समाहित विषयवस्तु
१. बाराबंकी में सिद्धचक्र विधान का आयोजन।
२. सिद्धचक्र का अर्थ।
३. चातुर्मास की स्थापना एवं विविध आयोजन।
४. चंदनामती माताजी का दीक्षा दिवस।
५. पर्यूषण पर्व का आगमन, अनेक आयोजन।
६. षष्ठिपूर्ति महोत्सव-कीर्तिस्तम्भ का निर्माण।
७. चातुर्मास निष्ठापन और विदाई।
८. माताजी द्वारा संबोध
९. दरियाबाद में कल्पद्रुम मंडल विधान।
१०. अयोध्या में शुभागमन।
११. आचार्य विमलसागर को श्रद्धांजलि।
१२. पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आदि का आयोजन।
१३. राजकीय उद्यान का नाम-ऋषभदेव उद्यान।
१४. विश्वविद्यालय में ऋषभदेव पीठ की घोषणा।
१५. अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद द्वारा डी.लिट्. की उपाधि।
१६. ऋषभदेव नेत्र अस्पताल प्रारंभ।
१७. माताजी का प्रवचन-जैन धर्म प्राचीन धर्म है।
१५. राम के साथ ऋषभदेव से भी अयोध्या की पहचान हुई।
१९. हस्तिनापुर की ओर विहार।
बाराबंकी वह पावनथल, जहाँ कुमारी मैना ने।
शरदपूर्णिमा आयु अठारह, सन् उन्निस सौ बावन में।।
आचार्यश्री देशभूषण से, ब्रह्मचर्य व्रत धारा था।
सप्तम प्रतिमा पालन करके, गृह से किया किनारा था।।९९६।।
संयम पथ है मोक्ष नसैनी, ब्रह्मचर्य पहला सोपान।
यहीं किया आरोहण मैना, जगत्काय सब अस्थिर जान।।
माँ-बेटी समझौता करके, गयी यहीं पर मोक्ष डगर।
तुम जाओ घर से निकालने, मेरी रखना ध्यान मगर।।९९७।।
जो मंजिल मतवाले होते, उनको बस चलने का काम।
उन्हें लक्ष्य दिखता है केवल, लेते नहिं रुकने का नाम।।
आधी-व्याधी रोक न पातीं, बाधाएँ देतीं पैगाम।
मंजिल उनके चरण चूमती, करती शत-शत बार प्रणाम।।९९८।।
मोक्ष नसैनी चढ़ मैना ने, पद आर्यिका पाया है।
वही आर्यिका ज्ञानमती संघ, बाराबंकी आया है।।
विधान-शिविर-प्रवचन के द्वारा, कर प्रभावना डगर-डगर।
संघ आर्यिका ने विहार कर, लक्ष्य बनाया टिकैतनगर।।९९९।।
टिकैतनगर मैना का घर है, सन् चौंतिस में जन्म लिया।
छोटेलाल-मोहिनीदेवी, का घर-बार पवित्र किया।।
श्री मैना ने ज्ञानमती बन, जग परिवार बनाया है।
इसीलिए माँ दर्शन करने, अवध उमड़कर आया है।।१०००।।
चातुर्मास हुआ स्थापित, हुआ विरागमय आयोजन।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, किया स्व-हस्त केशलुंचन।।
तृणवत् केश उखाड़ आपने, पूर्व संकल्प किया उपवास।
धर्म अहिंसा पालन करना, केशलुंच का लक्ष्य है खास।।१००१।।
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को, चातुर्मास का स्थापन।
किया केशलुंच माताजी, हुआ पिच्छिका परिवर्तन।।
चत्वारिंशत वर्ष व्यतीते, अब फिर अवसर आया है।
टिकैतनगर ने पूज्याश्री का, सन्निधान शुभ पाया है।।१००२।।
स्वावलम्ब का पाठ पढ़ाना, जीव सुरक्षा रखना ध्यान।
पंचेन्द्रिय-मन हाथ-पैर का, जो जन कर लेते मुण्डन।।
रहे देह संस्कार उपेक्षा, भव-तन-भोग विरक्ति प्रधान।
तदनन्तर एकादश क्रम पर, करता साधु केशलुंचन।।१००३।।
पर्व अठाई के आने पर, अतिशय धार्मिक जोश जगा।
सिद्धचक्र मण्डल विधान में, सबका शुभ उपयोग लगा।।
एक साथ चार लोगों के, संयोजित विधान थे चार।
माताजी संघ सन्निधान में, सबको मिला धर्म उपहार।।१००४।।
चक्र अर्थ होता समूह है, सिद्ध अर्थ है केवल रूह।
सिद्धचक्र का अर्थ इस तरह, हुआ बन्धुओं सिद्धसमूह।।
