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उत्तम आर्जव धर्म भजन
June 15, 2020
भजन
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भजन-३ उत्तम आर्जव धर्म
तर्ज—दिन रात मेरे स्वामी……
हे नाथ! आपसे मैं, वरदान एक चाहूूँ।
वरदान……
ऋजुता हृदय में लाकर, आर्जव धरम निभाऊँ। आर्जव……।। टेक.।।
ना जाने क्यों कुटिलता का भाव आ ही जाता।
हे प्रभु! उसे हटा कर समता का भाव लाऊँ।। समता का……।।१।।
माया में फसके मैंने मानव जनम गंवाया।
अनमोल इस रतन को अब ना गंवाने पाऊँ।। अब ना……।।२।।
यह भी सुना है माया से पशुगती है मिलती।
उस पशुगती में हे प्रभु! अब मैं न जाना चाहूँ।। अब मैं……।।३।।
शायद अनादिकालिक संस्कार संग लगे हैं।
मैं चाहकर भी हे प्रभु! उनसे न छूट पाऊँ।। उनसे न……।।४।।
यह पुण्यकर्म ही जो गुरु देशना मिली है।
फिर ‘चन्दनामती’ मैं, मन में उसे बिठाऊँ।। मन में……।।५।।
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Daslakshan Song
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