Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर चातुर्मास-सन् १९९२!

October 4, 2014ज्ञानमती माताजीjambudweep

जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर चातुर्मास-सन् १९९२

(चतुर्थ_खण्ड)


समाहित विषयवस्तु

१. समय परिवर्तनशील है।

२. वर्षा का आगमन।

३. समाज द्वारा चातुर्मास का निवेदन।

४. माताजी द्वारा स्वीकृति एवं चातुर्मास स्थापना।

५. गुरुपूर्णिमा का आयोजन।

६. वीरशासन जयंति सम्पन्न।

७. भगवान पार्श्र्वनाथ निर्वाण महोत्सव मनाया गया।

८. आचार्य शांतिसागर पुण्यतिथि।

९. पर्यूषण में कल्पद्रुम महामंडल विधान।

१०. चारित्र निर्माण संगोष्ठी का आयोजन।

११. माताजी की ५९वीं जन्मजयंती-अभिनंदन ग्रंथ समर्पित।

१२. माताजी युग-युग जिएँ।

१३. माताजी के अलौकिक कार्य।

१४. जयपुर में कल्पद्रुम विधान, तीन हजार लोग, पैंतालीस बसों से हस्तिनापुर आये।

१५. माताजी को आर्यिका शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया।

१६. चातुर्मास निष्ठापित। १७. आर्यिका रत्नमती पुण्यतिथि।

१८. तेरहद्वीप जिनालय का शिलान्यास। १९. अयोध्या के लिए विहार।

२०. अयोध्या में भगवान ऋषभदेव महामस्तकाभिषेक।

२१. माताजी का अहिच्छत्र में आगमन।

२२. अहिच्छत्र नाम की सार्थकता।

२३. तीस चौबीसी मंदिर निर्माण की योजना।

२४. तीस चौबीसी का परिचय।

२५. तीस चौबीसी का अनुपम ध्यान।

२६. इससे पूर्व बिलारी में सिद्धचक्र विधान।

२७. सीतापुर में महावीर जयंती एवं माताजी की आर्यिका दीक्षा जयंती।

२८. संघ का टिकैतनगर में आगमन।

२९. अयोध्या आगमन, त्रिकाल चौबीसी मंदिर का शिलान्यास।

३०. अयोध्या तीर्थदर्शन, विकास का संकल्प।

३१. माताजी के संघ की शोभा।

काव्य पद

कालपुरुष क्षण एक न रुकता, वह नित बढ़ता जाता है।

जो भी उसके सम्मुख आता, निबल ग्रास बन जाता है।।

जो भविष्य था, उदर समाता, वर्तमान बन आता है।

वर्तमान बस एक समय का, फिर अतीत हो जाता है।।९२८।।

शरद-शिशिर-हेमन्त बीत कर, बसंत-ग्रीष्म-वर्षा आई।

पीड़ित-तृषित जगत् सुख देने, चली सुशीतल पुरवाई।।

उमड़-घुमड़ करते मेघों से, सब आछन्न हुआ आकाश।

भव्यजनों को मिली सूचना, आने वाला चातुर्मास।।९२९।।

आस-पास का पूरा अंचल, दौड़ लगाई माँ के पास।

कभी अकेले, फिर सामूहिक, कभी बसों भर की अरदास।।

श्रीफल किए समर्पित चरणों, किया निवेदन माँ से खास।

हे माताजी! ज्ञानमती जी!, हमें चाहिए चातुर्मास।।९३०।।

माँ का मन मक्खन-सा मृदु है, मानसरोवर-सा निर्मल।

वात्सल्य-करुणा की धारा, प्रवहमान रहती अविरल।।

कभी निराश नहीं लौटा है, माथा टेका जिसने द्वार।

दक्षिण कर आशीष दिया माँ, चातुर्मास रहा स्वीकार।।९३१।।

तेरह जुलाई, सन् बानवे, आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी।

गणिनी ज्ञानमती माताजी, वर्षावास स्थापना की।।

हस्तिनागपुर जम्बूद्वीप में, माताजी का रहा प्रवास।

भक्त भ्रमर बनकर समूह में, मँडराये चरणांबुज पास।।९३२।।

आषाढ़ सुदी पूर्णिमासी को, गुरू पूर्णिमा आई है।

ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूप में, गुरु की महिमा गाई है।।

