—चौबोल छंद—
तर्ज—आवो बच्चों तुम्हें दिखायें…….
आवो हम सब करें अर्चना, गणधर देव प्रधान की।
जिनवर दिव्यध्वनी को झेलें, द्वादशांग श्रुतवान की।।वंदे गणधरम्-४
अड़तालिस ऋद्धी को धारें, द्वादशगण के ईश्वर हैं।
यंत्ररूप हैं मंत्ररूप हैं, तंत्ररूप भी परिणत हैं।।
ऐसे गुरु को वंदन करते, मिले राह कल्याण की।।आवो.।।
श्री गणधर गुरु की पूजा से, सर्वविघ्न संहार करें।
ज्वर अतिसार आदि रोगों का, क्षण भर में परिहार करें।।
आह्वानन कर जजते इनको, मिले ज्योति निज ज्ञान की।।आवो.।।
ॐ ह्रीं श्रीगणधरसमूह! अत्र एहि एहि संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीगणधरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीगणधरसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
तर्ज—मेरे देश की धरती….
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
अगणित नदियोें का नीर पिया, नहिं अब तक प्यास बुझा पाये।
इस हेतु आपकी पूजा को, कंचन झारी में जल लाये।।
गुरुपद में धारा करते ही….सब मन की प्यास बुझायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: जलं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
भव-भव में रोग शोक संकट, मानस देहज दुख पाये हैं।।
इसलिये आपकी पूजा को, चंदन केशर घिस लाये हैं।।
गुरु पद में चर्चन करते ही….तन मन शीतल हो जाये।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
नश्वर सुख पाने की इच्छा से, दु:ख अनंत उठाये हैं।
सरसों सम सुख नहिं मिला किंतु, भवदधि में गोते खाये हैं।।
इसलिये धौत सित अक्षत ले….. हम पुंज चढ़ाने आये।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
मकरध्वज ने तीनों जग में, निज शर से जन को वश्य किया।
प्रभु के चरणाम्बुज में आकर, वह भी तो क्षण में वश्य हुआ।
इसलिए तुम्हारे चरणों में…… हम पुष्प चढ़ा सुख पायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
यह क्षुधा पिशाची पिंड लगी, हम कैसे छुटकारा पायें।
तुम परमानंदामृत पीते, इसलिये प्रभो! शरणे आये।।
नैवेद्य चढ़ाकर तुम सन्मुख…….हम परम तृप्ति को पायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
मिथ्यात्व अंधेरे में हमने, नहिं निज को किंचित् पहिचाना।
प्रभु तुम हो केवलज्ञान सूर्य, इसलिये उचित समझा आना।।
दीपक से तुम आरति करते ……मन का अंधेर मिटायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
शाश्वत जिनमंदिर में असंख्य भी, धूप घड़ों में अग्नि जले।
निज सुरगण सुरभि धूप खेते, तब धूम्र दशों दिश में फैले।।
हम धूपायन में धूप खेय….निज के सब कर्म जलायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
अंगूर अनार आम केला, फल अनंनास ले आये हैं।
वर मोक्ष महा फल पाने को, तुम निकट चढ़ाने आये हैं।।
फल से पूजा करके भगवन् …… रत्नत्रय निधि पा जायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: फलं निर्वपामीति स्वाहा।
गणधर की अर्चा, सकल विश्व में शांति सुधा बरसाये।
गणधर की……
जल गंधादिक वसु अर्घ्य लिये, उसमें नवरत्न मिलाये हैं।
निज भाव अपूर्व-अपूर्व मिले, यह आशा लेकर आये हैं।।
चरणों में अर्घ्य चढ़ा करके……. नवनिद्धि ऋद्धि पा जायें।।
गणधर की……
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नाथ पदकंज में शांतिधारा करूँ।
विश्व में शांति होवे यही कामना।।
आधि सब दूर हों चित्त में शांति हो।
भक्ति से प्राप्त हो शांति आत्यंतिकी।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
नाथ के गुण सुमन आज चुन के लिये।
विश्व में यश सुरभि फैलती है प्रभो!।।
पुष्प अंजलि समर्पण करूँ प्रेम से।
पुण्य संपत्ति पाऊँ सुयश वृद्धि हो।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।