(चतुर्थ खण्ड)
समाहित विषयवस्तु१. क्षेत्र विकास के संकल्पपूर्वक चातुर्मास की स्थापना।
२. १९६५ से किसी का चातुर्मास नहीं।
३. रायगंज जिनालय में चातुर्मास।
४. तीर्थक्षेत्र उद्धारिका माताजी।
५. पर्यूषण पर्व में त्रिकाल प्रवचन।
६. ऋषभदेव विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन।
७. अयोध्या का विश्व में प्रचार-प्रसार।
८. जैन साहित्य में राम-निबंध प्रतियोगिता।
९. चित्र प्रतियोगिता-संयोजक डॉ. अनुपम जैन।
१०. शरद पूर्णिमा-विनयांजलि सभा।
११. चारित्र चंद्रिका उपाधि से अलंकृत।
१२. महाराज इण्टर कॉलेज में माताजी के प्रवचन।
१३. चातुर्मास निष्ठापित।
१४. पंचकल्याणक-महामस्तकाभिषेक महोत्सव।
१५. मुलायमसिंह मुख्यमंत्री ने आशीर्वाद लिया।
१६. साहू अशोक कुमार, मोतीलाल वोरा, संगीतकार रवीन्द्र जैन।
१७. बी.बी.सी. लंदन ने माताजी को विश्व की तीसरी शक्ति के रूप में स्वीकार किया।
१८. टोंकों सहित सम्पूर्ण क्षेत्र का जीर्णोद्धार।
१९. ज्ञानमती निलय धर्मशाला का निर्माण।
२०. ऋषभ जयंति, रथयात्रा के साथ उत्सव का समापन।
२१. लखनऊ को विहार।
२२. लखनऊ में शिक्षण शिविर, श्रावक सम्मेलन, संगोष्ठी, महावीर जयंति का आयोजन।
२३. बाराबंकी से विहार।
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को, किया स्थापित चातुर्मास।
कायाकल्प क्षेत्र का होगा, सबके मन आया विश्वास।।
गणिनी प्रमुख, आर्यिका शिरोमणि, श्री माताजी ज्ञानमती।
किसी कार्य को हाथ में लेतीं, पूरा होता शीघ्र अती।।९६६।।
श्री दिगम्बर जैन जिनालय, मुहल्ला रायगंज वाला।
ऋषभदेव खड्गासन प्रतिमा, इक्तिस फुट अतिशय आला।।
उसके सम्मुख बैठ आर्यिका, सकल संघ संकल्प लिया।
शाश्वत नगरी, तीर्थ अयोध्या, पावन वर्षायोग किया।।९६७।।
ईसा सन् उन्निस सौ पैंसठ, हुई विराजित प्रतिमा खास।
तब से अब तक हुआ न कोई, इस स्थल पर चातुर्मास।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, सब संतों में रहीं प्रथम।
तीर्थंकर कल्याण भूमि की, उन्हें उद्धारिका कहते हम।।९६८।।
पहले यहाँ न झाँके कोई, फिर प्रवास की कौन कथा।
सर्वप्रथम श्रीमाताजी ने, सुनी क्षेत्र की पूर्ण व्यथा।।
कर प्रवास सब देखा-समझा, उसका सही निदान किया।
जन समूह आ रुके निरन्तर, पूजा और विधान किया।।९६९।।
संघ आर्यिका इसी जिनालय, दस माहों प्रवास रहा।
श्री त्रिकाल चौबीसी मंदिर, का चलता निर्माण रहा।।
इस प्रकार श्रीमाताजी ने, खोले क्षेत्र प्रगति के द्वार।
नर से आगे बढ़ नारी ने, किया तीर्थक्षेत्र उद्धार।।९७०।।
इससे पहले नहीं किसी भी, साधु-साध्वी किया प्रयास।
नहीं द्रवित हो दशा देखकर, किया यहाँ पर चातुर्मास।।
धन्य-धन्य श्री ज्ञानमती जी, तुम में माता का दिल है।
अत: उपेक्षित तीर्थक्षेत्र को, दिया आपने संबल है।।९७१।।
पर्वराज पर्यूषण आया, नियमित पूजन-हुए विधान।