गुरु उपकार अनंत किया है, मोहतिमिर का नाश किया।

ज्ञान का अंजन लगा-लगाकर, लोचन जगत् उघाड़ दिया।।९३३।।

गणिनी ज्ञानमती माताजी, श्री गुरुवर को याद किया।

आचार्य श्रीवीरसागर को, बारम्बार प्रणाम किया।।

श्री गुरुवर ने चरण-शरण दे, किया जो मेरा है उपकार।

उऋण नहीं हो पाउँगी मैं, चाहे ले लूँ जनम हजार।।९३४।।

श्रावण कृष्णा एकम् के दिन, महावीर की दिव्यध्वनी।

प्रथमबार बिखरी विपुलाचल, श्रोतागण से गई सुनी।।

ज्ञानमती माताजी सन्निधि, वीर (शासन) जयंति मनाई है।

सकल संघ ने सम्मिलित होकर, प्रभुगुण गाथा गाई है।।९३५।।

श्रावण शुक्ला तिथि सप्तमी, पार्श्र्वप्रभू पाया निर्वाण।

माताजी के सन्निधान में, सकल संघ गाया गुणगान।।

पार्श्र्वनाथ का चरित सभी को, उत्तम शिक्षा देता है।

बैरभाव को जो तजता है, वही मोक्ष फल लेता है।।९३६।।

बीस सदी के प्रथमाचार्य हैं, परम पूज्य श्री शांतिनिधि।

भादों शुक्ला दोज तिथि को, मनी सातवीं पुण्यतिथि।।

प्रात:काल हुई गुरु पूजा, गुणानुवाद मध्यान्ह सभा।

आज उन्हीं के शिष्यों द्वारा, फैल रही है धर्म प्रभा।।९३७।।

पर्वराज पर्यूषण आया, सन्निधान माँ प्राप्त रहा।

कल्पद्रुम मंडल विधान का, आयोजन भी सफल रहा।।

पूजन प्रवचन पुण्य कमाया, मनोमुरादी पाया दान।

माताजी के शुभाशीष से, प्राप्त रहा सबको कल्याण।।९३८।।

चरित्र मनुज की सम्पत्ती है, बिन चरित्र जीवन निष्प्राण।

चरित्र समाज की रीढ़ बन्धुओं, बिन चारित्र नहीं कल्याण।।

जम्बूद्वीप हुई आयोजित, संगोष्ठी चरित्र निर्माण।

माताजी सन्निधि, आये देश के, एक शतक ऊपर विद्वान्।।९३९।।

जन्मदिवस उनसठवां माँ का, शरद पूर्णिमा आई है।

धूमधाम से गई मनाई, माँ की जन्म जयंती है।।

ग्रंथ समर्पण पूर्वक माँ का, किया गया अभिनंदन है।

सौ-सौ वर्ष जिएँ माताजी, कवि का सादर वंदन है।।९४०।।

परम पूज्य श्रीमाताजी ने, कार्य अलौकिक किए अनेक।

दंत तले अंगुली दब जाती, गिरि सुमेरु की रचना देख।।

जब तक सूरज-चाँद-सितारे, गिरि परिक्रमा किया करें।

तब तक माता ज्ञानमती जी, हम सबका कल्याण करें।।९४१।।

माताजी की कीर्ति कौमुदी, जयपुर फैला विमल वितान।

हुआ आयोजित रचित पूज्य माँ, श्री कल्पद्रुम महाविधान।।

तेरह सौ स्त्री-पुरुषों ने, प्रतिदिन पूजन लाभ लिया।

दस सहस्र नर-नारी आकर, नियमित दर्शन-श्रवण किया।।९४२।।

पूर्ण विधान निर्विघ्न हुआ जब, हस्तिनागपुर आये जन।

पैंतालिस बस, तीन सहस जन, आकर माँ को किया नमन।।

की विशालसभा आयोजित, माँ-विधान किया गुणगान।

आर्यिका शिरोमणि की उपाधि से, माताजी का किया सम्मान।।९४३।।

चातुर्मास हुआ निष्ठापित, कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी।