तीन लोक के अग्रभाग पर, है अनंत सिद्धों का वास।
अष्टकर्म नष्ट करने से, प्रकटित हुए अष्टगुण खास।।१००५।।
सिद्ध शब्द मंगलस्वरूप है, पूर्णकार्य सिद्ध का अर्थ।
जो इसका उच्चारण करते, सकलकार्य होते अव्यर्थ।।
रोग-शोक दूर होकर के, मिली सम्पदा चाही है।
मैनासुंदरि-श्रीपाल का, सकल चरित्र गवाही है।।१००६।।
चातुर्मास शुरू होते ही, हुए विविध आयोजन हैं।
श्रद्धा-ज्ञान-विनय-पुण्यफल, सबका रहा प्रयोजन है।।
वीर निधि की जन्मजयंती, शासन वीर जिनेश्वर की।
पार्श्र्वनाथ निर्वाण दिवस-सह, तीर्थराज पर संगोष्ठी।।१००७।।
जिनकी चरण धूलि को पाकर, हुई मृत्तिका भी चंदन।
उन्हीं चंदनामती आर्यिका, को अर्पित शत-शत वंदन।।
बीते पाँच वर्ष दीक्षा को, समारोह सम्पन्न हुआ।
नगरमणि संयम प्रकाश से, नगर हमारा धन्य हुआ।।१००८।।
इन्द्रध्वज विधान सम्पन्ना, सबने पाई पुण्यनिधि।
संघ आर्यिका सन्निधान में, हुई पूर्णता यथाविधि।।
चार शतक, अष्टपंचाशत, अकृत्रिम जिन चैत्यालय।
उनकी पूजाओं से गूँजा, द्वादश दिन तक देवालय।।१००९।।
आचार्यश्री शांतिसागर की, गई मनाई पुण्यतिथि।
तीन दिवस संगोष्ठी द्वारा, गुण विनयांजलि अर्पित की।।
दशलक्षण की धर्मध्वजा ले, पर्व पर्यूषण आया है।
संघ आर्यिका सन्निधान में, दस दिन गया मनाया है।।१०१०।।
मैत्री पर्व क्षमावाणी का, बाईस सितम्बर आया है।
द्वेषभाव को त्याग सभी ने, प्रेमभाव अपनाया है।।
पूज्य आर्यिका श्री चंदना, लुंचन केश किया है आज।
संयम-ज्ञान-विराग नदी में, हुई स्नापित सकल समाज।।१०११।।
साठ वर्ष बीते जीवन के, पूज्य आर्यिका ज्ञानमती।
षष्ठिपूर्ति उत्सव के माध्यम, प्रगटा जन-जन मोद अती।।
सर्वतोभद्र मण्डल विधान का, हुआ सभक्ति आयोजन।
विनयांजलि की अर्पित सबने, नेता-श्रेष्ठी-विद्वत्जन।।१०१२।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, अधिक अनन्वय कार्य किए।
कीर्ति कौमुदी फैली चहुँदिश, छोड़ी उत्तम छाप हिए।।
चिरकृतज्ञ-आभारी सबने, श्रद्धा को अंजाम दिया।
षष्ठिपूर्ति पावन अवसर पर, कीर्तिस्तम्भ निर्माण किया।।१०१३।।
इतिहास पृष्ठ पर अमर रहेगा, टिकैतनगर का चातुर्मास।
कीर्तिस्तम्भ करेगा माँ का, युगों-युगों तक नाम प्रकाश।।
धन्य-धन्य माँ ज्ञानमती जी, जिन्हें नाम की चाह नहीं।
सूरजवत् चलते ही रहना, यश-अपयश परवाह नहीं।।१०१४।।
योग के साथ वियोग लगा है, नियम नहीं सकता है टल।
आने वाला जायेगा ही, यही प्रकृति का नियम अटल।।
लेकिन जिसने वस्तु तत्त्व की, समझ न पायी सच्चाई।
वे हर्षित होते सुयोग में, रोते जब बिछुड़न आई।।१०१५।।
जग में स्थिर वस्तु न कोई, क्षण-क्षण होता रहे क्षरण।
मूरख मान रहा है वृद्धि, पल-पल होता रहे मरण।।
काया जैसे काँच की शीशी, यौवन जैसे मेघमहल।
यह संसार चलाचल मेला, कुछ ही दिन की चहल-पहल।।१०१६।।
पता नहीं चल पाया कैसे, चतुर्मास दिन चले गये।
कहा सभी ने हम तो सचमुच, कालबली से छले गये।।
चातुर्मास हुआ निष्ठापित, संघ विदाई आये क्षण।
टिकैतनगर का हर जनमानस, धैर्य छोड़ कर उठा रुदन।।१०१७।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, दिया सभी को सम्बोधन।
जैसे-जैसे समझाती माँ, बढ़ता त्यों-त्यों और रुदन।।
कर्म मोहनी ने आकर के, फैलाया सब ऊपर जाल।
आँसू रुकने नाम न लेते, स्थिति बनी विकट-विकराल।।१०१८।।
रोना भी गम को खोने का, कहा गया है सहज उपाय।
