(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. चातुर्मास की स्थापना।
२. अनेक कार्यक्रमों का आयोजन।
३. कल्पद्रुम महा विधान सम्पन्न।
४. विधानों का आयोजन जम्बूद्वीप में ही क्यों?
५. सर्वतोभद्र विधान का आयोजन।
६. कुन्दकुन्द मणिमाला की रचना।
७. आचार्य कुन्थुसागर संघ का प्रवास।
८. त्रैलोक्यविधान का आयोजन।
९. जम्बूद्वीप आदि विधान भी आयोजित।
समय का पंछी उड़ता जाता, रुकता कभी न एक हि ठौर।
ग्रीषम ऋतु के जाते-जाते, आ जाता वर्षा का दौर।।
साधु-साध्वी पंथ न चलते, धर्म पालते रह इक थान।
जीवों की रक्षा करना ही, परम धर्म कहते भगवान।।८५०।।
पूरा अंचल उमड़ के आया, माताजी के चरण शरण।
चातुर्मास अठासी सन् का, हो गजपुर ही स्थापन।।
करुणा कलित हृदय माता का, सब पूर्वापर किया विचार।
बात हृदय की हृदय समझता, कहा हृदय ने है स्वीकार।।८५१।।
विधान वाचस्पति-गणिनी-माँश्री, ज्ञानमती जी पा सन्निधान।
चातुर्मास हुए आयोजित, लघु-बृहत् अनगिनत विधान।।
पर्वराज आया पर्यूषण, माताजी उपकार किया।
मोक्षशास्त्र-दशधर्मांगों पर, पूज्या श्री उपदेश दिया।।८५२।।
माह अक्टूबर अट्ठ्यासी में, हुआ कल्पद्रुुम महाविधान।
चक्रवर्ति पहाड़े बांटा, चार प्रकार किमिच्छिक दान।।
श्रवणबेलगुल के भट्टारक, चारुकीर्ति जी देखा तब।
हुए प्रभावित, कर्नाटक में, करवाया जाकर के सब।।८५३।।
क्षेत्र पुरातन हस्तिनागपुर, बड़ा जिनालय अधिक समीप।
उसे छोड़ क्यों आते श्रावक, विधान कराने जम्बूद्वीप।।
उत्तर में स्पष्ट बता दूँ, सन्निधान रहता है माँ।
विधि-विधान, जीवन्त तीर्थ का, मिल जाता आशीष यहाँ।।८५४।।
पर्व अठाई के आने पर, हुआ सर्वतोभद्र विधान।
शत-अठ जयमालाएँ लिखकर, माँ श्री किया जिनेन्द्र गुणगान।।
तेरह-बीस समन्वय लखकर, सुमति सिन्धु हर्षित बोले।
ज्ञानमती का कार्य श्रेष्ठ है, नहिं विद्वेष पंथ को ले।।८५५।।
कुन्दकुन्द के ज्ञान सिंधु से, माताजी नवनीत समान।
नि:चय व्यवहार समन्वयकारी, लीं गाथा शत-आठ प्रमाण।।
कुन्दकुन्द मणिमाला नामक, हुआ प्रकाशित ग्रंथ ललाम।
हिन्दी-अर्थ भावार्थ किया माँ, हित जिज्ञासू सुंदर काम।।८५६।।
आचार्यश्री कुन्थुसागर संघ, गजपुर रहा चालीसक दिन।
माताजी ने साधुजनों को, किया अध्यापित हर्षित मन।।
प्रकाशचंद टिकैतनगर ने, यहाँ आ किया त्रैलोक्य विधान।
माताजी वे प्रवचनामृत से, पाया सबने उत्तम ज्ञान।।८५७।।
ताराचंद नरपत्या ने भी, जम्बूद्वीप यह किया विधान।
जम्बूद्वीप महोत्सव नब्बे, की बैठक इस दिन इस थान।।
तभी घोषणा की माताजी, सुन लें सभी एक चित हो।
कुमारी माधुरी दीक्षा लेंगी, तेरह अगस्त नवासी को।।८५८।।
परम पूज्य श्री माताजी का, सुष्ठु बीता चातुर्मास।
मुनिसंघ के दर्शन सह ही, सबने पाया ज्ञानप्रकाश।।
माताजी के प्रवचन हमको, देते हैं उत्तम शिक्षा।
देखें, चलें सजे मण्डप में, ले रहीं माधुरी जी दीक्षा।।८५९।।