प्रश्न ८४—उत्तम क्षमा धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर—मूर्ख जनों के द्वारा बन्धन, हास्य आदि के होने पर तथा कठोर वचनों के बोलने पर जो अपने निर्मल धीर—वीर चित्त से विकृत नहीं होता उसी का नाम उत्तम क्षमा है।
प्रश्न ८५—उत्तम क्षमाधारी क्या विचार करते हैं ? उत्तर—राग—द्वेषादि से रहित होकर उज्ज्वल चित्त से हम रहेंगे, कोई हमें कितना भला या बुरा कहे, समस्त जगत सुख से रहे किन्तु किसी भी संसारी को मुझसे दुख न पहुँचे, जो हमारे साथ द्वेषरूप तथा प्रीतिरूप परिणाम करेगा उसका फल उसको अपने आप मिल जावेगा।
प्रश्न ८६—मार्दव धर्म क्या सिखाता है ? उत्तर—जाति, बल, ज्ञान, कुल आदि गर्वों के त्याग को मार्दव धर्म कहते हैं, यह धर्मों का अंगभूत है।
प्रश्न ८७—आर्जव धर्म का लक्षण बताइये ? उत्तर—मन में जो बात होवे उसी को वचन से प्रकट करना आर्जव धर्म कहलाता है। आर्जव धर्म से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
प्रश्न ८८—मायाचारी करने से क्या फल मिलता है ? उत्तर—यदि एक बार भी किसी के साथ मायाचारी की जावे तो वह कठिनता से संचित किए हुए पुण्य को फीका बना देती है और मायाचार से उत्पन्न हुए पाप से जीव नाना प्रकार के दुर्गति मार्गों में भ्रमण करता रहता है।
प्रश्न ८९—सत्य धर्म का लक्षण क्या है ? ”उत्तर—जो वचन हित, मित, प्रिय हो, सर्वथा सत्य होते हुए भी जीवों को पीड़ा न पहुँचाए अथवा कटु न हो वह सत्य धर्म है।
प्रश्न ९०—सत्य व्रत के पालन से क्या फल मिलता है ? उत्तर—सत्य व्रत का पालन करने वाले मनुष्य के सभी व्रतों का पालन हो जाता है और सरस्वती भी उसके आधीन हो जाती है। वे परभव में श्रेष्ठ चक्रवर्ती राजा बनते हैं, इन्द्रादि फल को प्राप्त कर लेते हैं। चन्द्रमा के समान उत्तम कीर्ति को प्राप्त कर लेते हैं और एक दिन उत्कृष्ट मोक्षरूपी फल को भी प्राप्त कर लेते हैं।
प्रश्न ९१—शौचधर्म का लक्षण बताओ ? उत्तर—जो परस्त्री तथा पराए धन में इच्छा रहित है तथा किसी जीव को मारने की जिसकी भावना नहीं है, जो अत्यन्त दुर्भेद्य लोभ, क्रोधादि मल का हरण करने वाला है ऐसा चित्त ही शौचधर्म है।
प्रश्न ९२—उत्तम संयम धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर—जिसका चित्त दया से भीगा हुआ है, जो ईर्या, भाषा, एषणा आदि पांच समितियों का पालन करने वाला है ऐसे साधु के जो षट्काय के जीवों की हिंसा का तथा इन्द्रियों के विषयों का त्याग है वह संयम धर्म है।
प्रश्न ९३—तप धर्म का लक्षण बताओ ? उत्तर—सम्यग्ज्ञान रूपी दृष्टि से भले प्रकार वस्तु के स्वरूप को जानकर ज्ञानावरण आदि कर्ममल के नाश की बुद्धि से जो तप किया जाता है वही तप कहलाता है।
प्रश्न ९४—उस तप के कितने भेद हैं ? उत्तर—उस तप के बाह्य और अभ्यंतर ऐसे दो भेद हैं।
प्रश्न ९५—बाह्य तप कितने प्रकार का है ? उत्तर—बाह्य तप छ: प्रकार का है—१. अनशन, २. अवमौदर्य, ३. वृत्तिपरिसंख्यान, ४. रसपरित्याग, ५. विविक्तशय्यासन, ६. कायक्लेश।
प्रश्न ९६—अन्तरंग तप के भेद बताओ ? उत्तर—अन्तरंग तप भी छ: प्रकार का है—१. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. व्युत्सर्ग और ६. ध्यान।
प्रश्न ९७—त्याग धर्म का लक्षण बताइये ? उत्तर—शास्त्रों का भलीभाँति व्याख्यान करना, मुनियों को पुस्तके तथा स्थान और संयम के साधन पिच्छी— कमण्डलु आदि का देना सदाचारियों का उत्कृष्ट त्याग धर्म है।
प्रश्न ९९—आकिञ्चन्य धर्म का स्वरूप बताओ ? उत्तर—जिनका मोह सर्वथा गल गया है, जो अपनी आत्मा के हित में निरन्तर लगे रहते हैं, सुन्दर चारित्र के धारण करने वाले हैं, घर, स्त्री, पुत्रादि को छोड़कर मोक्ष के लिए तप करते हैं अर्थात् जिन्होंने अपनी आत्मा से समस्त वस्तुओं को भिन्न जानकर सबका त्याग कर दिया है वह आकिञ्चन्य धर्म के धारी हैं।
प्रश्न १००—ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किस प्रकार सम्भव है ? उत्तर—मोक्ष के अभिलाषी स्त्री अथवा पुरुष को अन्य स्त्री पुरुष को माता, बहन, पुत्री, भाई, पिता, पुत्र आदि के समान समझना चाहिए तभी उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य धर्म का पालन सम्भव है।