स्वाहा।।2।।
ॐ ह्रीं अक्षीणमहालयि)र्भ्यो नमः स्वाहा।।3।।
ॐ ह्रीं दशदिशतः आगतविघ्नान् निवारय निवारय सर्वं रक्ष रक्ष हूं फ़ट् स्वाहा।।4।।
ॐ ह्रीं दुर्मुहूर्तदुःशकुनादिकृतोपद्रवशांतिं कुरु कुरु स्वाहा।।5।।
ॐ ह्रीं वास्तुदेवेभ्यः स्वाहा।।6।।
ॐ ह्रीं परकृतमंत्रतंत्रडाकिनीशाकिनीभूतपिशाचादिकृतोपद्रवशांतिं कुरु कुरु स्वाहा।।7।।
ॐ ह्रीं सर्वविघ्नोपशान्तिं कुरुत कुरुत स्वाहा।।8।।
ॐ ह्रीं सर्वत्र क्षेमं आरोग्यतां विस्तारय विस्तारय सर्व ष्ट-पुुष्टं प्रसन्नचित्तं कुरु कुरु स्वाहा।।9।।
ॐ ह्रीं यजमानादीनां सर्वसंघस्य शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धि वृद्धि समृध्दि
अक्षीणध्दिपुत्रपौत्रदिवृद्धि आयुवृद्धि धानधाान्यसमृध्दि कुरुत कुरुत स्वाहा।।10।।
ॐ ह्रीं क्रौं आं अनुत्पन्नानां द्रव्याणामुत्पादकाय, उत्पन्नानां द्रव्याणां वृि)कराय
चिन्तामणिपार्श्वनाथ वसुदाय नमः स्वाहा।।11।। अर्घ्य चढ़ावें।