प्रात: दोपहर-रात्रिकाल में, मिला सभी को प्रवचन-ज्ञान।।
रत्नत्रय ने जगज्जनों को, दशलक्षण रत्नों के हार।
पहनाये आह्लादित होकर, हुआ भव्यजन का उद्धार।।९७२।।
अखिल विश्व का ध्यान क्षेत्र की, ओर किया आकर्षित है।
ऋषभदेव विद्वत्संगोष्ठी, हुई बृहत् आयोजित है।।
शतकाधिक विद्वान् पधारे, माताजी सान्निध्य मिला।
अखिल जगत् के कोने-कोने, ऋषभ सुमन सन्देश खिला।।९७३।।
नगर अयोध्या को जन जाने, राम-लक्ष्मण जन्म स्थान।
संगोष्ठी से पाया सबने, जन्मे यहाँ ऋषभ भगवान।।
जैन संस्कृति केन्द्र अयोध्या, मात से भारत पाया नाम।
ऋषभदेव करकमल रहे हैं, लिपि-संख्या उद्भव स्थान।।९७४।।
संगोष्ठी के सकल सत्र में, माताजी आशीष मिले।
जैन पुराणों बंद अयोध्या, के नित नूतन पृष्ठ खुले।।
सरस्वती अवतार आर्यिका, श्रीमाताजी ज्ञानमती।
ऋषभ-अयोध्या से संदर्भित, माताजी रचना विरचीं।।९७५।।
हुई विमोचित अतिथिजनों से, ऋषभदेव संगोष्ठी काल।
सम-सामयिक रचनाकर्त्री, गणिनी माता को नमूँ त्रिकाल।।
जैन साहित्य में राम विषय पर, निबंध प्रतियोगिता रखी गई।
जैनाजैन बालकों द्वारा, लेखमालिका लिखी गई।।९७६।।
ज्ञानमती चित्र प्रतियोगिता, में आये बहुतेरे चित्र।
हुए पुरस्कृत चित्रकार सब, भाव प्रदर्शित परम पवित्र।।
संगोष्ठी के संयोजक थे, श्री डॉक्टर अनुपम जैन।
तीर्थ अयोध्या-ऋषभदेव से, हुए सुपरिचित जैन-अजैन।।९७७।।
तीस अक्टूबर शरदपूर्णिमा, जन्म जयंती आई है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, विनयांजलि चढ़ाई है।।
भारत के कोने-कोेने से, आये श्रेष्ठी-विद्वत्जन।
माताजी के मुख मयंक से, श्रवण किए आशीष वचन।।९७८।।
छोटी छावनी नगर अयोध्या, नृत्यगोपाल दास महंत।
विनयांजलि अर्पित की माँ को, बतलाया माँ उत्तम संत।।
सहस-सहस नर-नारी आये, विनयांजलि में लगी कतार।
बोले परमपूज्य माताजी, रहवें जीवित वर्ष हजार।।९७९।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, निरतिचार चारित्र धनी।
साधु-साध्वी मध्य आपकी, अतिशय उत्तम छवि बनी।।
अत: आज समुपस्थित जन ने, परम पूज्य माताजी को।
चारित्र चंद्रिका की उपाधि से, किया विभूषित हर्षित हो।।९८०।।
महाराजा इण्टर विद्यालय, नगर अयोध्या संचालित।
माताजी के मंगल प्रवचन, सादर हुए समायोजित।।
माताजी के मुख मयंक से, ऋषभ-अयोध्या पाया ज्ञान।
छात्राध्यापक सबने मिलकर, माँ को दिया अमित सम्मान।।९८१।।
चातुर्मास किया निष्ठापित, कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी।
विधि-विधान सह सकल भक्तियाँ, पढ़ीं श्री पूज्या माताजी।।
पावन तिथि अमावस्या को, निर्वाण लाडू चढ़ाया है।
महावीर निर्वाण महोत्सव, परमोत्साह मनाया है।।९८२।।
माताजी के मन:कोष में, हैं अनेक योजनाएँ।
प्रतिभा भी उपलब्ध आप श्री, जिससे मूर्तरूप पायें।।
ठान लिया श्री माताजी ने, मिले अयोध्या श्रेष्ठ स्थान।
एतदर्थ किया आयोजित, महा अभिषेक ऋषभ भगवान।।९८३।।