वीर निर्वाण मनाया उत्सव, संघ सहित श्री माताजी।।

रत्नमती श्रीमाताजी की, गई मनाई पुण्य तिथि।

तेरहद्वीप जिनालय का यहाँ, शिलान्यास हुआ यथाविधि।।९४४।।

कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी तिथि, ध्यान काल माताजी आज।

दर्शन किए अयोध्या राजित, प्रतिमा तुुंग ऋषभ जिनराज।।

महामस्तकाभिषेक कराऊँ, भाव जगे माँ अन्तर्मन।

जम्बूद्वीप से माह फरवरी, नगर अयोध्या किया गमन।।९४५।।

शाश्वत नगरी श्री अयोध्या, सब तीर्थंकर जन्म स्थान।

रायगंज मंदिर में शोभित, फुट इक्तीस ऋषभ भगवान।।

पहले दर्श किए नहिं प्रभु के, किन्तु ध्यान में दर्श हुआ।

उनके महा अभिषेक के लिए, माताजी संघ गमन किया।।९४६।।

बहसूमा फिर मीरापुर, संघ बिजनौर किया पावन।

नहटौर-धामपुर-काँठ-स्योहरा, मुरादाबाद मनोभावन।।

नगर-गाँव विश्राम किया संघ, धर्म प्रभावना-प्रवचन कर।

जीवन धन्य किया सब ही ने, माताजी-संघ दर्शन कर।।९४७।।

बारह मार्च सन् तिरान्वै, अहिच्छत्र आगमन हुआ।

पार्श्र्वनाथ जिन तपोभूमि यह, केवलज्ञान भी यहीं हुआ।।

कमठ किया उपसर्ग यहीं पर, पद्मावती-धरणेन्द्र निवार।

ऐेसे क्षेत्र परम पावन पर, माताजी का हुआ विहार।।९४८।।

पारस प्रभु ने करी तपस्या, जिस स्थल उपसर्ग हुआ।

अहिरूप धर छत्र के द्वारा, प्रभु उपसर्ग सु-दूर हुआ।।

उस स्थल का हुआ प्रथित जग, अहिच्छत्र यह सार्थक नाम।

संकटहारी, सब सुखकारी, अहिच्छत्र को करें प्रणाम।।९४९।।

तीन दिवस प्रवास काल मेें, तीस चौबीसी आई ध्यान।

बीस,सातशत प्रतिमाजी की, दिव्य योजना करी प्रदान।।

ग्यारह शिखरों वाला मंदिर, बन करके तैयार हुआ।

अद्वितीय-अनन्वय सब कुछ, लखकर दर्शक धन्य हुआ।।९५०।।

जम्बूद्वीप-भरत-ऐरावत, षट् चौबीसी बनी त्रिकाल।

खंड धातकी, पूरब-पश्चिम, द्वादश चौबीसी नत भाल।।

पुष्करार्ध भी द्वादश संख्या, कुल चौबीसी हो गई तीस।

तीस गुणित चौबीस मूर्तियाँ, मिलकर हुई सात सौ बीस।।९५१।।

एक कमल के तीन भाग दल, तीन चौबीसी एक कमल।

पद्मासन-जिनदेव बहत्तर, रंग श्वेत, सँगमरमरी धवल।।

एक पंक्ति में पाँच कमल हैं, दोनों पंक्ति शोभते दश।

तीस चौबीसी दश कमलों पर, सात सौ बीस प्रतिमाजी बस।।९५२।।

परम पूज्य माँ ज्ञानमती ने, दिया तीर्थ अनुपम वरदान।

चार चाँद लग गए क्षेत्र में, बना जिनालय भव्य महान्।।

पार्श्र्वनाथ खड्गासन प्रतिमा, कृष्ण-संगमरमर, फण सात।

सात शतक इक्कीस जिनों प्रति, कर जुड़ते, झुक जाते माथ।।९५३।।

अहिच्छत्र से पूर्व बिलारी, संघ रुका मार्च दिन सात।

सिद्धचक्र मण्डल विधान था, गया रचाया माँ के साथ।।

निर्मल कुमार सेठी के द्वारा, गया कराया यहाँ विधान।

क्षेत्र अयोध्या के विकास को, माँ ने खींचा उनका ध्यान।।९५४।।

बरेली-शाहजहाँपुर होकर, सीतापुर आगमन हुआ।

श्री महावीर जयंति महोत्सव, सीतापुर सम्पन्न हुआ।।