कोई रोता मनमसोस कर, कोइ रोता हिचकोला खाय।।
राम अयोध्या छोड़ चले ज्यों, चले कृष्णश्री वृन्दावन।
दृश्य उपस्थित हुआ आज वह, आँसू बन बरसा सावन।।१०१९।।
किन्तु आर्यिका संघ रुका ना, छोड़ गया पद चिन्ह ललाम।
रहे देखते नगर निवासी, यथा अयोध्याजन श्रीराम।।
माह नवम्बर सन् चौरानवै, दिन का भी नौ अंक रहा।
टिकैतनगर से कर विहार संघ, दरियाबाद मुकाम रहा।।१०२०।।
कल्पद्रुम मंडल विधान को, गया रचाया दरियाबाद।
माताजी कृत पूजाएँ पढ़, समवसरण की आई याद।।
फिर विहार कर संघ प्रवेशा, श्री त्रिलोकपुर अतिशयक्षेत्र।
नेमिनाथ भगवान का हुआ, वहाँ महामस्तक अभिषेक।।१०२१।।
एक बार फिर माताजी ने, सुधि ली क्षेत्र अयोध्या की।
माह दिसम्बर संघ प्रविष्टा, रायगंज के मंदिर जी।।
तीन चौबीसी शिखर साथ में, समवसरण मंदिर निर्माण।
पंचकल्याणक माह फरवरी, होंगे माताजी सन्निधान।।१०२२।।
तीर्थ अयोध्या रायगंज में, बही ज्ञान अविरल धारा।
माताजी श्रीज्ञान-चंदना, क्षुल्लक मोती निधि द्वारा।।
आचार्यश्री विमलसागर का, शिखर समाधिमरण हुआ।
प्राप्त सूचना सकल संघ को, मन में अतिशय क्षोभ हुआ।।१०२३।।
तीस दिसम्बर माता सन्निधि, हुआ सभा का आयोजन।
श्री गुरुवर वात्सल्य निधि को, की सबने श्रद्धा अर्पण।।
श्रीगुरुवर के चिरवियोग से, जो भी रिक्तता है आई।
युगों-युगों तक किसी तरह भी, हो न सकेगी भरपाई।।१०२४।।
सन् पिंचानवै, माह फरवरी, पंद्रह-बीस तिथी आई।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होकर, हुई विराजित प्रतिमाजी।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती संघ, सकल काल सान्निध्य मिला।
ध्वजा-कलश आरोहण द्वारा, तीर्थक्षेत्र का रूप खिला।।१०२५।।
राजकीय उद्यान अब हुआ, भगवन ऋषभदेव उद्यान।
बीस-एक फुट ऊँची प्रतिमा, हुई अनावृत माँ सन्निधान।।
महावीर प्रसाद जैन दिल्ली ने, द्रव्य लगाया, पुण्य लिया।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, सबको शुभ आशीष दिया।।१०२६।।
उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री जी, मुलायमसिंह जी यादव ने।
ऋषभदेव पीठ घोषित की, लोहिया विश्व विद्यालय में।।
पाँच फरवरी, माँ की सन्निधि, शिलान्यास सम्पन्न हुआ।
माताजी से प्राप्त पे्ररणा, यह अत्युत्तम काम हुआ।।१०२७।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, सम्यग्ज्ञान वटवृक्ष समान।
फैजाबाद विश्वविद्यालय, दिया उन्हें डी.-लिट्. सम्मान।।
अखिल देश में जैन संत को, प्रथमबार यह दिया गया।
माताजी को सम्मानित कर, सम्मान ने निज सम्मान किया।।१०२८।।
माताजी के शुभाशीष से, ऋषभदेव अस्पताल खुला।
जैनाजैन सभी को इससे, लाभ मिल रहा है अधुना।।
स्फटिक शिला नामक आश्रम में, माँ प्रवचन में बतलाया।
जैन धर्म प्राचीन धर्म है, वेद-पुराणों में गाया।।१०२९।।
सन् पिंचानवे, मार्च अठाइस, संघ आर्यिका हुआ विहार।
कार्य अनेक किए माताजी, किया क्षेत्र का पूर्णोद्धार।।
वानर बहुत तीर्थक्षेत्र तो, अब तक रहा राम के नाम।
जैनतीर्थ यह जाना सबने, जन्में यहाँ ऋषभ भगवान।।१०३०।।
अयोध्या-श्रावस्ती-बहराइच, जरवलरोड-गनेशपुरा।
फिर त्रिलोकपुर कर प्रभावना, संघ पधराया फतेहपुरा।।
धर्म-ज्ञान की वर्षा करके, संघ बढ़ा गजपुर की ओर।
बीस माह की प्यासी जनता, जोहे बाट, मेघ ज्यों मोर।।१०३१।।