श्री त्रिकाल चौबीसी मंदिर, बन करके तैयार हुआ।
द्विसप्तति जिनप्रतिमाओं की, प्राणप्रतिष्ठा भाव हुआ।।
माताजी के शुभाशीष से, होंगे सारे कार्य सफल।
उनके पावन चरण कमल में, करें सिद्धियाँ वास सकल।।९८४।।
हुए प्रचारित सकल कार्यक्रम, देश-विदेश दशों दिश में।
महामस्तकाभिषेक ऋषभजिन, पंचकल्याण महोत्सव में।।
तेरह से तेईस फरवरी, हुए महोत्सव आयोजित।
पधराये व्रतिजन-विद्वत्गण, नेता-श्रेष्ठी समयोचित।।९८५।।
मुलायमसिंह यू.पी.मुखमंत्री, महा-महोत्सव पधराये।
जैनों बीच रहा मैं फलत:, मुझ में जैन संस्कार आये।।
की अनेक घोषणाएँ भी, हुआ सभी का क्रियान्वयन।
लौट गये लखनऊ को यादव, माँ श्री चरणों किया नमन।।९८६।।
तीर्थ कमेटी के अध्यक्ष, श्री अशोक कुमार साहू आये।
उनके जनक श्री शांतिप्रसाद ने, यह जिनमंदिर बनवाये।।
भाग्य सराहा कहा आपने, क्षेत्र का दर्शन पाया है।
श्रीमाताजी चरण कृपा से, यह शुभ अवसर आया है।।९८७।।
राज्यपाल यू.पी. स्टेट के, मोतीलाल वोरा आये।
माताजी के चरणकमल में, सविनय निज मस्तक नाये।।
बोले अब तक नगर अयोध्या, था प्रसिद्ध राम के नाम।
किन्तु आज से माताजी ने, जोड़ा ऋषभदेव का नाम।।९८८।।
चौबीस फरवरी सन् चौरानवे, स्वर्ण अक्षरों लिखा गया।
महामस्तकाभिषेक ऋषभ जिन, भक्तों द्वारा किया गया।।
श्रावक-श्राविका जैनजनों से, भरी खचाखच गली-गली।
प्रथम बार देखी लोगों ने, माँ कारण शाश्वत नगरी।।९८९।।
ऋषभदेव पर पुष्पवृष्टि की, नृपति अयोध्या बैठ विमान।
संगीतज्ञ श्री रवीन्द्र जैन ने, किया सकल काव्यमय गान।।
गगन गिरा से हुआ प्रसारित, आँखों देखा हाल सकल।
और वहीं से पाया सबने, माँ आशिष का अमृत फल।।९९०।।
समारोह जो हुआ यहाँ पर, हुआ न होगा और कभी।
युगों-युगों तक याद रखेंगे, इसको जैनाजैन सभी।।
बी.बी.सी. लंदन यों बोला, अब तक रहीं शक्तियाँ दो।
शक्ति तीसरी जैन रूप में, आई सामने प्रकटित हो।।९९१।।
शाश्वत तीर्थ अयोध्या जी की, युगीन शून्यता दूर हुई।
तीर्थोद्धार-विकास कामना, माताजी भरपूर हुई।।
महामस्तकाभिषेक आदिजिन, होवे पाँच वर्ष प्रत्येक।
दत्त प्रेरणा माताजी की, हुए प्रशंसित जन प्रत्येक।।९९२।।
सोलह जून से छह अप्रैल तक, माताजी का रहा प्रवास।
स्वर्ण अक्षरों लिखा रहेगा, तीर्थ अयोध्या यह इतिहास।।
टोंक सहित सम्पूर्ण क्षेत्र का, हुआ प्रतीक्षित जीर्णोद्वार।
श्रीमाताजी ज्ञानमती का, स्मरणीय अमित उपकार।।९९३।।
क्षेत्र निकट ही बहुत जरूरी, सुंदर एक धर्मशाला।
ज्ञानमती जी निलय बन गया, वहाँ सर्व सुविधा वाला।।
हुए अपेक्षित कार्य बहुत से, बढ़ा क्षेत्र का जीवनकाल।
माताजी के चरण कमल में, हम सब वंदन करें त्रिकाल।।९९४।।
हुआ समापन कार्यक्रमों का, ऋषभ जयंति यात्रारथ।
संघ आर्यिका ने अपनाया, डालीगंज लखनऊ का पथ।।
शिक्षण शिविर श्रावक सम्मेलन, कर संगोष्ठी आयोजन।
चारबाग महावीर जयंती, बाराबंकी किया गमन।।९९५।।