दीक्षा जयंति आर्यिका माँ की, यहीं मनाई गई मुदा।

अयोध्या जी त्रिकाल चौबीसी, का विचार साकार हुआ।।९५५।।

सीतापुर-सिधौली-बिसवां, संघ पहुँचा महमूदाबाद।

पूज्य आर्यिका रत्नमती ने, किया जन्म से था आबाद।।

अभूतपूर्व स्वागत के द्वारा, हुआ संघ का अभिनंदन।

अक्षय तृतिया पर्व मनाया, किया प्रणाम नाभिनंदन।।९५६।।

महमूदाबाद में कर प्रभावना, संघ फतेहपुर किया प्रवास।

धर्मामृत की वर्षा करके, माँ पूरी जन-जन की आश।।

संघ फतेहपुर से विहार कर, टिकैतनगर में पधराया।

वन्दामि माताजी सादर, गली-गली ने दुहराया।।९५७।।

कल्याणसिंह यू.पी. मुखमंत्री, स्वागतार्थ थे पधराये।

वंदन, अभिनंदन माताजी, बहुश: गीत गये गाये।।

टिकैतनगर में माताजी का, महिना एक प्रवास रहा।

भाग्य सराहा नगर निवासी, हर्ष शब्द नहिं जात कहा।।९५८।।

ज्ञान-चंदना-मोती-रवि से, सबने बहुविधि लाभ लिया।

चर्या देखी, हुए प्रभावित, मोक्ष मार्ग पर गमन किया।।

आहारदान दे भाग्य सराहा, वैयावृत्ति मिला उपहार।

पंख लगाकर समय उड़ गया, हुआ अयोध्या ओर विहार।।९५९।।

कर प्रभावना नगर-गाँव में, हुआ अयोध्या शुभागमन।

सोलह जून, तेरानू सन् को, आदि चरण में किया नमन।।

अन्येद्यु माताजी सम्मुख, महा अलौकिक कार्य हुआ।

त्रिकाल चौबीसी जिनमंदिर का, शिलान्यास सम्पन्न हुआ।।९६०।।

यद्यपि शाश्वत तीर्थ अयोध्या, सकल चौबीसी जन्म स्थान।

किन्तु हाय! दुर्भाग्य क्षेत्र का, नहीं किसी को उसका ध्यान।।

देख दशा दयनीय क्षेत्र की, माता हृदय विदीर्ण हुआ।

अश्रू अर्घ्य समर्पणपूर्वक, क्षेत्र विकास संकल्प लिया।।९६१।।

चातुर्मास टिकैतनगर मेें, सन् तेरानवै होना था।

किन्तु क्षेत्र दयनीय दशालक्ष, माँ को आया रोना था।।

अत: तीर्थ उद्धार के लिए, किया पूज्यश्री सफल प्रयास।

किया सुनिश्चित नगर अयोध्या, तेरानवै का चातुर्मास।।९६२।।

कवि ने सन् चौवन में देखी, क्षेत्र अयोध्या दीन दशा।

मंदिर-छत्री जीर्ण-शीर्ण सब, रहे शून्यता दिशा-दिशा।।

श्री आचार्य देशभूषण ने, गुरुकुल वहाँ खुलाया है।

कवि ने छैक माह, रहकर के, खुद भी पढ़ा, पढ़ाया है।।९६३।।

ऐसे पावन तीर्थक्षेत्र का, उद्धारण संकल्प लिया।

परम पूज्य श्री माताजी ने, यह अत्युत्तम काम किया।।

असमर्थों को सम्बल देना, रहा पुण्य का अक्षय धाम।

एतदर्थ श्रीमाताजी के, चरणों बारम्बार प्रणाम।।९६४।।

माताजी के संघ सुशोभित, पूज्य चन्दना माताजी।

क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी, श्रद्धामती क्षुल्लिका जी।।

ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र कुमार जी, बीना-आस्था बालसती।

मार्ग गमन करता संघ सोहै, जैनी सेना कर्महती।।९६५।।

Previous post हस्तिनापुर चातुर्मास, सन् १९७५! Next post 005.अजमेर में चातुर्मास, सन् १९५९!
Privacy Policy